समकालीन जनमत
साहित्य-संस्कृति

तेलंगाना एक बार फिर से जमींदारों के शिकंजे में कस गया है

एन. आर.श्याम

“भारतवर्ष में समय-समय पर उत्पादन के साधनों पर मालिकाना हक, उत्पादन संबंधों में बदलाव और उत्पादन करने वाली शक्तियों की उन्नति, अभिवृद्धि के लिए जहाँ एक ओर दलितों और किसानों का आंदोलन होता रहा, वहीं दूसरी तरफ उसे कुचलने का प्रयास भी होता रहा । कोरेगांव सभा को भी इसी रूप में और इस संबंध में हुई गिरफ्तारियों को भी लोगों का ध्यान भटकाने के रूप में देखा जाना चाहिए ।” ये शब्द हैं तेलगू के प्रमुख कहानी, उपन्यासकार अल्लम राजैय्या के ।
ये हैं तेलंगाना के कामारेड्डी जिला केंद्र में हाल ही में आयोजित तेलंगाना लेखक मंच की जिला इकाई सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में कहे गए शब्द ।
जिला इकाई मंच का सम्मेलन होने के बावजूद इसका महत्व इसलिए है कि इसमें इसके राज्य स्तर के पदाधिकारियों ही नहीं, तेलगू के नामी गिरामी लेखकों ने भी हिस्सा लिया । तेलंगाना राज्य के निर्माण के बाद इसकी चुनी हुई चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति (टी.आर.एस) की सरकार ने अपना कार्यकाल समाप्त होने के 9 महीने पहले ही असेम्बली भंग कर मध्यावधि चुनाव की दिशा में कदम बढ़ाया है, इस डर से कि कहीं बाद में इसकी साख न गिर जाए और चुनाव में मुँह की न खाना पड़े ।

पुस्तक स्टाल का उदघाटन करते हुए तेलुगु के जनकवि अन्देश्री

तेलंगाना राज्य बनने के बाद यह दूसरा चुनाव है । तेलंगाना की जनता के लिए यह एक बहुत ही निर्णायक क्षण है । वह पीछे मुड़कर देख रही है कि नया राज्य बनने के बाद उसने क्या पाया है, क्या खोया है, क्या उसे अपने सपने का ‘बंगारू तेलंगाना’ यानी कि स्वर्ण तेलंगाना मिला है ?
इस दशा में इस सम्मेलन का होना एक विशेष महत्व रखता है क्योंकि सम्मेलन में तेलंगाना की स्थिति पर जमकर चर्चा हुई ।
सम्मेलन में सम्मिलित लेखकों का मानना था कि अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए चंद्रशेखर राव ने तेलंगाना द्रोहियों और ऐसे लोगों को ऊँचे आसनों पर बिठाया है जिनका इस आंदोलन में अंश भर भी योगदान नहीं था, जिन्होंने अलग तेलंगाना राज्य के लिए लड़ाई लड़ी, अपना खून पसीना बहाया वे हाशिए पर धकेल दिए गए ।
इसके अलावा सारा तेलंगाना राज्य एक पारिवारिक पालन के अधीन चला गया है । ज्ञातव्य हो कि तेलंगाना सरकार में चंद्रशेखर राव मुख्यमंत्री हैं, उनका बेटा के.टी.आर. आई.टी. मंत्री है, उनका भांजा हरिश राव सिंचाई मंत्री है, बेटी कविता लोकसभा सदस्य है । यही नहीं, कई मुख्य पदों पर उनके अपने बंधु वर्ग और जाति वर्ग के लोग ही हैं ।

