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आरती की कविताएँ सवालों को बुनती हुई स्त्री का चित्र हैं

संजीव कौशल


समाज तमाम तरह की राजनीतिक गतिविधियों का रणक्षेत्र है। यहां कोई न कोई अपनी राजनीतिक चाल चलता रहता है। ऐसे में कवि की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वह उन्हें सही रूप में समझे और वह पक्ष जिसमें आमजन का हित छिपा है उसे आमजन तक पहुंचाए।

इस तरह कवि की ज़िम्मेदारी काफी बढ़ जाती है और इसके साथ ही उसकी परेशानियां भी। आरती कवि की जिम्मेदारियों को न सिर्फ समझती हैं बल्कि उन्हें पूरा करने में पूरी दृढ़ता और ईमानदारी से जुटी रहती हैं। वे एक ऐसी कवि हैं जो जलसों, धरनों और रैलियों में शरीक हो अपनी आवाज़ जन की आवाज़ में मिला देती हैं और यह एक्टिविज्म इनकी कविताओं को एक नई धार और चमक देता है।

कई लोग बड़ी मासूमियत से यह कहते हैं कि कवि को राजनीति से दूर रहना चाहिए। दरअसल वे कहना यह चाहते हैं कि जो राजनीति चल रही है उसे चलने देना चाहिए इसमें अड़ंगा नहीं डालना चाहिए, प्रश्न नहीं पूछना चाहिए, जवाब नहीं मांगने चाहिए। आरती इसके एकदम उलट सवालों को बुनती रहती हैं, वही उन्हें ज्यादा आत्मीय और अपने लगते हैं, क्योंकि जवाब तो मौसमी होते हैं, अपना रंग और मिज़ाज बदलते रहते हैं। वे व्यंग्य करते हुए कहती हैं:

एक अच्छी लड़की सवाल नहीं करती
एक अच्छी लड़की सवालों के जवाब सही सही देती है
एक अच्छी लड़की ऐसा कुछ भी नहीं करती कि सवाल पैदा हों

सवालों के घेरे लड़कियों के लिए और भी सख्त और बहुस्तरीय हैं। ज़रा सी लापरवाही पर जान जाने तक का खतरा रहता है और अगर सवाल से दूरी बनाई जाए तो शाबासी ही शाबासी प्रशंसा ही प्रशंसा।

आरती अपनी साधारणता से चौंका देती हैं। मामूली से मामूली जीवन भी सुंदर होता है क्योंकि वहां भी जीवन को बेहतर बनाने का संघर्ष चल रहा होता है, उड़ानों के लिए नए पंख पक रहे होते हैं, कोई उन्हें उड़ना सिखा रहा होता है। आरती बेहद सरल मगर सुंदर अंदाज़ में कहती हैं:

इस पंख फैलाकर उड़ती महानगर की
एक खबर यह भी हो सकती है
देखो 10 मंजिला इमारत की कोने वाली बालकनी पर
कोई चिड़िया घोंसला सजाए अपने बच्चे को धीरे धीरे उड़ना सिखा रही है

स्त्रियां अक्सर एक ऐसी भाषा बुनती हैं जहां वाक्य कई बार अधूरे रह कर ही अपना अर्थ देते हैं। वाक्यों की रचना वे कुछ इस तरह करती हैं कि शब्द विन्यास व्याकरण के नियमों को तोड़ डालते हैं। आरती की कविताओं में पूरे पूरे वाक्य आते हैं लंबे-लंबे वाक्य जैसे कि शब्द कहीं टहलने निकल पड़े हों।

वे शब्दों को कुछ इस तरह बिठाती हैं कि वाक्य के पूरा होते होते भीतर ही भीतर काफी कुछ टूट फूट जाता है। उसका व्याकरण दुरुस्त रहता है बाकी सब आरती हिला डालती हैं जैसे किसी डब्बे में दाल भरने के बाद स्त्रियाँ अक्सर उसे हिला कर कुछ और जगह बना देती हैं ताकि उसमें कुछ और भरा जा सके। यह कुछ और थोड़ा सा दुख है जिसे आरती बड़े आहिस्ता से वाक्यों में रख देती हैं।

 

आरती की कविताएँ

 

 1. टिक टिक टिक

ये घड़ी की सुइयां इतना शोर क्यों कर रही हूं….c टिक टिक टिक?

