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अत्यंत कम जानकारी वाले समाज में स्मार्टफोन क्रांति

21वीं सदी में मनुष्यों का मानसिक संहार बड़े पैमाने पर हुआ है. इस सदी में टेक्नोलॉजी ने व्यापक रूप से मनुष्यों के जीवन पर प्रभाव डाला है. अरबों लोग इसके गुलाम बनते चले जा रहे हैं. यह मनुष्यों के जीवन के तमाम पहलुओं तक घुसा चला जा रहा है. इसने बड़े पैमाने पर मानव मस्तिष्क में घुसपैठ की है तथा मानवीय संवेदनाओं के तह तक घुसकर इसे लगातार नष्ट कर रही है.

भारत में हिंदूवादी दक्षिणपंथी सरकार टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर विश्व के इस सबसे बड़े लोकतंत्र के बहुसंख्यक हिस्से को मानसिक पंगु बना रही है. इस अतिपिछड़े देश के युवाओं के ‘मेंटल ब्लॉकेज’ का सरकार का प्रयास जोरों पर है. स्मार्टफोन इसका सबस अहम कारक साबित हो रहा है.

Cisco की रिपोर्ट के अनुसार 2017 के अंत में भारत में स्मार्टफोन यूजर की संख्या लगभग 404 मिलियन थी. यह 2022 तक बढ़कर लगभग 829 मिलियन तथा 2024 तक लगभग 1.1 बिलियन हो जाएगा. वर्तमान में भारत विश्व में सबसे अधिक इंटरनेट डाटा इस्तेमाल करने वाला देश बन गया है. 5G आने के बाद इंटरनेट इस्तेमाल की रफ़्तार में व्यापक तेजी आएगी.

अब सवाल है कि औसत भारतीय स्मार्टफोन का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किन कार्यों के लिए करता है? वर्तमान में औसत भारतीय स्मार्टफोन पर सबसे ज्यादा समय WhatsAPP तथा YouTube देखने में बिताता है. उनका लगभग 90% डाटा इन्हीं दो एप्लीकेशन पर खर्च होता है. 2017 में टोटल डाटा कंजम्पशन में वीडियो का योगदान 58% था जो 2022 तक बढ़कर 77% से ज्यादा हो जाएगा.

2018 के अंत तक सिर्फ 2 मोबाईल कंपनी Xiaomi और सैमसंग भारत के स्मार्टफोन बाजार पर 50% से ज्यादा की हिस्सेदारी रखता था. साथ ही 2015 में जहाँ भारतीय स्मार्टफोन पर औसतन 7700 रूपये खर्च करते थे वे 2017 में 9960 रूपये खर्च करने लगे. 2022 में यह बढ़कर 12000 रूपये से ज्यादा हो जाएगा. साथ ही औसत भारतीय स्मार्टफोन पर प्रतिदिन लगभग 4 घंटे से ज्यादा समय बिताता है.

स्मार्टफोन पूर्ण रूप से अभी भारतीय समाज के अंतिम पायदान तक पहुंचा भी नहीं है. इसकी रफ़्तार अत्यंत तेज है. सरकार ने बड़े सिलसिलेवार ढंग से शिक्षा और सही जानकारी को भारतीय समाज से गायब करने की साजिश रची है. ऐसे समाज में सिर्फ स्मार्टफोन का प्रयोग कर नागरिकों के दिमाग पर कब्जा किया जा रहा है.

भारतीय समाज इतनी कम जानकारियों के साथ पला-बढ़ा है कि सिर्फ ‘फेक न्यूज़’ परोसकर उसे लम्बे समय तक इंटरटेन किया जा सकता है. इस समाज के लिए जानकारी के मायने अत्यंत सीमित रहे हैं. ऐसे में स्मार्टफोन पर दिखने वाली तमाम सच्ची-झूठी चीजें उनके लिए एक तरह का ‘यूरेका’ साबित हो रहे हैं.

सरकार का ‘डिजिटल इंडिया’ प्लान मेरी नजर में सिर्फ स्मार्टफोन और इंटरनेट और इससे संबंधित टेक्नोलॉजी को अंतिम तबके तक पहुँचाना है ताकि मानवीय मस्तिष्क पर सरकार का व्यापक प्रभुत्व स्थापित किया जा सके. इसके लिए निजी कंपनियों को हद तक छूट दी गई है.

ये ताकतें तेजी से नागरिकों का रियल वर्ल्ड से डिजिटल वर्ल्ड में शिफ्टिंग के लिए जिम्मेदार है. ये तमाम पीढ़ियों को डिजिटल वर्ल्ड में शिफ्ट करना चाहती है ताकि उनको सिर्फ एक स्मार्टफोन के जरिये संचालित किया जा सके. WhataAPP के जरिये एक तबके को संचालित कर उन्हें हत्यारा बनाने का कार्य शुरू किया जा चूका है.

मार्क्सवादी-जनवादी कवि गोरख पांडे ने लिखा है कि,

ये आँखें हैं तुम्हारी

तकलीफ का उमड़ता हुआ समंदर

इस दुनिया को

जितनी जल्दी हो बदल देना चाहिए

गोरख जिस ‘जितनी जल्दी’ की बात कर रहे थे अब ‘उससे ज्यादा जल्दी’ का समय आ गया है. यह समय गोरख के मनुष्यता के संकट के समय से बहुत आगे निकल चुका है. टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर बड़े पैमाने पर मानवीय मस्तिष्क और संवेदनाओं पर प्रभुत्व जमाने की कोशिश की जा रही है. यह वर्तमान सामाजिक व्यवस्था के अंत का समय होना चाहिए ना कि मनुष्यता के अंत का. कहीं यह मनुष्य के तय होने की सदी ना बन जाए?

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