समकालीन जनमत

Tag : प्रकृति

ज़ेर-ए-बहस

प्रकृति के प्रांगण में मानव की विनाश लीला!

जनार्दन
हर शहर कोहरे के साये में लिपटा हुआ है। हर तरफ़ सांसें उखड़ रहीं हैं और हर जिंदगी परेशान सी है; यह सब क्यों हो...
कवितासाहित्य-संस्कृति

मरे हुए तालाब में लाशें नहीं विचारधाराएं तैर रही हैं

आशुतोष कुमार
“जंगल केवल जंगल नहीं है नहीं है वह केवल दृश्य वह तो एक दर्शन है पक्षधर है वह सहजीविता का दुनिया भर की सत्ताओं का...
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