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राजेश कुमार का नाटक अदृश्य भारत को दृश्यमान करता है

इप्टा के स्थपना दिवस पर राजेश कुमार के नाटक ‘मूक नायक’ का पाठ

लखनऊ. राजेश कुमार अपने सामाजिक व राजनीतिक नाटकों के लिए ख्यात है। नाट्य शिल्प और फार्म में भी उनके यहां प्रयोग देखने को मिलता है। इप्टा के 76 वें स्थापना दिवस के मौके पर एक ऐसे ही नाटक का उन्होंने पाठ किया। यह नाटक था ‘मूक नायक’।

आयोजन 22, कैसरबाग, लखनऊ स्थित इप्टा कार्यालय के प्रागंण में किया गया। मोनोलाग के फार्म में लिखा यह नाटक डा अम्बेडकर के जीवन के आखिरी दिनों से शुरू होता है जिसमें वे अपनी स्मृतियों में जाते हैं और अतीत की यात्रा करते है। इस यात्रा के माध्यम से उनका जीवन संघर्ष सामने आता है। उन्हें कदम कदम पर महार जाति का होने का दंश झेलना पड़ता है। उन्हें वर्णवादी व्यवस्था का शिकार होना पड़ता है।

नाटक इस सच्चाई को भी उजागर करता है कि हिन्दू समाज में व्याप्त वर्णवादी व्यवस्था का वर्चस्व इस कदर है कि यहां के अन्य धर्मों में भी उसका प्रभाव मौजूद है। महार जाति का होने की वजह से उन्हें भारत के अन्य धर्मों में भी अपमान का सामना करना पड़ता है। नाटक उन कारणों को सामने लाता है जिसकी वजह से डा अम्बेडकर को हिन्दू धर्म से बाहर जाना पड़ा। कौन से धर्म का चुनाव करे, इसे लेकर उनके अन्तर्मन में काफी द्वन्द्व है। आखिरकार वे बौद्ध धर्म का चुनाव करते है।

इस तरह राजेश कुमार का नाटक डा अम्बेडकर की जीवन यात्रा, उनके वैचारिक संघर्ष और उसके माध्यम से वर्णवादी सामाजिक व्यवस्था की क्रूरता व असमानता को उदघाटित करता है।

नाटक पाठ के बाद बातचीत भी हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ आलोचक वीरेन्द्र यादव ने की। भाकपा के राज्य सचिव डा गिरीश, जसम के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर, इप्टा के प्रदीप घोष, कथाकार प्रताप दीक्षित, युवा आलोचक आशीष सिंह, राजीव ध्यानी, रामायण प्रकाश आदि ने अपने विचार प्रकट किये।

वक्ताओं का कहना था कि जिस सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ अम्बेडकर ने संघर्ष किया, वह आज भी कमोबेश मौजूद है। ब्राहमणवादी शक्तियां संगठित हुई हैं। वे आज सत्ता में हैं। जातियों का राजनीतिकरण हुआ। हमारे समाज में बाहर से जो दिखता है, अन्दर उसकी कथा अलग है। उदाहरणों की कमी नहीं। आजादी के इतने वर्षों बाद भी दलित जाति के दूल्हे को घोड़ी पर चढ़ने के कारण उसे उत्पीड़न का शिकार बनाया जाता है। वक्ताओं का कहना था कि राजेश कुमार का यह नाटक इस मायने में महत्वपूर्ण है कि असमानता, भेदभाव, जातीय उत्पीड़न से ग्रस्त आज के भारत को दृश्यमान बनाता है। उसे देखने, समझने और बदलने की दृष्टि देता है।

कार्यक्रम के आरम्भ में इप्टा के महासचिव राकेश ने इप्टा के इतिहास और उसकी लम्बी यात्रा पर रोशनी डाली। लखनऊ में नाट्य व सांस्कृतिक आंदोलन के क्षेत्र में किये कार्यों के साथ आज के समय में सांस्कृतिक आंदोलन के सामने आसन्न खतरे व चुनौतियों की चर्चा की।

इस मौके पर वेदा राकेश, हिरण्मय धर, कल्पना पाण्डेय, ऋषि श्रीवास्तव, विमल किशोर, ओ पी अवस्थी, राजू पाण्डेय, मुख्तार, अखिलेश दीक्षित आादि उपस्थित थे।

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