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कवि विद्रोही की याद में कविता पाठ और परिचर्चा

जनकवि रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ के स्मृति दिवस की पूर्व संध्या पर 7 दिसंबर को जन संस्कृति मंच की दिल्ली इकाई के सचिव रामनरेश राम के कमरे पर ‘कवि विद्रोही की याद में कविता पाठ और परिचर्चा’ का आयोजन हुआ ।

परिचर्चा की शुरुआत रामनरेश राम ने की । उन्होंने विद्रोही की कविता नयी खेती का पाठ करते हुए विद्रोही की कविताओं के महत्व एवं प्रासंगिकता पर चर्चा की । उन्होंने विद्रोही की कविता ‘कविता और लाठी’ का पाठ करते हुए कहा कि विद्रोही की कविता प्रतिरोध की कविता है । वह अपनी कविता को लाठी मानते थे । जिसकी ख़ासियत यह है कि वह सदैव शोषितों और वंचितों के पक्ष में और वर्चस्ववादी ताकतों तथा शोषकों के ख़िलाफ़ भंजती है ।

युवा आलोचक आशीष मिश्र ने विद्रोही की कविता ‘ नूर मियां का सुरमा ‘ का पाठ करते हुए कहा कि इस कविता का अंत किसी महाआख्यान के अंत जैसा है । इस कविता के प्रतीक गंगा जमुनी तहजीब के उद्दात प्रतीक है । विद्रोही के नूर मियां का जाना लोकजीवन की तहजीबी रवायतों का जाना है । विभाजन पर हिंदी पट्टी के लेखकों द्वारा बहुत कम लिखा गया है और विद्रोही की कविता ‘ नूर मियां का सुरमा ‘ इसकी भरपाई करती है ।

दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधार्थी दिनेश यादव ने विद्रोही की कविता ‘मोहनजोदड़ो की आखिरी सीढ़ी ‘ का पाठ करते हुए कहा कि विद्रोही की कविताओ में हाशिए की अस्मिताओं के प्रतिरोध की आवाज बुलन्द हुई है ।

दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधार्थी सौरभ यादव ने कहा कि विद्रोही कबीर की विद्रोही चेतना और वाचिक परम्परा के कवि थे । विद्रोही की कविता मुक्ति के महान स्वप्न की कविता है। उनकी कविताओं को समझना शहराती संवेदना के लोगो के लिए मुश्किल है। विद्रोही को समझने के लिए पाठक को उस प्रतिरोधी, जनवादी, मध्यवर्गीय अनुशासन से रहित चेतना के साथ खड़ा होना पड़ेगा जहां विद्रोही खड़े थे ।

सुनीता ने विद्रोही की कविता ‘ इक आग का दरिया है ‘ की पंक्तियों ‘ मैं तुम्हे इसलिए प्यार नही करता
कि तुम बहुत सुंदर हो…………….और उसकी एक भी गोली बर्बाद नही जाएगी , वह वहीं लगेगी जहाँ तुम मारोगी ‘ का पाठ किया । सुनीता ने कहा कि विद्रोही अपनी कविताओं में औरतों के शोषण और वंचना की अभिव्यक्ति से आगे बढ़कर उन्हें शोषण के खिलाफ क्रांति की अग्रिम पंक्ति में खड़े होने का हकदार मानते है ।

युवा कवियत्री अनुपम सिंह ने अपनी कविता ‘ हाँ मेरी शर्तों पर टिका है मेरा प्रेम ‘ और साक्षी सिंह ने अपनी कविता ‘ बोनसाई ‘ तथा ‘ अचार ‘ का पाठ किया ।

इसी क्रम में दिलीप पांडे जी ने भी अपनी कविताओं का पाठ किया और क्रांतिकारी गीतों की प्रस्तुति की।

परिचर्चा का समापन युवा कवि , गीतकार और दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधार्थी जगदीश सौरभ की मौजूदा समय में प्रासंगिक और बहुचर्चित कविता ‘ रामलला हम आएंगे ‘ से हुआ ।

परिचर्चा में रामानन्द राय , आत्मसन्तोष , प्रद्युम्न , दिलीप पांडे , साक्षी , दिनेश , अनुपम , आशीष , जगदीश सौरभ , शालू , सुनीता , सौरभ आदि उपस्थित रहें ।

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