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ट्रेड यूनियनों ने केंद्र सरकार द्वारा श्रम अधिकारों पर हो रहे हमलों के ख़िलाफ़ किया प्रदर्शन_

नई दिल्ली, 2 अगस्त 2019

ऐक्टू व अन्य केंद्रीय ट्रेड यूनियनों व फेडरेशनों ने आज देशभर में मोदी सरकार के मज़दूर विरोधी कोड बिल के खिलाफ प्रदर्शन किया। ज्ञात हो कि केंद्र सरकार ‘वेतन संहिता विधेयक(Code on Wages Bill)’ और ‘कार्यस्थल पर सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यस्थिति संहिता विधेयक(Code on Occupational Safety
, Health and Working Conditions Bill)’ लाकर कई श्रम कानूनों को खत्म करना चाह रही है।

प्रदर्शन में संघ-भाजपा से जुड़ी भारतीय मज़दूर संघ को छोड़कर सभी यूनियनों ने हिस्सा लिया।

वेतन संहिता विधेयक संसद से पारित होने पर चार श्रम कानून – न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948, समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976, बोनस भुगतान अधिनियम, 1965, वेतन का भुगतान अधिनियम, 1936 -खत्म हो जाएंगे। संसद से पारित होने पर इससे करोड़ो मज़दूरों की ज़िंदगी प्रभावित होगी। इस संहिता में मौजूद प्रस्ताव, ‘अपरेंटिस’ श्रेणी के कामगारों को श्रम कानूनों के दायरे से बाहर कर देगा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए ऐतिहासिक ‘रेप्टाकोस ब्रेट’ फैसले में न्यूनतम वेतन निर्धारण के पैमानों को भी नये कोड बिल में कम कर दिया गया है। न्यूनतम वेतन निर्धारण की समय सीमा से भी छेड़छाड़ की गई है। निरीक्षकों (inspector) की जगह नये कोड बिल में समन्वयकों (facilitator) की बात कही गई है, जिनकी प्रदत्त शक्तियां वर्तमान में कार्यरत निरीक्षकों से काफी कम होंगी। मालिकों को सरकारी निरीक्षण से मुक्ति देते हुए ‘सेल्फ सर्टिफिकेशन’ का प्रावधान बनाया गया है।

 

कार्यस्थल पर सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यस्थिति संहिता विधेयक कुल मिलाकर 13 श्रम कानून खत्म कर देगी, जो कि निम्नलिखित हैं-

कारखाना अधिनियम, 1948
माइंस एक्ट, 1952
डॉक वर्कर्स एक्ट, 1986
बिलडिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स एक्ट, 1996
प्लांटेशन्स लेबर एक्ट, 1951
अनुबंध श्रम अधिनियम, 1970
इंटर-स्टेट माइग्रेंट वर्कमैन एक्ट, 1979
वर्किंग जर्नलिस्ट एंड अदर न्यूज़पेपर एम्प्लॉई एक्ट, 1955
वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट, 1958
मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स एक्ट, 1961
सेल्स प्रमोशन एम्प्लॉई एक्ट, 1976
बीड़ी एंड सिगार वर्कर्स एक्ट, 1966
सिने वर्कर्स एंड सिनेमा थिएटर वर्कर्स एक्ट, 1981

इस कोड बिल में ओवरटाइम के घंटों को वर्तमान में 50 से बढ़ाकर 124 तक कर दिया गया है। प्रधान रोजगारदाता को ठेका कर्मचारियों के प्रति सभी दायित्वों से मुक्त करने का प्रस्ताव है। निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले मज़दूरों के लिए बने कल्याणकारी कानूनों को भी खत्म कर दिया जाएगा। कुल मिलाकर अगर देखा जाये तो ये नये बिल, कानून बनने के बाद, मज़दूरों को गुलामी की ओर धकेल देंगे।

प्रदर्शन में मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए ऐक्टू दिल्ली राज्य कमिटी के सह-सचिव राजेश चोपड़ा ने कहा कि, एक तरफ तो सरकार संसद में मज़दूर-हित में बने कानून खत्म कर रही है, दूसरी तरफ संसद के बाहर, सड़कों पर हो रहे समुदाय विशेष के लोगों की हत्या को बढ़ावा दे रही है। मज़दूर वर्ग को संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह ही लड़ाई को तेज करना होगा।

अभिषेक, महासचिव, ऐक्टू दिल्ली राज्य द्वारा जारी

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