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फ़रज़ाना महदी और शालिनी सिंह का कहानी पाठ तथा परिचर्चा

 

उषा राय    

लखनऊ. प्रगतिशील लेखक संघ की ओर  से  24  अक्टूबर 2019 को 22  कैसरबाग़ इप्टा के दफ्तर में शाम 4 : 30  बजे शालिनी सिंह की कहानी ‘ फ़र्ज ‘ तथा  फरजाना महदी की कहानी  ‘फालिज ‘ का पाठ  हुआ।
फ़र्ज ‘  कहानी में बेटा- बेटी का फर्क ,पुरुष द्वारा  स्त्री को जागीर समझना आदि सवालों को उठाया गया है । परिवार की उपेक्षा के बावजूद रमा बी टेक करती है और नौकरी करती है , इससे उसके माता -पिता तथा होने वाले होने पति के संबंधों पर फर्क पड़ता है ।  वे लोग फायदा तो उठाते हैं लेकिन उसकी आजादी और महत्त्व को लगातार नकारते हैं।  अंत में वह जो कदम उठाती है वह बहुत से लोगों को अच्छा नहीं लगता है।
अजित प्रियदर्शी कहते हैं कि जो लोग पहले लड़कों से उम्मीद करते थे वे अब लड़कियों से करने लगे हैं तो लड़कियों के कंधों पर जिम्मदारी आयी है फ़र्ज का फंदा और मजबूत हुआ है। इससे परिवार में असहजता आ रही है।  रमा के द्वारा संबंधों को नकारते ही सारी  चीजें उसके खिलाफ हो जाती हैं। अँधेरे की उदासी बढ़ जाती है। वहीं आशीष सिंह का कहना है कि समस्यों को स्त्री की निगाह से देख गया है। परिवार में आर्थिक तानेबाने को ध्यान में रखते हुए लिखा जाता तो कहानी ज्यादा प्राणवान बनती।
इनके विचारों से असहमत होते हुए विमल किशोर ने कहा कि पितृसत्ता की क्रूरता को कम करके देखा जा रहा है जबकि स्त्री जन्म से ही भेदभाव की शिकार है।  राजेश कुमार ने कहा कि पितृसत्ता की खतरनाक परम्पराओं को धोते हुए सवर्ण महिलाएं गौरव का अनुभव करती हैं. कौशल किशोर ने कहा कि मर्दाना समाज स्त्री स्वतंत्रता को उतनी ही जगह देता है जिससे कि उसकी व्यवस्था में कोई दखल न हो। रमा पंछी की तरह उड़ना चाहती है जो उन्हें बर्दाश्त नहीं।
शोभा सिंह ने बधाई देते हुए कहा कि समाज का द्वंद्व तो देखिये वह लड़के के लिए अलग और लड़कियों के लिए अलग नियमों और सुविधाओं का कैसे निर्माण करता है। कहानी में हाशिये पर की महिलाओं की बात कही गयी है। वे बेहतर जिंदगी की ख्वाहिश रखती हैं, पर लेखिका को कहानी थोड़ी  और कसनी चाहिए थी ।  रामायण प्रसाद जी ने कहा कि  समय के साथ -साथ  लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है।
राकेश जी कहते हैं कि-
हुक्मरां ने खींच दी है कैनवस पे जो लकीर ,
कह दो उसी दायरे में ही अदाकारी रहे ।

