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आंतरिक सौंदर्य की अभिव्यक्ति का तीन दिवसीय मेला

पेंटिंग, स्कल्पचर, फोटोग्राफ, प्रिंट्स जैसे विजुअल आर्ट के तमाम माध्यमों के जरिए समाजिक जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से अभिव्यक्ति एक्सप्रेशन का साझा वार्षिक प्रदर्शनी कार्यक्रम के तहत दिल्ली के प्यारे लाल भवन के आर्टीजन आर्ट गैलरी में तीन दिवसीय (13,14,15 दिसंबर) अंतर्राष्ट्रीय फाइन आर्ट इक्जीबिशन का आयोजन किया गया।

आयोजन के सहआयोजकों में कार्निटस, सलाम नमस्ते रेडियो और टाइगर न्यूज प्रमुख रूप से शामिल रहे। तीनदिवसीय कला प्रदर्शनी का 13 दिसंबर की शाम उद्घाटन मशहूर राजनीतिक कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी और अर्चना रामसुंदरम लोकपाल सदस्य और सशस्त्र सीमा बल की प्रथम महिला डीजी के हाथों दीप प्रज्जवलित करके किया गया।

कार्यक्रम के प्रमुख आयोजनकर्ता और पेंटर सौम्या पांडेय ने बताया कि हर साल आयोजित होने वाले इस वार्षिक कार्यक्रम की हम एक समाजिक थीम रखते हैं जिसके जरिए एक समाजिक संदेश दे सकें हैं। इस साल की थीम है ‘सुंदरम द इटर्नल ट्रुथ’।

‘इटर्नल ट्रुथ’ से मतलब है कि जो साश्वत है, जो हमेशा रहता है वही सुंदर है। हम केवल व्यक्ति की शारीरिक सुंदरता की नही बल्कि मानवता की आंतरिक मजबूती के बार में है। शरीर को चेहरे को दिमाग को खराब किया जा सकता है लेकिन दिमाग की मजबूती और अंदर की स्प्रिट कभी खत्म नहीं होती।

लोग खत्म हो जाते हैं लेकिन इंसान के दिमाग के विचार और विचारधारा कभी खत्म नहीं होती। लड़ने की दिमाग की जो अंदरूनी मजबूती है, स्प्रिट है वो भी खत्म नहीं होती। गलत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की हिम्मत लोगो में है हम उसे और बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।

जैसा कि अहम् बह्मास्मि हमारे यहां सूक्ति है तो इंसान के दिमाग में ही सारा यूनिवर्स मानव मस्तिष्क का रिफ्लेक्शन है। तो ऐसा कुछ भी नहीं जो हम न कर सकें या ऐसा कोई दुख नहीं जिसे हम न जीत सकें यही हमारे प्रदर्शनी की थीम है।

इस प्रदर्शनी में तीन पीढ़ियों की कलाकृतियों का प्रदर्शन किया, हालांकि प्रदर्शनी में युवा और बच्चों की कलाकृतियों को तरजीह दिया गया। नोएडा के कैंब्रिज स्कूल में पढ़ने वाली कक्षा आठवीं की छात्रा शिवानी अपनी पेंटिंग इक्सपेक्टेशन दिखाती हैं इस पेंटिंग में एक स्त्री बैठी चांद को निहार रही है। इसमें उन्होंने मुग़ल और राजस्थानी मिनएचर शैली का मिला-जुला इस्तेमाल किया है।

