समकालीन जनमत
कविता

नयी धुन और नया गीत रचती हैं उषा राय की कविताएँ

कविताओं में सब कविताएँ नहीं होतीं। जिसे हम कविता कहते हैं, वह भी समूची कविता नहीं होती।

कविता किसी शब्द संरचना के भीतर खुद को कभी- कभी प्रकट करती है। कई बार बहुत लम्बी संरचना में कहीं किसी पंक्ति में कविता होती है और उसे अर्थपूर्ण बनाये रखने के लिए पूरी संरचना बनाये रखनी होती है।

बड़े से बड़े कवियों के साथ भी यह सच काम करता है। कुछ बेहतरीन काव्य पंक्तियों के साथ बहुत सारी ऐसी संरचनाएँ भी प्रशंसित होती रहती हैं, जो सच में कविताएँ होती ही नहीं।

उषा राय के पहले काव्य संग्रह ‘सुहैल मेरे दोस्त’ में ऐसी चमकती पंक्तियाँ हैं, जो भविष्य में आशा जगाती हैं ।

वे राजनीतिक सरहद बनाकर चलती हैं, स्त्रियों, दलितों, अल्पसंख्यकों, गरीबों की यातना और पीड़ा के साथ शब्द-सहकार रचती हैं। वे स्वयं जगकर सबको अंधेरे के, मौत के, ध्वंस के सौदागरों के खिलाफ जगाये रखना चाहती हैं।
सूखी हुई फल्गू नदी की रक्तिम रेत में वे दर्द और आंसू के बवंडर देखती हैं । वे स्त्रियों की विवशता, उपेक्षा को उनकी अस्मिता की आग सौंपना चाहती हैं।

परिस्थितियाँ इतनी जटिल हैं कि जीना कठिन है, मरना आसान है। वे इस लड़ाई को एक दिशा देना चाहती हैं । यह तभी होगा जब डर खत्म होगा। डरने का मतलब भी उनके हाथों मारा जाना है, इसलिए लड़ाई के पहले अपने भीतर का डर खत्म करना होगा।

लड़ाई के लिए एक और शर्त माननी होगी। समझौते ही तो हुए हैं आज तक पर अब नहीं। वे ऐसा जज्बा देखना चाहती हैं, जो सीली माचिसों में भी आग फूंक दे। दंगों के ख़िलाफ़, नाइंसाफी के ख़िलाफ़, शोषण के ख़िलाफ़, भुखमरी के ख़िलाफ़। ताकि भाई चारा रहे, प्रेम रहे, नफरत खत्म हो।

वे कहती हैं, जो समय और प्रेम को नहीं पहचानते, वे इतिहास का कचरा ढोते हैं । वे चाहती हैं कि नयी धुन, नया गीत और नयी उड़ान बची रहे। इसी में सब कुछ बचे रहने का सबब है। आसमान भी तो उसी की राह देखता है, जो उड़ना जानता है।

उड़ान के लिए अभ्यास चाहिए और अभ्यास के लिए शांतिकाल। ऐसी परिस्थिति के निर्माण के लिए जड़ता और नफरत के खिलाफ आक्रोश जरूरी होगा। कवयित्री पागलों की तरह अपना गुस्सा जगा रही है। वह न अहल्या बनना चाहती है, न उन परिस्थितियों को पनपने का कोई अवसर देना चाहती है, जिसमें अहल्याएं बनती हैं। वह जानती है कि पुराणों से निकलकर कभी भी आ सकती है वह धोखे की रात वह तिरस्कार का दिन। इसलिए वह सजग है।

उसे बुरे वक्त में भी खड़े होने का सबक शबरी से मिला है। उषा राय की कहानियों में भी अच्छी गति है। देश की कुछ बड़ी पत्रिकाओं में वे लगातार छपती रहती हैं । उनकी संभावनाओं को समय सहेज कर रखे।

उषा राय की कविताएँ-

 

