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ग्राउन्ड रिपोर्ट

रामनरेश राम : किसानों की मुक्ति के प्रति प्रतिबद्ध एक क्रांतिकारी कम्युनिस्ट

( बिहार के आरा में अखिल भारतीय किसान सभा की ओर से 26 अक्टूबर को ‘ भाजपा भगाओ किसान बचाओ रैली’ होने वाली है। यह रैली भोजपुर के क्रांतिकारी किसान आंदोलन के शिल्पकारों में से एक कामरेड रामनरेश राम की आठवीं बरसी के मौके पर हो रही है. )
किसान-मजदूरों, दलित-वंचित-उत्पीड़ित समुदायों और लोकतंत्रपसंद लोगों के पसंदीदा नेता, 60 के दशक के लोकप्रिय मुखिया और 1995 से लगातार तीन बार विधायक रहने वाले अत्यंत ईमानदार और जनप्रिय विधायक का. रामनरेश राम का पूरा जीवन एक प्रतिबद्ध क्रांतिकारी कम्युनिस्ट का जीवन था।
1924 में जन्मे का. रामनरेश राम जब मीडिल स्कूल में पढ़ रहे थे, तभी 1942 का आंदोलन हुआ। उसी साल 15 सितंबर को भोजपुर के लसाढ़ी गांव में आंदोलनकारियों की तलाश में गए ब्रिटिश हुकूमत के सैनिकों का किसानों ने परंपरागत हथियारों के साथ प्रतिरोध किया और उनकी मशीनगन की गोलियों से शहीद हुए। का. रामनरेश राम उन शहीद किसानों को कभी भूल नहीं पाए। स्कूल की पढ़ाई छूट गई और वे आंदोलन का हिस्सा हो गए। उसके कुछ वर्षों बाद ही तेलंगाना का किसान विद्रोह हुआ, उसके नेतृत्वकारी बालन और बालू की फांसी की खबर और आंदोलनकारियों पर लादे गए फर्जी मुकदमों के विरुद्ध कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए फंड जुटाने के लिए की गई कम्युनिस्ट पार्टी की अपील उन तक पहुंची और वे फंड जुटाने के कार्य में लग गए।
1951 में का. रामनरेश राम को कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता मिली। उन्हें शाहाबाद जिला कमिटी का सदस्य बनाया गया। उन्हें किसानों के बीच काम करने की जिम्मेवारी मिली। बिहार सरकार ने जब सिंचाई रेट में दुगनी वृद्धि की, तो 10 मार्च 1954 को उसके विरुद्ध एक बड़ा प्रदर्शन कम्युनिस्ट पार्टी ने संगठित किया। 1965 में का. रामनरेश राम एकवारी ग्राम पंचायत के मुखिया चुने गए। मुखिया के रूप में वे इतने लोकप्रिय हुए कि उनके इलाके के किसान-मजदूर अंत-अंत तक उन्हें मुखिया कहकर ही संबोधित करते रहे।
1967 में जब वे सहार विधान सभा से सीपीआई-एम के उम्मीदवार के बतौर चुनाव लड़ रहे थे, तभी उनके चुनाव एजेंट जगदीश मास्टर पर सामंतों ने जानलेवा हमला किया। उसके बाद ही सामंती शक्तियों और राज्य तंत्र के गठजोड़ के खिलाफ हथियारबंद संघर्ष शुरू हुआ। भोजपुर में सामंती सामाजिक ढांचे और उसकी हिमायत में खड़े राजनीतिक तंत्र के खिलाफ संग्राम छिड़ गया। रामनरेश राम, जगदीश मास्टर, रामेश्वर यादव समेत सभी नेतृत्वकारियों को भूमिगत होना पड़ा। तब तक 1967 का नक्सलबाड़ी किसान विद्रोह हो चुका था और भोजपुर का किसान आंदोलन उस आंच से सुलग उठा था। एक नई कम्युनिस्ट पार्टी भाकपा-माले का जन्म हो चुका था। भोजपुर किसान आंदोलन के नेतृत्वकारी उसमें शामिल हो चुके थे।
