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कृष्णा सोबती को जन संस्कृति मंच की श्रद्धांजलि

बड़े दुःख के साथ यह कहना पड़ रहा है कि हिंदी कि सुप्रसिद्ध लेखिका कृष्णा सोबती 93 वर्ष की अवस्था प्राप्त कर आज शुक्रवार को दिल्ली के एक अस्पताल में हमारे बीच से सदा – सदा के लिए विदा हो गईं।

वे हिंदी जगत की वरिष्ठतम लेखिका के रूप में हिंदी कथा की एक बहुत ही सशक्त स्वर के रूप में विद्यमान थीं। जीवन के अंतिम दौर में भी वो पूर्णतः सजग और सक्रिय रहीं।

केवल साहित्य के भीतर की ही नहीं बल्कि बाहर के समाज की चिंताएं भी उनकी चेतना में बराबर रहीं। अभी पिछले साल हंस में प्रकाशित उनका साक्षात्कार इस बात का प्रमाण है। ‘मित्रो मरजानी ‘, ‘सूरजमुखी अंधेरे के’ जैसी अपनी प्रारंभिक रचनाओं से ही उन्होंने हिंदी कथा जगत में अपनी विशिष्ट शैली से अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया था। यह रचनाएं स्त्री के अस्तित्व और अस्मिता के प्रति बहुत ही सजग और सचेत ढंग से अपने समय से आगे की बात बहुत ही बेबाकी और खुलेपन से करने के लिए आज भी स्मरणीय हैं। अपने निज के प्रति सचेत और समाज के प्रति संवेदनशील होने का प्रमाण इन रचनाओं में मिलता है।

‘ जिंदगीनामा ‘ जैसी विस्तृत फलक वाली कृति में पंजाब के जीवन की प्रामाणिक छवियां देखने को मिलती हैं। ‘ दिलोदानिश ‘, ‘ समय सरगम ‘ और ‘ ऐ लड़की ‘ जैसी रचनाएं तथाकथित स्त्री विमर्श की बहु प्रचलित शैलियों से अलग अपना विशिष्ट अंदाज़ – ए – बयां के लिए रेखांकित की जाती हैं।

जीवन के अंतिम समय तक उन्होंने लेखन के प्रति अटल विश्वास बनाए रखा। 2017 में उनका एक उपन्यास ‘ गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान ‘ विभाजन की विभीषिका और तत्कालीन स्थितियों का जीवंत दस्तावेज बन गया।

कृष्णा जी को साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ जैसे सम्मानों से सम्मानित किया गया। पद्मश्री जैसी उपाधि को भी उन्होंने अपनी दृढ़ प्रतिबद्धता का प्रमाण देते हुए अस्वीकार कर दिया था। उन्होंने हमेशा अपनी कलम को केवल अपनी साहित्यिक अभिव्यक्ति के लिए ही नहीं बल्कि अपनी प्रतिरोध चेतना की अभिव्यक्ति के लिए भी इस्तेमाल करने का संकल्प लिया जिस पर वो आजीवन अडिग रहीं। ऐसी दायित्व सजग समर्पित लेखिका के न रहने से हिंदी जगत की एक अपूर्णनीय क्षति हुई है।

हम जसम की ओर से स्मृतिशेष कृष्णा जी को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

प्रो० राजेंद्र कुमार, अध्यक्ष, जन संस्कृति मंच की ओर से जारी

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