1. डर

डर इन्सान को
बचाता नहीं ,भगाता है

कभी-कभी बड़ा डर
पीढी-दर-पीढ़ी डराता है

जैसे दिए के बुझने का डर
या राज़ के खुलने का डर

वैसे जीवन भर ब्लैकमेल
होने से अच्छा है एक बार
लानत- मलामत सह लेना

चरित्र प्रमाणपत्र
असल जिन्दगी में नहीं
हलफनामें के काम आता है

डर वह करवा देता है
जो उसे नहीं करना चाहिए

डरता हुआ बच्चा झूला झूलता है
अचानक कूद जाता है झूले से

सिसकती लड़की जहर खाती है
नीम- अंधेरे में शिशु को छोड़कर

डर इन्सान को
बचाता नहीं, गुलाम बनाता है

गुलामों की तरह
मरने का मतलब
अगर धीरे-धीरे मरना है

तो डरने का मतलब भी
उनके हाथों मारा जाना ही होता है।

2. आदमखोर

उफनते दूध को सँभालो
पशुओं का चारा पानी जल्दी
छाती लगे बच्चों को उठाओ
आएगा , आता है आदमखोर।

लार-सने दाँत चमकती आँखें
मारेगा झपट्टा शिकार पर
रक्त माँस का कतरा-कतरा
खाएगा, खाता है आदमखोर।

मीठी बोली पर न जाना
अपने-पराए पर न जाना
वहीं कहीं तुम्हारे बीच बैठा
हँसेगा, हँसता है आदमखोर।

हाशिए से उठ चलो बढ़ चलो
शहर के बीचोबीच राजपथ पर
आवाज दो हम एक हैं . . .
डरेगा, डरता है आदमखोर।

3. खूनी हस्ताक्षर

आँधी पानी में लोग खड़े रहते
उसकी बात सुनते वह बहुत सुन्दर था
लाखों धड़कनों का हीरो
उसे नये कपडों में
अलग अलग पोज में
आईने में अपने आप को
देखना बहुत पसंद था

उसने कभी अपनी पत्नी को
धोखा नहीं दिया
अलग बात थी कि सुदर देूश में
उसकी प्रेमिका रहती थी

वह सिगरेट नहीं पीता था
वह शराब नहीं छूता था
वह माँस नहीं खाता था

वह बहुत अच्छा बोलता था
उसके पास हर समस्या का
समाधान रहता था
वह उद्धार गौरव उत्थान और
शान से जीने की बातें करता
वह दुश्मन को मज़ा चखाने
की भी बातें किया करता था

सब कुछ बहुत अच्छा था
बस एक ही बुराई थी कि
वह जिन्दगी में मौत और
मौत में जिन्दगी देखता था
वह इतिहास का खूनी हस्ताक्षर
कोई था कोई हो सकता है।

 

 

4. बिलकिस बानो से

पतझड़ में केवल
पत्ते ही नहीं गिरते
गिरती है नफरत भी ।

पुरानी दीवारों से
केवल भित्तियाँ ही नहीं
झरती हैं साजिशें भी

बुलन्दी से केवल
झाड़फानूस ही नहीं गिरते
गिरती हैं आस्थाएँ भी

इन सबमें डूब कर
इतिहास बदलता है
अपना रक्तरंजित पन्ना

सब कुछ भूल कर
एक सामान्य जिन्दगी
शुरु करना चाहती हो
बिलकिस, बिलकुल सही
यही कहना था मुझे तुमसे
कुनानपोशपुरा-कश्मीर की
मुस्लिम महिलाओं से भी
यही कहना था मुझे
कि अपमान कभी मत भूलना

दरकती दीवारों की भित्तियाँ
बताती हैं कि साजिशों को सुनकर
दीवार छोड़ दिया था उन्हांेने

पतझड़ की सूखी पत्तियाँ
बताती हैं कि किस तरह
की आग से सूख गई थीं वे

अपनी यातनाओं की बातें
जरुर बता देना और यह भी कि
कैसे चलीं थीं तुम काँच की किरचों पर

यह एक मुनासिब कार्रवाई है जो
चलती रहेगी इनके समानांतर।

5. अरूणा शानबाग का कमरा

क्या केवल एक पत्ता है
अरूणा शानबाग का कमरा
जो समय की हवा पाकर उड़ जाएगा

या कि भूल जाएँगी दीवारंे उसकी
गूँगी नीली दर्द में डूबी चीत्कारें

किस नियम से बेधता रहा
काल ! पूरे बयालिस साल

कौन-सी है वह सत्ता
जो हुक्म देती है
कि औरत होने के नाते
नर्स अरूणा चेन में बँाधी जाए
और तेजाबी लार गिराता कुत्ता
सड़क पर शान से टहलता रहे

क्या केवल मुठ्ठी भर रेत है
अरूणा शानबाग का कमरा
जिसे कोई लहर बहा ले जाएगी

क्या केवल कमरा भर है
अरूणा शानबाग का कमरा ?