शासकवर्ग ने इस आंदोलन को कुचल देने के लिए भीषण दमन का सहारा लिया। का. रामनरेश राम के सहयोद्धा का. मास्टर जगदीश और का. रामेश्वर यादव शहीद हो गए। भाकपा-माले के दूसरे महासचिव का सुब्रत दत्त भी पुलिस के साथ मुकाबला करते हुए शहीद हुए। बुटन मुसहर, रामायण राम, नारायण कवि, शीला, अग्नि, लहरी समेत कई कम्युनिस्ट कार्यकत्र्ताओं ने एक नए राज-समाज के लिए संघर्ष करते हुए अपनी शहादत दी। शोक और धक्के को झेलते हुए का. रामनरेश राम सर्वहारा की दृढ़ता और जिजीविषा के साथ अपने शहीद साथियों के सपने को साकार करने में लगे रहे। का. स्वदेश भट्टाचार्य और भाकपा-माले के तीसरे महासचिव का. विनोद मिश्र और अपने अनेक साथियों के साथ उन्होंने भोजपुर के किसान-मजदूरों को संगठित करने का काम जारी रखा। उन्होंने भाकपा-माले के संस्थापक महासचिव का. चारु मजुमदार की इस बात को आत्मसात कर लिया था कि जनता की जनवादी क्रांति जरूरी है, जिसकी अंतर्वस्तु कृषि क्रांति है।
अस्सी के दशक में उन्हें भाकपा-माले के बिहार राज्य सचिव की जिम्मेवारी मिली। इसके पहले बिहार प्रदेश किसान सभा का निर्माण हो चुका था। का. रामनरेश राम, स्वतंत्रता सेनानी और जनकवि का. रमाकांत द्विवेदी ‘रमता’ और कई अन्य नेताओं ने बिहार प्रदेश किसान सभा का गठन किया, जो अब अखिल भारतीय किसान महासभा में समाहित हो चुका है।
का. रामनरेश राम जब विधायक बने, तो उन्होंने सिंचाई के साधनों को बेहतर बनाने की हरसंभव कोशिश की। मुकम्मल भूमि सुधार और खेत मजदूरों, बंटाईदार और छोटे-मंझोले किसानों के हक-अधिकार के लिए सदैव मुखर रहे। विधायक बनने के बाद उन्होंने 1942 के शहीद किसानों की याद में एक भव्य स्मारक बनवाया। किसान विद्रोहों और आंदोलनों के प्रति उनके मन में गहरा सम्मान था। उनके लिए 1857 का जनविद्रोह किसानांे के बेटों द्वारा किया गया विद्रोह था। वे स्वामी सहजानंद सरस्वती को ब्रिटिश शासनकाल में बिहार में किसान आंदोलन की शुरुआत में स्वामी सहजानंद सरस्वती की अहम भूमिका मानते थे।
जीवन के अंतिम वर्षों में का. रामनरेश राम बदले हुए दौर में किसान आंदोलन पर एक किताब लिखना चाहते थे, जो संभव नहीं हो पाया। 26 अक्टूबर 2010 को उनका निधन हो गया।
इस बार उनकी आठवीं बरसी का अवसर किसानों की मुक्ति के उनके सपनों के लिहाज से महत्वपूर्ण होगा। इस मौके पर ‘खेत, खेती, किसान बचाओ, कारपोरेट लूट का राज मिटाओ’ नारे के साथ जो ‘भाजपा भगाओ, किसान बचाओ’ रैली हो रही है, उसे भाकपा-माले के महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य के साथ अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव का. हन्नान मोला, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के नेता समाजवादी विचारक योगेंद्र यादव और अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव का. राजाराम सिंह संबोधित करेंगे। इस रैली के तुरत बाद अखिल भारतीय किसान महासभा का दो दिवसीय राज्य सम्मेलन शुरू होगा, जिसमें बिहार के विभिन्न जिलों से आए प्रतिनिधि, अतिथि भाग लेंगे।
देश के आंदोलनरत किसानों के हमराह हैं भोजपुर के किसान
