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सरकार पीछे हट रही है और आपकी जीत होगी

प्रयागराज: 22 फरवरी

रोशन बाग में 40 दिन से ऊपर धरना चला रही बहादुर महिलाओं और उनका साथ दे रहे तमाम छात्रों युवाओं नागरिकों को सलाम करते हुए समकालीन जनमत के संपादक के के पांडे ने कहा कि भाजपा की सरकार ने संविधान विरोधी 3 कानूनों सीएए एनपीआर एनआरसी के त्रिशूल से देश की अमन पसंद आवाम के सीने पर हमला कर, उसकी रूह को छलनी करने, उसकी एकता और भाईचारे को अंतिम चोट पहुंचाकर, सभी के देश को सांप्रदायिक उन्माद और हिंसा के बल पर हिंदू राष्ट्र बनाने की कोशिश की है।उसके खिलाफ देशभर के छात्र छात्राएं जवान जब लाठी गोली खाकर शहादत दे रहे थे, तब देश की आम महिलाओं ने आगे बढ़कर झंडा थाम लिया। आज उनकी अगुवाई में पूरे देश में चल रहे आंदोलनों ने 1857 से लेकर 1947 तक की आजादी की लड़ाई से प्राप्त सामाजिक राजनीतिक जागरण के मूल्यों समानता बंधुत्व और नागरिक स्वतंत्रता को सचमुच हासिल करने की लड़ाई में तब्दील कर दिया है।
2019 में भारी बहुमत से जीतकर आई भाजपा सरकार ने 200 से ज्यादा दिनों से कश्मीर को जेल में तब्दील करके, बाबरी मस्जिद पर आए फैसले पर भी लोगों की लोगों की शांति और सब्र को कमजोरी मान कर, लंबे समय तक के लिए देश में विभाजन गहरा करने और 130 करोड़ लोगों को मुकदमों में उलझा देने के कानून को लाकर यह सोचा कि उसे इसका जवाब नहीं मिलेगा । इसमें उलझे लोग उसकी गरीब विरोधी आर्थिक नीतियों, आरक्षण पर हमला कर वंचितों से उनका हक छीनने , बढ़ती बेरोजगारी से तबाह युवाओं, सब के सवाल को वह पीछे धकेल देगी।
पर उसका दांव उल्टा पड़ा है। देश की महिलाओं ने सिविल नाफरमानी का ऐसा शानदार आंदोलन शुरू किया कि 1 इंच भी पीछे नहीं हटने की घोषणा करने वाले, अब कई कई इंच पीछे खिसक रहे हैं । अब सीएए पर संशोधन मांग रहे हैं, एनपीआर के 31 सवालों से घटकर 17 सवाल तक आए हैं। असम में हुई 10 साल के एनआरसी की प्रक्रिया को एनआरसी कमेटी के केंद्र के सलाहकार रहे मृणाल तालुकादार कह रहे हैं कि “हमने एक पागलपन में जिंदगी गुजार दी”। असम एनआरसी के स्टेट कोऑर्डिनेटर सरमा कह रहे हैं कि यह एनआरसी गलत है। कुल मिलाकर यह सब यह बताता है कि सरकार अपने मकसद में फेल हो रही है।और यही इस आंदोलन की ताकत है। आपके सब्र और शांतिपूर्ण आंदोलन ने प्रचंड बहुमत की सरकार के घमंड को तोड़ना शुरू किया है। उत्तर प्रदेश जहां सबसे ज्यादा बर्बर दमन हुआ 24 लोगों की शहादत हुई है । वहीं इन शहादतों की तकलीफ़ को अपने सीने में जज्ब करके आप जो बैठी हुईं है यही सब्र और दुःख की ताकत शहादतों को बेज़ा नहीं जाने देगी।आप सब और यह आंदोलन उम्मीद की रोशनी लेकर आया है, जिससे इस मुल्क का संविधान बचेगा, उसकी आत्मा बचेगी और लोकतंत्र बचेगा।

आप सब को सलाम करते हुए देश के तमाम लेखक कलाकार संस्कृति कर्मी पत्रकार लोग 1 मार्च को जंतर मंतर दिल्ली पर इस आंदोलन को समर्थन देने और सीएए एनपीआर एनआरसीसी के खिलाफ इकट्ठा हो रहे हैं। उनका नारा है “हम देखेंगे”। इलाहाबाद से भी तमाम संगठनों के लेखक कलाकार दिल्ली जरूर आएं और इन बहादुर महिलाओं के हमकदम बनें।

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