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अनामिका को दिया गया रेवांत मुक्तिबोध सम्मान

(स्त्री संघर्ष पुरुषों के विरुद्ध नहीं विपरीत विचारधारा के खिलाफ है।)
रोली शंकर
‘उन्होंने चिट्ठी मरोड़ी/और मुझे कोंच दिया काल-कोठरी में/अपनी कलम से मैं लगातार/खोद रही हूं तब से/काल-कोठरी में सुरंग’
ये काव्य पंक्तियां हैं  हमारे दौर की मशहूर कवयित्री अनामिका की।
 हिन्दी साहित्य व संस्कृति की पत्रिका ‘रेवान्त’ की ओर से हर साल दिया जाने वाला प्रतिष्ठित ‘रेवान्त मुक्तिबोध साहित्य सम्मान – 2018’ के लिए उनका चयन किया गया था। यह सम्मान उन्हें कैफी आजमी एकेडमी,  निशातगंज के सभागार में आयोजित भव्य समारोह में दिया गया जिसकी अध्यक्षता प्रसिद्ध कथाकार व उपन्यासकार शिवमूर्ति ने की।
 लखनऊ के साहित्य जगत के लिए यह सुखद, आत्मीय और अविस्मरणीय पल था जिसमें बेहद भावुक संवेदनशील, आत्मीय और ममतामयी अनामिका जी को सम्मान प्रदान किया गया। इसके तहत अंग वस्त्र, स्मृति चिन्ह, प्रशस्ति पत्र तथा ग्यारह हजार रुपये दिये गये। प्रशस्ति पत्र का वाचन कथाकार अलका प्रमोद द्वारा किया गया। पत्रिका की संपादक डा अनीता श्रीवास्तव ने मुक्तिबोध के संघर्ष को याद करते हुए सभी अतिथियों का स्वागत किया।
अनामिका आधी आबादी का समवेत मुखर स्वर हैं। इस मौके पर उन्होंने कहा कि पुरुष से लड़ाई में पुरूष बनने की आवश्यकता नहीं हैं। वस्तुतः यह लड़ाई किसी पुरुष व स्त्री की हैं ही नहीं । यह लड़ाई दो विपरीत विचारधाराओं की हैं। उन पर विजय अपने मूलभूत सिद्धान्तों तथा तार्किक आधार पर ही हो सकती हैं।
सम्मानित कवयित्री अनामिका
उन्होंने अपने वक्तव्य में एक कार्टून चित्र का जिक्र किया जो 1920 में किसी पत्रिका के आवरण पर छपा था, जिसमें भगवान कृष्ण त्रिभंगी मुद्रा में खड़े थे। उनकी बांसुरी पर लिखा था – नारी शिक्षा। चित्र में दिखाया गया कि सभी तरफ से स्त्रियां निकल कर आ रहीं हैं, किसी के हाथ में वैनिटी बैग, किसी के हाथ में सिगार और उनके घर के बड़े-बूढे, बच्चे उन्हें आवक खड़े देख रहे हैं। यह व्यंग उस समय के सामाजिक मन को बताता हैं कि नारी शिक्षा के नाम पर लोग कैसे आशंकित रहें होंगे । यह आशंका आज भी हैं, पढ़े लिखे हो जाने के बाद भी।
अनामिका ने अपने वक्तव्य में जिस चीज पर जोर दिया, वह है ‘सत्य’। उनका कहना था कि संसार की संरचना व संरक्षण का एकमात्र बीज तत्व है ‘सत्य’ । यह सत्यबोध जिसको हो जाता है, उसे एक राह मिल जाती हैं। पर यह सत्य है क्या ? कौन इसे जनता है? कौन इसे पहचानता है ? जिसने जाना समझा उसने इसे बहुत गहरे से गुना, उसे रचा और संसार को दे दिया। पर इसे पढ़ कर दो तरह के ज्ञानी हुए, एक जिन्होंने इस ज्ञान को सभी को समर्पित कर दिया। दूसरे वे तोड़ मरोड़ कर अपनी जेब में रख दिया। यह सत्य एक रुमाल नहीं है जिसे अपनी जेब में मोड़ कर रख लिया जाए। आवश्यकता है कि हम एक बड़ी सी चटाई बनाये जिसपर बैठकर सभी जाने कि सत्य क्या हैं। संवाद जरूरी है। इस मौके पर उन्होंने अपनी दो कविताएं भी सुनाई।