पिछले कुछ वर्षों में सरकार की कारपोरेटपरस्त नीतियों के खिलाफ पूरे देश में किसानों ने जगह-जगह जुझारू आंदोलन किए हैं। चाहे भूमि अधिग्रहण के विरोध का सवाल हो या सिंचाई का या डीजल, बीज, खाद की बढ़ती कीमत का या फिर सरकारी उपेक्षा और तमाम प्रतिकूलताओं का सामना करते हुए उत्पादित किए गए फसलों की वाजिब कीमत का, इन सवालों को लेकर किसानों ने जो आंदोलन किए हैं, उन आंदोलनों पर केंद्र की मोदी सरकार समेत भाजपा की राज्य सरकारें हिंसक हमला किया है। किसानों को अपनी शहादत भी देनी पड़ी है। हजारों की तादाद में किसान अपने सवालों को लेकर देश और राज्यों की राजधानी पहुंचने लगे हैं। लेकिन भाजपा की सरकारें उनकी मांगों को सुनने के बजाय उन पर लाठी-गोली चलवा रही हैं। किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला बदस्तुर जारी है। भाजपाई मंत्रियों ने किसानों पर अपमाजनक टिप्पणियां करने में पिछले सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। जाहिर है ऐसे में ‘भाजपा भगाओ, किसान बचाओ’ सिर्फ एक रैली का नाम नहीं रह जाता, बल्कि एक वाजिब नारा, एक जरूरी अपील बन जाता है, इसमें देश के किसानों का आक्रोश झलकता है- उन वास्तविक किसानों का, जिनकी आजीविका का आधार कृषि ही है, जिसे भाजपा की सरकारों ने और बदतर स्थिति में धकेल दिया है।
भोजपुर में भाकपा-माले न केवल अखिल भारतीय किसान महासभा के साथ बल्कि आम किसानों के हर सवाल और संघर्ष के साथ खड़ी रहती है, उसके कार्यकत्र्ता रैली की तैयारियों में जुटे हुए हैं। अभी पिछले ही माह 21 सितंबर को पटना में एक बड़ी रैली पार्टी ने की। उसके बाद उसके कार्यकत्र्ता भोजपुर की किसान रैली की तैयारी में जुट गए। त्योहारों का समय है, पर महंगाई की भीषण मार किसान से लेकर छोटे व्यवसायियों तक पर पड़ रही है। सरकार के प्रति असंतोष और क्षोभ हर ओर है। सिर्फ किसान ही नहीं, समाज का हर तबका भाजपा से मुक्ति चाहता है।
पीरो प्रखंड में अखिल भारतीय किसान महासभा के जिला सचिव का. चंद्रदीप सिंह, अगिआंव प्रखंड में इंकलाबी नौजवान सभा के राज्य अध्यक्ष का. मनोज मंजिल और किसान नेता का. विमल यादव, तरारी में का. कृष्णा गुप्ता, का. कामता प्रसाद सिंह और का. गणेश जी, सहार में का. उपेंद्र जी, का. रामकिशोर राय और का. मदन जी, संदेश में का. परशुराम सिंह और जीतन चैधरी, उदवंतनगर में का. शिवमंगल सिंह, का. राजू यादव और का. रामानुज जी, गड़हनी में का. महेश राम और का. छपित राम, चरपोखरी में का. विनोद मिश्र, का. टेंगर राम, का. रामईश्वर यादव, जगदीशपुर में का. अजित कुशवाहा और का. विनोद कुशवाहा, कोईलवर में का. विष्णु ठाकुर, बड़हरा में का. नंद जी, बिहिया में का. उत्तम जी, शाहपुर में का. हरेंद्र जी और आरा शहर में अखिल भारतीय किसान महासभा के जिला अध्यक्ष का. सुदामा प्रसाद और भाकपा-माले नगर सचिव का. दिलराज प्रीतम समेत कई नेताओं के नेतृत्व में रैली और राज्य सम्मेलन की तैयारी चल रही है।