क्या समय कहीं भाग रहा है जो चिल्लाकर आगाह कर रही हैं?

देखो तो!  इन घड़ियों ने क्या अजूबा किया…
वह जो आंगन में फैलता था छत से सबकी आंख बचाकर धीरे धीरे..
जो पेड़ की पत्तियों  से छुपता छुपाता बदमाशी से मुस्कुराता था..
वह जो किसी खंभे से फिसलते शैतान बच्चे सा दिन भर अपना नाम नहीं बताता था,
उस उद्दंड  को ही कैद कर लिया
अब वह 24 घंटों के भीतर तीन इकाईयों से कसकर बांधा है अभी क्या समय हुआ ?
12:07 हो गए हैं

अब हम किसी शायद का प्रयोग नहीं करते..

फिर ऐसा क्यों लगता है कि वह हाथ से फिसल रहा है तुम्हारी मेरी हथेलियों के बीच से कैसे सरक जाता है
या इन घड़ियों की टिक टिक उसे चैन से बैठने ही नहीं देती
जैसे कि मुझे माइग्रेन होता है तो शोर से चिढ़ होती है
लगता है कि कहीं भाग जाऊं दूर  घड़ी के टिक टिक से भी

वैसे ही तो नहीं?????

वैसे अब तकल्लुफ कम होने लगे हैं हमारे बीच
शायद यह बेसब्री भी कम हो….
काश किसी दिन ये घड़ियां हमारे आस-पास हो ही नहीं
मैं इत्मीनान से पांव पसार कर बैठना चाहती हूं
तुम्हारी आंखों में देख सकने की फुर्सत..

शायद तुम भी ऐसा ही चाहो ?

मैं एक दिन दुनियाभर की तमाम घड़ियों को
उनकी टिक टिक को
दूर समंदर में गहरे फेक आऊंगी.

 

2. मृत्यु शैया पर एक स्त्री का बयान

1- सभी लोग जा चुके हैं
अपना अपना हिस्सा लेकर
फिर भी, इस महायुद्ध में कोई भी संतुष्ट नहीं है

ओ देव ! सिर्फ तुम्हारा हिस्सा शेष है
तीन पग देह
तीन पग आत्मा
मैं तुम्हारा आवाहन करती हूं.

2- ओ देव अब आओ
निसंकोच, किसी भी रंग की चादर ओढे
किसी भी वाहन पर सवार हो
मुझे आलिंगन में भीच लो

अब मैं अपनी तमाम छायाओं से मुंहफेर
निर्द्वद हो चुकी हूं.

3- धरती की गोद सिमटती जा रही है
मैं किसी अतललोक की ओर फिसलती जा रही हूं
लो पकड़ लो कसकर मेरा हाथ
ले चलो कहीं भी
हां, मुझे स्वर्ग के देवताओं के जिक्र से भी घृणा है.

4- अब कैसा शोक
कैसा अफसोस
कैसे आंसू
यह देह आहूतियों का ढेर मात्र थी
एक तुम्हारे नाम की भी
स्वाहा!

5- जीवन में पहली बार इतना आराम मिला
मौन सुख महसूस कर रही हूं

सभी मेरे आस-पास हैं
सभी वापस कर रहे हैं
अब तक की यादें
आंसु
वेदना
ग्लानि
और बूंद बूंद स्तनपान.

6- अधूरी इच्छाओं की गागरे हर कोने में रखी हैं
जब भी सर उठाती वे मुट्ठी भर भर मिट्टी डालती रही
बकायदा ढकी मुंदी रही
जैसे चेहरे की झुर्रियां
आहों आंसुओं और
सिसकियां पर भी रंगरोगन किया
आज पसंद नापसंद पर मेरी सामूहिक बहस हो रही है

आत्माएं गिद्धों की मुर्दे के पास बैठते ही दिव्य हो गई.