सभा को संबोधित करते हुए तेलुगु के प्रमुख कहानीकार अल्लम राजय्या

उनका मानना है कि तेलंगाना एक बार फिर से जमींदारों के चंगुल में फंस गया है । चंद्रशेखर राव स्वयं जमींदार वर्ग से हैं । वे वेलमा जाति से हैं । तेलंगाना सरकार में अधिकतर विधायक इसी जाति से हैं, या फिर इसके पुश बैंक से ही आए हैं ।
तेलंगाना में 1947 का खेतिहर किसान आंदोलन और 1970 से आरंभ हुए सशस्त्र आन्दोलनों से इन जमींदारों की जो साख गिरी थी वह फिर से कायम हो गई है । मिशन काकतीय (राज्य के सारे तालाबों के पुनरुद्धार की वृहद योजना), मिशन भागीरथ (राज्य में हर घर में पीने के पानी की नल द्वारा आपूर्ति योजना), वृहद कलेश्वरम जल परियोजना जैसे प्रोजेक्ट्स में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर या तो इन्हीं जमींदारों द्वारा हथियाए गए हैं या फिर आन्ध्रा के ठेकेदारों द्वारा, जिनसे छुटकारे के लिए तेलंगाना की जनता ने आंदोलन कर अलग राज्य पाया था ।
आन्ध्रा कांट्रैक्टर हो या अन्य कोई, चांदी तो इनकी ही है । इसी वर्ग को मालामाल बनाने के लिए चंद्रशेखर राव ने किसानों को खेती के लिए एकड़ का 8 हजार रुपये के हिसाब से देने की योजना का आरम्भ किया है । देखने में यह योजना बहुत ही आकर्षक और किसानों के हित में दिखाई देती है । तेलंगाना में अधिकतर किसानों के पास एक-दो एकड़ से ज्यादा जमीन नहीं है, जिसमें अधिकांश जमीन उनके अपने नाम से या बेनामी अभी भी जमींदारों के अधीन है । इस तरह इसी अनुपात में रुपयों का बंटवारा हुआ । जहां अधिकांश किसानों को 8 हजार या 16 हजार मिला वहीं इन जमीदारों को लाखों । इसके भुगतान के लिए जमीन की कोई अधिकतम सीमा नहीं तय की गई । यह भुगतान भी खेती की जा रही भूमि पर ही नहीं बल्कि व्यर्थ पड़ी भूमि पर भी दिया गया । इस तह तेलंगाना के जमींदार वर्ग ने बैठे ठाले ही दोनों हाथों से धन बटोरा । यह अपने वर्ग को मालामाल करने की चंद्रशेखर की चाल थी ।
इस वर्ग पर सरकारी खजाने से मनमानी पैसा लुटाया गया । गाँव की अधिकतर जनता के पास तो जमीन ही नहीं है । वे भूमिहीन खेतिहर मजदूर हैं और इनकी बड़ी संख्याकौल (बंटाई) पर खेती करने वालों की है । एक एकड़ से भी कम जमीन वालों की संख्या भी बहुत है । इन सबको इस योजना से कुछ भी नहीं मिला और ये अधिकांश दलित वर्ग से ही हैं । इस तरह दलित इस सबसे वंचित रहे । यह योजना इस एक साल के लिए नहीं हर साल के लिए है। चंद्रशेखर राव की सरकार हर घर से एक नौकरी का वादा लेकर आई थी पर यह वादा पूरा नहींनकर सकी । इसी तह गरीब दलितों को भी 3 एकड़ जमीन देने का भी उसने वादा किया था, पर यह योजना भी ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है । घर विहीनों का डबल बेडरूम का सपना भी पूरा नहीं हो पाया है ।
इस सम्मेलन में कालेश्वरम जल परियोजना, जो सारे एशिया में अपनी तरह की परियोजना के रूप में जानी जा रही है, के संबंध में भी सरकार की जमकर खिंचाई हुई । यह हजारों करोड़ों रुपयों की वृहद परियोजना है । इसमें लिफ्ट करके पानी को उल्टी दिशा में बहाया जाना है । इस पर कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि प्रति एकड़ जमीन की सिंचाई पर जो लागत आएगी वह बहुत अधिक होगी, इसका डिजाइन ही गलत है ।


पूर्व आदिलाबाद जिले का सारा का सारा पानी दूसरे जिलों और मुख्य रूप से चंद्रशेखर राव के अपने चुनाव क्षेत्र सिद्दीपेट और मेदक जिलों को शस्य श्यामल बनाने और हैदराबाद पहुंचाने की दृष्टि से इस योजना की परिकल्पना की गई है । इस परियोजना का डिजाइन तैयार करते समय इससे संबंधित विशेषज्ञों की राय भी ली जानी चाहिए थी । इसका सारा भर तेलंगाना की जनता को उठाना पड़ेगा । जिज़ तरह आन्ध्रा वालों ने तेलंगाना के पानी को लूटा था उसी तरह अब उत्तरी तेलंगाना के पानी को दक्षिणी तेलंगाना द्वारा लूटा जा रहा है ।
सरकार ने रोजगार का अवसर बढ़ाने के बजाय जनाकर्षक योजनाओं पर ही करोड़ों रुपए बहाया है जिससे राज्य में बेरोजगारी बढ़ी है ।
उनका मानना है कि तेलंगाना के सक्रिय लेखकों, कलाकारों, सांस्कृतिक कर्मियों को सरकार में कुछ पड़ देकर उनका मुंह बंद कर दिया गया है । तेलंगाना साहित्य अकादमी और दूसरी साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थाओं में ऊंचे-ऊंचे पदों पर आसीन लेखकों और संस्कृति कर्मियों पर घोर अवसरवादी होने का आरोप लगाया ।
इस सम्मेलन में भाग लेने वालों में अखिल भारतीय तेलंगाना लेखक मंच के अध्यक्ष, जूकंटी जगन्नाथम, प्रमुख जनकवि अंदेशी, तेलंगाना लेखक मंच के राज्य अध्यक्ष जयधीर तिरुमल राव, प्रमुख कवि अन्नावरम देवेंदर, उदारी नारायण, अनवर, प्रमुख कहानीकार अल्लम राज्यप्पा आदि थे ।

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