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महिलाओं, दलितों, अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों के खिलाफ महिला संगठनों ने धरना दिया

लखनऊ. “ डरें……. कि आप उ.प्र. में हैं ” के बैनर के साथ 23 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश की चरमराती कानून व्यवस्था एवं उसके चलते महिलाओं, बच्चियों, दलितों, अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों के खिलाफ एडवा, भारतीय महिला फेडरेशन, एपवा व हमसफर संस्था के संयुक्त तत्वावधान में गाँधी मूर्ति जी.पी.ओ. पर महिलाओं ने धरना दिया. धरने के समर्थन में शहर के कई सामाजिक संगठन, जनसंगठन एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की.

यह धरना उ.प्र. में पिछले कुछ समय से प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में हो रही हिंसा की वीभत्स घटनाओं एवं पुलिस की कार्यप्रणाली के खिलाफ किया गया था. एपवा की मीना सिंह के संचालन में चले धरने में एडवा की प्रदेश अध्यक्ष मधु गर्ग ने कहा कि योगी सरकार कानून व्यवस्था दुरूस्त करने के दावे के साथ आई थी किन्तु पिछले डेढ़ सालों से जिस प्रकार अपराधों में बढ़ोत्तरी हुई है उसने पिछले सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं। सूबे के मुख्यमंत्री अपराध समाप्त करने के नम पर ‘ठोंक देने’ का फरमान सुना देते हैं जिसका असर है कि पूरे प्रदेश में ठोंक देने की प्रवृत्ति हावी हो चुकी है. पुलिस बेलगाम हो चुकी है, उसे फर्जी एनकाउन्टर करने पर शाबाशी मिल रही है. प्रदेश में हिंसक प्रवृत्ति इस कदर हावी हो चुकी है कि छोटे छोटे विवादों को लेकर हत्यायें अपहरण हो रहे हैं. सरकार समर्थित भगवा सेना की आक्रामकता इतनी बढ़ी है कि सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते ही हमले शुरू हो जाते हैं वैसे अलीगढ़ में एनकांउटर की जाँच में गये लोगों पर बजरंग दल द्वारा हमला होता है.


उन्होंने कहा कि चुनाव हारने पर इलाहाबाद में आगजनी होती है। मिर्जापुर में आदिवासियों की लड़ाई लड़ने वाले हिम्मत कोल की हत्या में फारेस्ट रेंजर ही आरोपी है। हिंसा के इस नंगे खेल में महिलायें बच्चियाँ, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक सबसे ज्यादा शिकार हो रहे हैं।

सभा को सम्बोधित करती हुई भारतीय महिला फेडरेशन की आशा मिश्रा ने कहा कि आज प्रदेश की स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि हर नागरिक डरा और सहमा हुआ है विशेषकर महिलाएं और बच्चियां हमेशा असुरक्षित महसूस करती हैं। दबंगों का मनोबल इतना बढ़ा हुआ है कि दलितों एवं वंचित तबकों पर हमले बेतहाशा बढ़े हैं। इस डर के माहौल में अल्पसंख्यक समुदाय और भी ज्यादा डरा हुआ है क्योंकि उ.प्र. सरकार की विचारधारा बार बार एक विशेष समुदाय पर हमलावर होती है जिसके कारण पुलिस प्रशासन भी उसके प्रति असंवेदनशील और हमलावर रहता है।

एडवा लखनऊ की जिला सचिव सीमा राना ने कहा कि उ.प्र. पुलिस इतनी बेलगाम हो चुकी है कि एक हत्यारे पुलिसवाले के समर्थन में वे विद्रोह पर उतारू हो जाते हैं और चन्दा तक एकत्र करते हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि पुलिस का यह दुःसाहस निश्चित रूप से ‘ठोक देने’ की खुली छूट के कारण बड़ा है। आज पुलिस और अधिकारियों को आम जनता के लिए समय नहीं है वे अपने आकाओं की सेवा में लगे हैं।


एक ओर पुलिस का बेलगाम चरित्र और दूसरी ओर पुलिस कर्मियों द्वारा आत्महत्या के मामले भी सवाल खड़ा करते हैं। हमसफर संस्था की अर्चना ने कहा कि सरकार यूं तो महिलाओं की बहुत हितैषी बनती है किन्तु सच्चाई यह है कि महिलाओं एवं बच्चियों के खिलाफ लगातार अपराध बढ़ रहे हैं।

कहा कि कानून व्यवस्था की बदहाल स्थिति को दुरूस्त करने के स्थान पर योगी सरकार जिलों के नाम बदलकर प्रदेश की ऐतिहासिक विरासत के साथ छेड़छाड़ कर रही है। उन्होंने आह्वाहन किया कि आज आम जनता को इस भयावह स्थित से निपटने के लिए बेखौफ आवाज उठानी होगी।

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