6. उसकी आँखें

उसने फिर तोड़ा
भरोसा मेरा
हालाँकि वह पहले भी
कई बार तोड़ चुका था।

वह कहता था
कुछ कहने की
जरुरत नहीं
मैं सब देख रहा हूँ।

मैं भी सोचती थी
आँखे हैं उसके पास
तो देखता ही होगा।

दरअसल मेरी
खुद्दार गरीबी
खुली थी उसके आगे
पानी के लिए बिलबिला रही थी
जबकि कई तालाब थे उसके पास

मैं भी सोचती थी
पानी है तो जाएगा कहाँ

उसने फिर भरोसा दिया
वह शुरू से मेरा अपना है
पारदर्शी हैं नीतियां उसकी
रंग लाएँगी एक दिन
पानी के चश्मे बहेंगे
सब कुछ हरा-भरा हो जाएगा।

सुनती रहती, इन्तजार था
और करती भी क्या
गरीबी के अलावा और भी चीजें थी मेरे पास
जिन्हें बचाने के चक्कर में
मैं और भी गरीब होती जा रही थी

वह बहुत व्यस्त रहता
एक दिन विश्व शांति की
बात करने के बाद

उसने मेरी ओर देखा
तब लगा अब गरीबी
इतिहास की बात हो जाएगी।

उसने गम्भीरता पूर्वक कहा
सुनो ! कुछ ऐसा करो
यह सच्चाई उठाकर
कहीं और रख दो
निष्ठा को संभालो जरा
अपनी बेचैनी पर लगाम लगाओ
कुछ मनोरंजन पर ध्यान दो।

अपनी जगह से हिलो
क्योंकि सुन्दरता के लिए
लचीला होना बहुत जरूरी है।

दूसरों को भी जगह दो
प्यार नहीं तो व्यापार ही सही
थोड़ा लालच लाओ अपने भीतर।

अरे ! गरीबी की तो सोचो ही नहीं
वह तो मानसिक अवस्था का नाम है।
बाकी सब मै देख रहा हूँ न !

और उसके देखने पर
भरोसा करना ही था
क्योंकि मैंने ही तो चुना था उसे
उसके अलावा उसके
तालाब की सारी मछलियाँ
शपथ ले रहीं थीं कि
थोड़ी शोशेबाजी है पर समझदार है

अचानक एक दिन
खबर मिली कि अपनी भी रक्षा
नहीं कर पाया वह और मारा गया ।

मैं तो परेशान रो-रो के बुरा हाल
कैसे तोड़ दूँ उसका मोह
आखिर एक ही नज़र से देखता था सबको।

लेकिन तब तो मैं और भी
सन्नाटे में आ गई थी
जब लोगों ने बताया
उसकी आँखें तो पत्थर की थीं।

( प्रगतिशील लेखक संघ से सक्रिय रूप से जुड़ी उषा राय कवि व कथाकार हैं। उनकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रौढ शिक्षा के क्षेत्र में कई बरस काम करने का अनुभव है। नाटकों में भी उन्होंने अभिनय किया है। हाल में उनका पहला कविता संग्रह ‘सुहैल मेरे दोस्त’ आया जो चर्चित रहा है। ‘समकालीन हिन्दी कविता: व्यंग्य और शिल्प ’ शीर्षक से आलोचना की एक किताब प्रकाशित है। टिप्पणीकार कवि कौशल किशोर समकालीन कविता का चर्चित नाम हैं। ‘नई शुरुआत’ और ‘वह औरत नहीं महानद थी’ नाम से उनके दो कविता संग्रह और ‘प्रतिरोध की संस्कृति’ तथा ‘भगत सिंह और पाश अंधियारे का उजाला’ नाम से उनके दो गद्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।  टिप्पणी  वरिष्ठ कवि कौशल कुमार की है  )

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