7- हां मेरी इच्छाओं का दान चल रहा है
वे पलो क्षणों को भी वापस कर रहे हैं
जौ घी
दूध
शहद
तिल चावल
सब वापस
सब स्वाहा
हिसाब किताब बराबर हुआ इस तरह

उनकी किताबों में यही लिखा है.

3. चिड़िया और उसके बच्चे की कहानी

इस पंख फैलाकर उड़ते हुए महानगर की
एक खबर यह भी हो सकती है
देखो उस 10 मंजिला इमारत की
कोने वाली बालकनी पर
कोई चिड़िया घोसला सजाए अपने बच्चे को
धीरे धीरे उड़ना सिखा रही है

वह उड़ानों की उमंग और जुनून के साथ ही
खतरों की ओर भी इशारा करती जाती है-
बधाई हो बच्चे तुम उड़ना सीख गए
तुम्हारे पंख दिनोंदिन मजबूत होते जाएंगे और एक दिन तुम आसमान जैसी ऊंचाइयों को बौना कर सकोगे

अपने कोमल पंखों को सहलाता बच्चा बेहद खुश है
महानगर की लंबाई चौड़ाई ने उसके सपनों को भी
वैसा ही लंबा चौड़ा कर दिया है
उसके सपनों के रंग दिनोंदिन चमकीले होते जा रहे
वह उन्हें विज्ञापनों की टैगलाइन की तरह गा गाकर सुनाता है
भीतर ही भीतर कुछ गुनगुनाता रहता है
और ट्रैवल बैग में भरता हुआ उन्हें बुदबुदता है-
एक बार आसमान की और उड़ेगा तो वापस नहीं लौटेगा
इस लुटी पिटी धरती पर बचा ही क्या है
हर तरफ धूल धनखड़ धुआं और शोर से जीना मुहाल है
है ना , वह सहमति के लिए चिड़िया की ओर देखता है

ना बच्चे ना, लंबी और टिकाऊ उड़ान के लिए सुस्ताना भी जरूरी है
और सुस्ताने के लिए धरती ही पावों को सहारा देती है
मानाकि हमारी दुनिया के पार भी बहुत सी दुनियाए हैं
और वे अधिक रंगीन और खूबसूरत भी हैं
लेकिन यहां इस उधड़ी पलस्तर वाली बालकनी के इस कोने पर हमारे होने के हक और स्मृतियां साबूत रहेंगे
स्मृतियां ही हमारे पंखों तले की हवा है जो
शरीर को हल्का कर उड़ने में मदद करती है
वह दो पक्षी भाइयों की कहानी भी सुनाती है
जिन्होंने सूरज को छू लेने की होड़ ठानी थी
और अपने पंख ही जला बैठे
वह समझाने की कोशिश करती है की पंखों के बिना
कैसे उन्होंने अपना जीवन काटा

बच्चा यूं तो हां में सिर हिलाता है लेकिन उसकी आंखें
दूर आसमान में मनचाही फसल उगाने की
घोषणा कर चुकी होती हैं

इन दिनों चिड़िया और बच्चे में अक्सर धरती और आसमान के मुद्दों पर बहस हो ही जाती है
बच्चा घंटों तर्क करता है
हालांकि उसके तर्क अभी कमजोर हैं
लेकिन वह हार नहीं मानता और चिड़िया तमाम अनुभवों और तार्किकता के बाद भी हार सी जाती है

इस बरसात झमाझम बारिश हुई
कई शामों को आसमान में इंद्रधनुष भी उगा
लेकिन चिड़िया झूमकर नहीं नाची
उसकी आंखों में अकेलेपन का मटमैला पानी भरता जा रहा
अक्सर आधी रात में उड़ते हुए बच्चे की लगातार ओझल होती तस्वीर देखकर जाग जाती है
घोसले में जाकर झांकती है
बच्चा मुस्कुराता सो रहा है
उसके सपनों में कोई उड़ान चल रही है शायद

आज वह कोई तर्क नहीं करती
संदेशों को मन और घोसले की दीवार के पार ढकेल देती है
आज वह अपनी छोटी बड़ी उड़ानों के हासिल और
जो कुछ रास्ते में छूट गया उसे भी यादकर
उन बदरंग यादों की एक तस्वीर बना दीवार पर टांग देती है
रात के आखिरी पहर को सीने से लगा
आज चिड़िया फिर से अपना मनपसंद गीत गुनगुनाती है…..