24 अक्टूबर को रैली की तैयारी हेतु वाहन प्रचार निकाला गया, जिसके दौरान कई नुक्कड़ सभाएं हुईं। जिनको संबोधित करते हुए वक्ताओं ने भोजपुर में सूखे की स्थिति, धान में लगने वाले गलकी रोग, धान के नकली बीज देने वालों के विरुद्ध कार्रवाई और मुआवजे के सवाल को उठाया। भोजपुर के किसानों की मांग है कि नहरों में निचले छोर तक पानी पहुंचाने की व्यवस्था की जाए, सोन नहर के निजीकरण की साजिश को बंद किया जाए और सरकार उसका आधुनिकीकरण करे, डीजल अनुदान मिलना सुनिश्चित किया जाए और उसके लिए आॅनलाइन रजिस्ट्रेशन के बजाए आॅफलाइन रजिस्ट्रेशन किया जाए। बंटाईदार किसानों को पहचान पत्र दिया जाए, ताकि जो भी सरकारी राहत की योजना है, वह उन्हें भी मिल सके। बढ़ी हुई मालगुजारी दर को भी वापस लेने की मांग की जा रही है। इस वक्त भोजपुर के किसान चाहते हैं कि इस जिले को सरकार सूखा क्षेत्र घोषित करे।
अखबारों में सिंचाई के सवाल पर किसानों के आंदोलन की छिटपुट खबरें छप रही हैं, पर किसान रैली को कोई खास तरजीह नहीं दी जा रही है। दिलचस्प यह है कि दैनिक जागरण में रैली के बारे में खबरें प्रायः नजर नहीं आ रही हैं। अखबार अपने टैगलाइन में भाजपा का मुखपत्र लिख देता, तो शायद ज्यादा बेहतर होता। खैर, जिस वक्त मोदी सरकार के गुनाहों से जुड़ी बड़ी-बड़ी खबरों पर मीडिया पर्दा डालने की कोशिश कर रही है, तो ‘भाजपा भगाओ, किसान बचाओ रैली’ के प्रति उसके रुख को समझा जा सकता है।
रैली प्रचार के आखिरी दिन 25 अक्टूबर को शाम में मशाल जुलूस निकाला जाएगा। इस बीच आइसा-इनौस से जुड़े छात्र-नौजवानों ने रैली स्थल और आरा शहर को झंडों और पोस्टरों से सजाने का काम भी शुरू कर दिया है।
भोजपुर के किसान आंदोलन की विरासत की झलक भी मिलेगी रैली में
अखिल भारतीय किसान महासभा की रैली में भोजपुर के किसान आंदोलन की विरासत की झलक भी मिलेगी। रैली स्थल वीर कुंवर सिंह स्टेडियम का नाम भोजपुर किसान आंदोलन की नेतृत्वकारी त्रयी के दो शहीदों- का. जगदीश मास्टर और का. रामईश्वर यादव के नाम पर रखा गया है। बिहार प्रदेश किसान सभा के संस्थापक सदस्यों की तस्वीरें रैली स्थल पर होंगी।
आरा शहर का नामकरण का. रामनरेश राम नगर किया गया है। राज्य सम्मेलन स्थल नागरी प्रचारिणी सभागार का नाम का. रमेशचंद्र पांडेय के नाम पर और मंच का नाम का. किशुन यादव और रामापति यादव के नाम पर रखा गया है। इस मौके पर शहीद किसान नेताओं के सम्मान में उनकी तस्वीरें भी लगाई जाएंगी।
जो किसान का साथ निबाहे, सो सच्चा इंसान : रमता जी
 
किसान आंदोलन से जुड़े साहित्यकारों की याद होगी साथ
भोजपुर किसान आंदोलन की चेतना, उसकी हकीकत और उसके मकसद को अपने गीतों और कहानियों के जरिए अभिव्यक्ति प्रदान करने वाले जनकवि और स्वतंत्रता सेनानी रमाकांत द्विवेदी ‘रमता’, विजेंद्र अनिल, दुर्गेंद्र अकारी, मधुकर सिंह, गोरख पांडेय, महेश्वर और उस आंदोलन पर ‘भोजपुर’ नाम से चर्चित कविता लिखने वाले जनकवि नागार्जुन को भी याद किया जाएगा।
किसानों से संबंधित उनके गीतों और कविताओं के अंशों तथा उनकी तस्वीरों से रैली स्थल और राज्य सम्मेलन स्थल को सजाया जाएगा। यह संयोग है कि आगामी 30 अक्टूबर को जनकवि रमता जी का जन्मदिवस है और 3 नवंबर को विजेंद्र अनिल एवं 5 नवंबर को जनकवि दुर्गेंद्र अकारी और बाबा नागार्जुन का स्मृति दिवस है। का. रामनरेश राम की बरसी पर हो रही रैली और सम्मेलन उनकी विरासत और किसान आंदोलन के भविष्य के लिहाज से महत्वपूर्ण साबित होगी, ऐसी उम्मीद है।

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