समकालीन जनमत
शख्सियतसाहित्य-संस्कृति

सत्ता संपोषित मौजूदा फासीवादी उन्माद प्रेमचंद की विरासत के लिए सबसे बड़ा खतरा:डॉ. सुरेंद्र प्रसाद सुमन

लोकतंत्र, संविधान और साझी संस्कृति के नेस्तनाबूद करने की हो रही है गहरी साजिश-कल्याण भारती
प्रेमचंद के सपनों के भारत से ही बचेगी हमारी साझी संस्कृति-डॉ. राम बाबू आर्य
31 जुलाई, दरभंगा । आज स्थानीय लोहिया चरण सिंह कॉलेज के सभागार में “मौजूदा फासीवाद उन्माद और प्रेमचंद की विरासत” विषय पर संगोष्ठी आयोजित कर जन संस्कृति मंच, दरभंगा द्वारा महान कथाकार प्रेमचंद की 138वीं जयंती मनाई गई ।

इस अवसर पर बोलते हुए जसम राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य सह ‘समकालीन चुनौती’ के संपादक डॉ. सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने कहा कि “हमारे मुल्क की पूरी दुनिया में मशहूर खूबसूरती है हमारी गंगा-जमुनी संस्कृति और अनेकता में एकता, जिसकी हिफाजत के सबसे बड़े पैरोकार थे कथाकार प्रेमचंद । लेकिन मौजूदा सत्ता संपोषित फासीवादी उन्माद आज बड़ा खतरा बनकर चुनौती प्रस्तुत कर रहा है ।

प्रेमचंद जयंती, दरभंगा

जसम के बिहार राज्य उपाध्यक्ष डॉ. कल्याण भारती ने कहा कि “मौजूदा फासीवादी उन्माद उफान पर है और इसके जरिए लोकतंत्र, संविधान और साझी संस्कृति को नेस्तनाबूद करने की गहरी साजिश रची जा रही है । प्रेमचंद की विरासत को आगे बढ़ाने से ही लोकतंत्र और साझी संस्कृति की रक्षा हो पाएगी ।”

संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए जसम दरभंगा के जिला सचिव डॉ. राम बाबू आर्य ने कहा कि “प्रेमचंद के सपनों का भारत शोषित-पीड़ित एवं वंचित आम आवाम की वास्तविक मुक्ति सहित मुल्क को मुकम्मल आज़ादी का भारत है जिसे विफल करने के लिए फासीवादी सत्ता पूरी कोशिश कर रही है । इसलिए प्रेमचंद के सपनों का भारत बनाने से ही हमारी साझी संस्कृति बचेगी ।”

मौके पर छात्र नेता मयंक कुमार यादव, कॉ. उमेश शाह, कॉ. ओझा जी, कॉ. मनोज कुमार, कॉ. उमेश नागमणि, कवयित्री रंजन भारती, प्रभास कुमार, प्रशांत कुमार, अरविंद कुमार आदि वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे ।

कार्यक्रम के अंत में आरा के संस्कृतिकर्मी राजू रंजन ने अपने सहयोगियों के साथ प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ‘पूस की रात’ की नाट्य प्रस्तुति के साथ जनवादी गीत भी प्रस्तुत किए ।
पूरे कार्यक्रम की अध्यक्षता जसम दरभंगा के जिला अध्यक्ष प्रो. अवधेश कुमा सिंह ने की तथा मंच संचालन युवा नेता कॉ. संतोष कुमार यादव ने किया ।

Related posts

Fearlessly expressing peoples opinion