(तस्वीरनामा की सातवीं कड़ी में खेत मजदूरों पर ज्याँ फ्रांसोआ मिले द्वारा बनाये गए विश्व प्रसिद्ध चित्र ‘द ग्लेनर्स’ के बारे में बता रहे हैं प्रसिद्ध चित्रकार अशोक भौमिक )
विश्व कला इतिहास में खेत मज़दूरों पर बहुत कम चित्र मिलते हैं , जबकि दुनिया उन्हीं के मेहनत से उगाये फसल पर निर्भर रहती है. यूरोप के कई प्रसिद्ध कलाकारों ने किसानों की जिंदगी पर कई नायाब चित्र बनाये है. ‘द ग्लेनर्स’ 1857 में बनाया गया ऐसा ही एक विश्व प्रसिद्ध चित्र है.
चित्र में तीन अनाज बीनने वाली औरतों को दिखाया गया है. दुनिया भर के तमाम खेतिहर समाज में फसल कटाई के बाद अनाज बीनने की परंपरा युगों से चली आ रही है और यह काम समाज के गरीब लोग ही करते आये हैं. इजिप्ट में नियम था की फसल कटाई के बाद गरीबों और भिखारियों को अनाज बीनने के लिए खेतों में आने से न रोका जाये. इस नियम को न मानने को अशुभ समझ जाता था. फ्रांस में भी यही नियम था और बीनने वालों को केवल दिन के वक़्त ही बीनने की इज़ाज़त थी. फसल के कटाई के दौरान अनाज के दानें और बालियाँ , जो इधर उधर पड़े रह जाते थे उसे ही गरीब लोग बीन लेते थे.
‘ द ग्लेनेर्स’ चित्र में चित्रकार ज्याँ फ्रांसोआ मिले ने कोई अतिरिक्त कौशल दिखा कर अपनी प्रतिभा को प्रमाणित करने की कोशिश नहीं की बल्कि पूरी सहानुभूति के साथ , अत्यंत सहज सरल संरचना और कोमल रंगों के प्रयोग से उन्होंने तीन किसान औरतों को चित्र में दिखाया है , जो गरीब अवश्य है पर दयनीय नहीं है. इस चित्र के तीनों औरतें तीन अलग अलग पीढ़ियों का प्रतिनिधित्व करती हैं. सबसे बायीं ओर की लड़की इन तीनों में सबसे कम उम्र की है , जिसने फसल की बालियों को पीठ के पीछे , बायें हाथ की मुट्ठी में बड़ी आसानी से पकड़ रखा है. कम उम्र के स्वाभाविक लोच के कारण , अनाज बीनने की उसकी मुद्रा अन्य दो औरतों से कुछ भिन्न है. चित्र में तीनों औरतों की छोटी परछाइयों से हम दोपहर की धूप का अनुमान लगा सकते हैं , जिससे बचने के लिए तीनों अपने सर को ढँक लिया है. कम उम्र लड़की ने हालाँकि अन्य औरतों के तरह ही सर को ढँकने के लिए सर पर एक टोपी नुमा बाँधा है पर इस टोपी से उसका सर ही नहीं बल्कि उसकी गर्दन भी धूप से बच रही है.
चित्र के बीच की औरत का शरीर काफी गठा हुआ है पर इसे अपने उम्र के कारण झुकने में दिक्कत हो रही है इसीलिये उसने अपना बायाँ हाथ अपने बायें घुटने पर रख कर अपना संतुलन बनाया है. वहीं चित्र के दाहिनी ओर की औरत सबसे ज्यादा उम्र की है , जो सामने झुक कर अन्य दो औरतों की तरह दानें नहीं बीन पा रही है.
यहाँ मिले ने इन तीनों औरतों की अपनी अपनी मजबूरी दिखाई है। इस चित्र की पहली प्रदर्शनी के समय दर्शकों के एक बहुत बड़े हिस्से को पहली बार पता चला था कि दुनियाँ में ऐसे भी लोग हैं जी फसल कटाई के बाद खेतों में पड़े अनाज के दानों और बालियों को बीन कर अपनी जिंदगी चलाते हैं.
ज्याँ फ्रांसोआ मिले का इस चित्र बनाने का उद्देश्य भी यहीं था.