 4. मैसेंजर मां और बेटा
————–

मैं लिखना चाहती थी
कि तुम्हारी याद आती है
और लिखा- क्या कर रहे हो अभी
जाग गए?
या सो रहे हो?
अच्छा… जाग गए
कॉफी बना पी लो ताकि नींद अच्छी तरह खुल जाए

आज मैं तुम्हें बहुत मिस कर रही हूं ..लिखना चाहती थी
और लिखा
वही रोज रूटीन का
जैसे हर माह भेजी जाने वाली राशि
चेतावनी और डांट फटकार

आज फिर सुबह से ही हिम्मत की और
लिखना चाहा-
जल्दी आ जाओ…
और
लिख दिया…
यहां बारिश शुरू हो गई है
वहां का मौसम कैसा है?

 

5. अच्छी लड़की के लिए जरूरी निबंध

एक अच्छी लड़की सवाल नहीं करती
एक अच्छी लड़की सवालों के जवाब सही-सही देती है
एक अच्छी लड़की ऐसा कुछ भी नहीं करती कि सवाल पैदा हों

मेरे नन्ना कहते थे- लड़कियां खुद एक सवाल हैं जिन्हें जल्दी से जल्दी हल कर देना चाहिए
दादी कहती- पटर पटर सवाल मत किया करो

तो यह तो हुई प्रस्तावना अब आगे हम जानेंगे
कि कौन सी लड़कियां अच्छी लड़कियां नहीं होती

एक लड़की किसी दिन देर से घर लौटती है
वह अच्छी लड़की नहीं रहती
एक लड़की अक्सर पड़ोसियों को बालकनी पर नजर आने लगती है….. वह अच्छी लड़की नहीं रहती
एक लड़की का अपहरण हो जाता है एक दिन
एक लड़की का बलात्कार हो जाता है और उसकी लाश किसी नदी नाले या जंगल में पाई जाती है
एक लड़की के चेहरे पर तेजाब डाल दिया जाता है
और एक लड़की तो खुदकुशी कर लेती है…
क्यों -कैसे?
जानने की क्या जरूरत
यह सब अच्छी लड़कियां नहीं होती

मैं दादी से पूछती -अच्छे लड़के कैसे होते हैं
वह कहती – चुप ! लड़के सिर्फ लड़के होते हैं
और वह शुरू हो जाती अच्छी लड़कियों के
गुण बखान करने
दादी की नजरों में प्रेम में घर छोड़कर भागी हुई लड़कियां केवल बुरी लड़कियां ही नहीं
नकटी कलंकिनी कुलबोरन होती
शराब और सिगरेट पीने वाली लड़कियां दादी के देश की सीमा के बाहर की फिरंगने कहलाती थी
और वे कभी भी अच्छी लड़कियां नहीं हो सकती

खैर अब दादी परलोक सिधार गई और नन्ना भी नहीं रहे
फिर भी अच्छी लड़कियां बनाने वाली फैक्ट्रियां
बराबर काम कर रही हैं
और लड़कियों में अब भी अच्छी लड़की वाला ठप्पा अपने माथे पर लगाने की होड़ लगी है

तो लड़कियों! अच्छी लड़की बनने के फायदे तो पता ही है तुम्हें चारों शांति और शांति…..
घर से लेकर मोहल्ले तक
स्कूल कॉलेज शहर और देशभर में
ये तख्तियां लेकर नारे लगाना जुलूस निकालना
अच्छी लड़कियों के काम नहीं है
धरना प्रदर्शन कभी भी अच्छी लड़कियां नहीं करतीं

मेरे देश की लड़कियों सुनो!
अच्छी लड़कियां सवाल नहीं करती और
बहस तो बिल्कुल भी नहीं करती
तुम सवाल नहीं करोगी तो हमारे विश्वविद्यालय तुम्हें गोल्ड मेडल देंगे
जैसा कि तुमने सुना जाना होगा इस विषय पर डिग्री और डिप्लोमा भी शुरू हो गया है*
इन उच्च शिक्षित लड़कियों को देश-विदेश की कंपनियां अच्छे पैकेज वाली नौकरियां भी देती हैं

देखो दादी और नन्ना अब दो व्यक्ति नहीं रहे
संस्थान बन गए हैं

खैर आखरी पैराग्राफ से पहले एक राज की बात बताती हूं
कुछ साल पहले तक मैं भी अच्छी लड़की थी.