बेंग्लुरू के कलाकार सुरेश प्रदर्शनी में अपने तमाम ‘पेन ड्राइंग’ के साथ मौजूद थे। सुरेश जी अपने पेन ड्राइंग में सब्जेक्ट के रूप में संकटग्रस्त और लगभग विलुप्त हो चुके जीवों को चुनते हैं। वो अपनी ‘लास्ट ह्वाइट राइनो’ दिखाते हैं। इसके अलावा उन्होंने हाथियों पर बहुत से पेन ड्राइंग बनाए हैं इनके जरिए उन्होंने पारिवारिक मूल्यों और उनकी जटिलताओं को दर्शाया है। इसके अलावा उन्होंने अफ्रीकी शेर के बच्चे (कब), इंसान के बच्चे के भावों को भी दर्शाने वाले पेन ड्राइंड बनाए हैं। कपल चिंपैंजी के पेन ड्राइंग के जरिए उन्होंने स्त्री-पुरुष संबंधों के सौंदर्य को भी दर्शाने का प्रयास किया है।

अगली दीवार पर चेतना जी अपनी पेंटिंग के साथ मौजूद हैं। उन्होंने अपनी पेंटिंग ‘इनसाइड आउट’ में रंगों और रेखाओं के जरिए आंतरिक सौंदर्य को अभिव्यक्त किया है। वो बताती हैं कि हमें अपनी दुनिया में चाहे-अनचाहे कई नकली चेहरे ओढ़कर रखने पड़ते हैं, ऐसे में हमें दोहरी जिंदगी जीनी पड़ती है। हम जो हैं, जैसे हैं हमें उसी तरह जीना चाहिए। पेंटिंग इनसाइड आउट अपनी आंतरिकता को बाहर लाने का मेसेज देती है।


सौम्या पांडेय और उनके पिता डॉ कमलेश दत्त पांडेय की पेंटिंग एक दीवार पर लगी हैं। कमलेश पांडेय की पेंटिंग ‘वल्चर’ दहेज प्रथा की क्रूरता को अभिव्यक्त करता है। उनकी दूसरी पेंटिंग ‘भेड़-चाल’ मौजूदा राजनीति व समाज की विडंबना दिखाती है। पेंटिंग में दिखाया गया है कि कैसे हम अपने लोकतांत्रिक शक्ति और राजनीतिक चेतना खोकर किसी धूर्त नेता के लिए महज भेड़-भीड़ बनकर रह गए हैं। कमलेश दत्त पांडेय की पेंटिंग समीक्षावादी आर्ट्स शैली की पेंटिंग हैं और इन्हें बनाने में उन्होंने तैल रंगों का प्रयोग किया है।


सौम्या पांडेय कालीघाट स्टाइल में बनी हुई अपनी पेंटिंग ‘सेलिब्रेशन ऑफ गर्ल्स चाइल्ड’ दिखाते हुए बताती हैं कि ये पेंटिंग ये मेसेज देती है कि स्त्रियों को अपनी बच्चियों के जन्मोत्सव मनाना चाहिए तभी ये समाज अपनी समाजिक कुरूपता से मुक्त हो सकेगा। उनकी दूसरी पेंटिंग ‘एसिड सर्वाइवर’ एसिड हमले की शिकार लड़कियों के आंतरिक शक्ति की अभिव्यक्ति है। पेंटिंग में दिखाया गया है कि चेहरे की सुंदरता खत्म होने से लड़कियां खत्म नहीं हो जाती। बल्कि उनकी आंतरिक सुंदरता ही उनकी असली ताकत बनकर उन्हें उभारती है। सौम्या पांडेय ने अपनी इन पेंटिंगों में एक्रिलिक रंगों का प्रयोग किया है।


इस तीन दिवसीय प्रदर्शनी की सबसे अच्छी और सराहनीय बात ये थी कि यहाँ छोटे छोटे स्कूली बच्चों को भी अपने आर्ट्स प्रदर्शनी के जरिए अपनी अभिव्यक्ति का अवसर और प्रोत्साहन दिया गया। अभिव्यक्ति और आर्ट्स महँगे कैनवास और संसाधनों का गुलाम नहीं होता स्कूल आर्ट बुक में बनाकर प्रदर्शन के लिए लगाई गई बच्चों की पेंटिंग यही संदेश संप्रेषित कर रही थी।

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