कार्यक्रम में अनामिका जी के रचना संसार पर विचार भी हुआ जिसका आरम्भ कवि और ‘रेवान्त’ पत्रिका के प्रधान संपादक कौशल किशोर ने किया। प्रसिद्ध आलोचक वीरेन्द्र यादव, ‘तद्भव’ के सम्पादक व कथाकार अखिलेश और युवा कवि व आलोचक अनिल त्रिपाठी ने भी अपनी बात रखी।
वक्ताओं का कहना था कि मुक्तिबोध की तरह अनामिका भी काल का अतिक्रमण करती हैं। इनकी कविताओं में अतीत से चली आ रही पितृसत्तात्मक व्यवस्था की अनुगूंजे हैं। ये किसी परम्परा से न जुड़कर नई परम्परा बनाती है। इनमें लोकगीतों वाली मधुरता है। उसका असर भी दिखता है। अनामिका अपनी कविताओं में छोटे-छोटे अनुभवों को बड़ा अर्थ देती हैं। इस संदर्भ में उनकी ‘तलाशी;, ‘आम्रपाली’, ‘स्त्रियां’, ‘प्रेम के लिए फांसी’, ‘जुएं’, ‘जन्म ले रहा है एक नया पुरुष’ आदि की विशेष तौर से चर्चा की गयी।
वक्तओं का यह भी कहना था कि अनामिका की पहचान कवयित्री की बनी है। लेकिन उन्होंन कहानी, उपन्यास भी लिखे हैं। इनका स्त्री विमर्श पुरुष विरोधी न होकर उसमें सविनय अवज्ञा वाली प्रवृति मिलती है। इनमें वह सजगता मिलती है जो आज के दौर में जरूरी है। यह दौर है जब लेखकों की हत्याएं हुईं। एक रचनाकार को अपने लेखक की आत्महत्या की घोषण करनी पड़ी। मुक्तिबोध ने अभिव्यक्ति के खतरे उठाने की बात कही थी। यह आसन्न खतरा सामने है। इन स्थितियों का मुकाबला एकजुट होकर ही किया जा सकता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रसिद्ध कहानीकार शिवमूर्ति जी ने अनामिका की सृजनात्मक शैली व रचनात्मकता की भूरि भूरि प्रंशंसा की तथा कहा कि ‘रेवांत’ पत्रिका अनामिका जी को सम्मान देकर खुद सम्मानित हुआ है। उन्होंने अनामिका की ‘रेवान्त’ के नये अंक में छपी कविता ‘अनब्याही औरतें’ का पाठ कर कार्यक्रम का समापन किया।
कार्यक्रम का सफल संचालन सरोज सिंह ने किया। कथाकर दीपक शर्मा ने अनामिका को अपनी शुभकामनाएं दी और  कवयित्री विजय पुष्पम ने सभी का आभार प्रकट किया। इस मौके पर रवीन्द्र वर्मा, शीला रोहेकर, शैलेन्द्र सागर, कात्यायनी, विजय राय, सुभाष राय, भगवान स्वरूप कटियार, सुधाकर अदीब, राजेश कुमार, डा निर्मला सिंह, उषा राय, दिव्या शुक्ला, विमल किशोर, अलका पाण्डेय, अरुण सिंह, तरुण निशान्त, संजीव जयसवाल, आशीष सिंह, उमेश पंकज आदि सहित बड़ी संख्या में साहित्य सुधी उपस्थित थे जिनमें महिला रचनाकारों की संख्या उल्लेखनीय थी।

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