 

6. हमें फिर से भेड़ बकरी बनाओ

नहीं सीखना हमें दो और दो का जोड़ घटाना
नहीं पढ़ना विज्ञान भूगोल की पोथियां
इतिहास की मक्कारियां समझकर क्या कर लेंगे
और राजनीति तुम्हारी तुम्हें ही मुबारक

हम वहीं धान कूटेगे
चक्की पीसेगे
घूंघट काढकर मुंह अंधेरे दिशा फराक हो आएंगे
और पीटे जाने पर बुक्का फाड़कर रो लेंगे

हम हाथ जोड़कर सत्यनारायण की कथा सुनेंगे
और लीला कलावती लीलावती की तरह परदेस कमाने या ऐश करने गए सेठ का जीवन भर इंतजार करेंगे

हम एनीमिक होंगे तब भी करेंगे निर्जला उपवास करवा चौथ तीजा की कथा सुनकर हर साल डरेंगे अपनी थाली की दाल सब्जी पति पुत्रों को मनुहार कर कर खिलाएंगे
मरते दम तक पैदा करेंगे मनु के साम्राज्य को बढ़ाने वाली जमातो को
और अगले जन्म फिर से वही घर वर पाने की कामना करेंगे

इहलोक उहलोक के हिसाब से सब मैनेज कर लेंगे किटी पार्टी वीसी फेसबुक व्हाट्सएप संभाल लेंगे

हम अपने मन के भीतर खुलने वाला दरवाजा
बंद कर उस पर ताला जड़ देंगे
कोई दस्तक नहीं सुनेंगे
कान बंद कर लेंगे
होंठ सिल लेंगे

आओ तालीबुडिया बॉलीवुडिया भोजपुरिया फिल्में आओ
एकता कपूर की मामी मौसियो भाभियों सासों ननदो आओ
पुराने को नए तहजीब में रंगकर लाओ
हमें एक बार फिर से भेड़ बकरी बनाओ

 

 

7. मैं सोच रही हूं जो कल घटित हो सकता है

 

वे पहले चोरी-छिपे योजनाएं बनाते थे

लेख लिखते,किताबें छपवाते और मुफ्त में बांटते थे

फिर उन्होंने मीटिंग और सभाएं की

उन्होंने कुछ प्रतीक हमारे बीच से उठाएं

और उन्हें अपने कपड़े पहनाकर बीच चौराहे खड़ा कर दिया

उन्होंने अपने तयशुदा एजेंडे को पूरा करने संस्कृति की मनमानी व्याख्या की

धर्म को अपने पसंद के तख्तोताज पर बैठाया

और उन्माद को सभ्यता कहकर एक के बाद एक यात्राएं निकाली

उन्होंने भीड़ की कमजोरियों को निशाना बनाया और लोगों की आस्था के रथ पर खड़ा होकर भड़काऊ भाषण दीया

वे लोकतंत्र का दुपट्टा ओढ़कर चुनाव के मैदान में चारों नीतियों के साथ कूद पड़े

उनके अनुयाई बढ़ते गए और उन्होंने एक के बाद एक जीतें हासिल की

अब तस्वीर बदल गई थी-

उन्होंने खुलकर अपना खेल शुरू कर दिया था

उन्होंने भावनाओं के साथ साथ भाषा के साथ खेलना शुरू किया

उनका अपना खुद का शब्दकोश प्रकाशित हो चुका है जो किन्ही भाषाओं के अर्थ के साथ मेल नहीं खाता उनके अनुसार दंगों को आत्म सम्मान

गुंडागर्दी को देशभक्ति और प्रतिरोध को देशद्रोह कहा जाता है

इसी तरह बहुत सारे शब्द हमारे आस-पास फैला दिए गए हैं

और वे इन्हीं शब्दों के हथियार और ढाल लेकर असहमति के शब्दों को रौंदने विश्वविद्यालयों तक की और कूच कर रहे हैं