                               परिवार समाज और देश ने  स्त्रियों के काम के महत्त्व को रेखांकित करना सीखा नहीं है। राकेश जी ने कथाकारों को शिल्प संबंधी कुछ हिदायतें  दी और विश्व के दिग्गज कथाकारों को पढ़ने को कहा। अजय सिंह ने कहा कि परम्परा को तोडना , दरकिनार करना होगा । कथाकार टकराहट को पकड़ता है और नई चीजों को लाता है। उन्होंने मुक्तिबोध का ‘काठ का सपना ‘ और किरण सिंह की ‘ यीशू की कीलें ‘ पढ़ने को कहा।
  फरजाना की कहानी ‘फालिज ‘ में  मुस्लिम समाज की दो पुश्तों की वैचारिक और राजनैतिक टकराहट को दिखाया गया है। इस कहानी में एक सरकारी नौकरी करता पिता अपने बेरोजग़ार बेटे की चिंता में उपेक्षा पूर्वक अपनी जान दे देता है। पिता -पुत्र के संवाद में हताशा और चिंता है।
कहानी पर बात करते हुए अजित प्रियदर्शी  ने कहा कि फालिज कहानी आगे चलकर प्रतीक बन जाती है , कौम को फालिज मार गया है। कहानी में सवालों के साथ मुस्लिम समाज की दुश्वारियों को उठाया गया है। फ़रज़ाना की ये चिंता है कि जैसे एक अंग के फालिज मर देने से शरीर कमजोर हो जाता है वैसे ही मुस्लिम समाज के कमजोर होने से देश कमजोर होगा।  आशीष सिंह ने कहा कि इस समाज में नए उपजे दंश को दिखाया गया है। राकेश जी ने कहा कि आप यह मत कहिये कि मुस्लिम कौम को फालिज मार गया है बल्कि उसे परिस्थितियों और संवादों में दिखाइए।
 राजेश कुमार ने कहा कि भारतीय मुसलमान सकते में है। वह इस समय भेदभाव और मॉब लिन्चिग से जूझ रहा है। फरजाना की कहानी राही और मंजूर के आगे की कड़ी लगती है।शोभा सिंह ने कहा कि  फरजाना की कहानी राजनैतिक कहानी है। दो पीढ़ियों की कहानी को मार्मिक ढंग से रखा गया है। जायज सवाल उठाये गए हैं। यह व्यवस्था तो संस्कृति को  नष्ट करने पर तुली हुई है।  वहीं कहानी कला के बारे में समझाया कि  असावधानी से कहानी की सहजता कम हो जाती है।
कौशल किशोर ने कहा कि यह द्वंद्व की कहानी है। पिता दवंद्व में है लेकिन वह  खतरों को धकेलता है।  फालिज कहानी मुस्लिम समाज की असुरक्षा और दोयम दर्जे में पहुँचने की कहानी है। यह कहानी एक बड़ा हस्तक्षेप करती है। वहीं पर रामायण प्रसाद ने मजबूत स्वर में कहा कि देखिए एक आवाज ,एक स्वर को अनेक होने में देर नहीं लगती। फासीवाद के खिलाफ बहुत बड़ा प्रतिरोध है। इसलिए इस कहानी का अंत ऐसा नहीं होना चाहिए था। आँखों में एक सपना तो रहना ही चाहिए।
विमल किशोर ने कहानी को सम्भावनाशील बताया। अजय सिंह ने कहा कि फालिज मरी कौम कहना गलत है। कौम तो द्विराष्ट्र के सिद्धांत में कहा गया। यह दो कौम नहीं एक देश है। वंचित समुदाय और संघर्ष करते लोगों के बारे में लिखना चाहिए। तबरेज अंसारी के साथ हुई दुखद घटना का पूरे देश में विरोध हुआ।
सभी वक्ताओं ने दोनों कहानीकारों को बधाई दी। कार्यक्रम के आरम्भ में  किरण सिंह ने सभी का स्वागत किया और अंत में आगंतुकों को  धन्यवाद देते हुए कहा कि आप सब अपने -अपने क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण लोग हैं। जिस प्रकार से पहली बार कहानी सुनकर सबने सधे हुए शब्दों में अपनी बातें रखीं हैं वह अभूतपूर्व है। किरण सिंह ने श्रद्धा बाजपेयी तथा अर्चिता राय के कार्य की सराहना की। कार्यक्रम का संचालन उषा राय ने किया।
इस कार्यक्रम में कल्पना दीपा ,नूतन वशिष्ठ, वेदा  राकेश ,रिज़वान, श्रद्धा बाजपेयी , अनुपमा शरद , राजेश श्रीवास्तव , प्रदीप घोष ,अनिता  सिंह  , शिरॉन , नितिन राज आदि  अनेक लोग मौजूद थे।

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