उन्होंने हमारे चारों ओर दृश्य अदृश्य जोंबीस फैला दिए हैं

इन सब का परिणाम कितना भयानक है

कि हम अपने दोस्तों परिचितों पड़ोसियों तक को संदेह से देखने लगे हैं

हमारे बचे कुचे विश्वास पर यह समय का सबसे बड़ा हमला कि

मैं अपने बंद कमरे में बैठी सोच रही हूं कि

किसी दिन किसी को भनक लग जाएगी कि

चाय का सिप लेती हुई निजाम की सहमति के विरुद्ध मैं कुछ सोच रही हूं

और कुछ लोग मेरा दरवाजा तोड़कर भीतर घुस आएंगे

दोस्तों !!! फिर मेरे साथ कुछ भी हो सकता है….

 

8. मौसम बदलने का इंतजार नहीं करना है

दोस्तों! मुझे कुछ कहना है हम सबसे

कि छोड़ दो कुछ दिनों के लिए सोशल मीडिया पर गॉसिप करना

भूल जाओ थियेटरों की ओर जाने वाले रास्तों को

अभी अभी फैशन स्टोर में आए हुए डिजाइनों और सेलवेल की तरफ मत ध्यान दो

लड़कियों! अलमारी में से जो हाथ लगे वही पहन लो याद रखो तुम्हारी खूबसूरती लहराती मुट्ठीयो और तुम्हारी जोरदार आवाज में है

ब्यूटी पार्लरओ में नहीं

शादी की तारीख में सरका दो कुछ दिनों के लिए

यदि प्रेम में हो तो यह परीक्षा का समय है

लेखकों चित्रकारों संगीतकारों शिल्पकारो और भी सभी कला अनुशासनओं के जानकारों

एक नई किस्म की जीवंत रचनात्मकता का

फलक खुला है तुम्हारे सामने

कि कागज कलम, रंग कूची, गिटार डफली,

छेनी हथौड़ी और अपने अपने साज लेकर आओ

आओ कि सदी की खूबसूरत शाम का पहला बुलावा है

आओ कि ठंड बढ़ गई है और सबने गरम कोटओं के भीतर छिपा रखे हैं अपने हाथ

आओ कि बताना जरूरी है कि हमारे शरीर में अब भी बहता है गर्म लहू

आओ कि मौसम बदलने का इंतजार नहीं करना आओ कि हमारे साथ आने से ही बदलेगा कल का मौसम….

 

(कवयित्री आरती (24 अक्टूबर 1977) शिक्षा- एम ए( हिंदी साहित्य), समकालीन कविता में स्त्री जीवन की विविध छवियां विषय पर पीएच.डी. कई मीडिया संस्थानों में काम. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय की त्रैमासिक दो पत्रिकाओं ‘मीडिया मीमांसा’ और ‘मीडिया नवचिंतन’ के कई अंको का  संपादन.

पिछले 8 सालों से “समय के साखी” साहित्यिक पत्रिका का संपादन . समकालीन साहित्यिक, राजनीतिक परिवेश और स्त्री विषयक मुद्दों पर प्रमुख रूप से लेखन.लगभग सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में कविता और लेख प्रकाशित. एक कविता संग्रह “मायालोक से बाहर” प्रकाशित. इन दिनों रविंद्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय से संबद्ध.

संपर्क: samaysakhi@gmail.com

वर्ष 2017 में कविता के लिए दिए जाने वाले प्रतिष्ठित मलखान सिंह सिसोदिया पुरस्कार से सम्मानित टिप्पणीकार संजीव कौशल, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी में पी.एच.डी. 1998 से लगातार कविता लेखन। ‘उँगलियों में परछाइयाँ’ शीर्षक से पहला कविता संग्रह साहित्य अकादमी दिल्ली से प्रकाशित।
देश की महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं में कविताएं, लेख तथा समीक्षाएं प्रकाशित। भारतीय और विश्व साहित्य के महत्वपूर्ण कवियों की कविताओं के अनुवाद प्रकाशित)

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