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बिहार में 10 दिन से हड़ताल पर हैं एक लाख आशा कार्यकर्ता

पटना. सरकारी कर्मी घोषित करने , 18 हजार मासिक मानदेय देने सहित 12 सूत्री मांगों को लेकर बिहार की आशाकर्मी 10 दिन से हड़ताल पर हैं. आशाकर्मियों की हड़ताल से पांच दिसंबर को आरआई टीकाकरण पूरी तरह बाधित रहा.

हड़ताल में बिहार की एक लाख से अधिक आशा कार्यकर्ता शामिल हैं. हड़ताल एक दिसंबर से शुरू हुई थी. आशाकर्मी सरकारी कर्मचारी का दर्जा, 18 हजार रुपये मासिक मानेदय, योग्यताधारी आशा को नर्सिंग स्कूलों में 50 प्रतिशत सीट रिजर्व करने, प्रशिक्षण के उपरांत आशा के कार्य अवधि वर्ष तक उम्र सीमा में छूट देते हुए एएनएम पद पर पदस्थापन करने, योग्यताधारी आशा फैसलिटेटरों को प्रखंड सामुदायिक समन्वय के 50 प्रतिशत पदों पर नियुक्ति करने, सभी को ईएसआई-ईपीएफ, अन्य सामाजिक सुरक्षा सहित 12 सूत्री मांगों पर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं. हड़ताल पर जाने के 15 दिन पहले आशाकर्मियों ने सरकार को सूचना दी थी लेकिन सरकार ने इस पर कोई नोटिस नहीं लिया.

आशाकर्मियों की हड़ताल से ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं पर गहरा असर पड़ा है. लगभग 32 जिलों के अधिकांश स्वास्थ्य केंद्र इस हड़ताल से प्रभावित हुए हैं. पांच दिसंबर का टीकाकरण अभियान पूरी तरह ठप्प रहा

बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ (ऐक्टू-गोप गुट) की अध्यक्ष सह “आशा संयुक्त संघर्ष मंच” नेत्री शशि यादव के नेतृत्त्व में हड़ताल के पांचवे दिन पटना जिला के नौबतपुर रेफरल अस्पताल से पूरे नौबतपुर बाज़ार में प्रतिवाद मार्च निकाला गया.

आशा कार्यकर्ता संघ की अध्यक्ष शशि यादव ने कहा कि नीतीश सरकार आशा की मांगों पर वार्ता करने के बजाए दमन का रास्ता अपना रही है. उन्होंने नीतीश पर महिला सशक्तिकरण का ढोंग करने का आरोप लगाते हुए कहा कि जब लाखों कामकाजी आशा महिलाओं के सशक्तिकरण से जुडी मांग किया जा रहा है तो नीतीश वार्ता से भाग रहे है और आन्दोलन के दमन पर उतर गये है. यही उनका असली चेहरा है.

उन्होंने कहा कि  बिहार के तीन आशा संघों के आशा संयुक्त संघर्ष मंच के आह्वान पर पूरे राज्य में आशाओं की अनिश्चितकालीन हडताल पूरी तरह सफल है.

वाम दलों ने आठ दिसंबर को आशा कार्यकर्ताओं द्वारा जारी राज्यव्यापी अनिश्चतकालीन हड़ताल के साथ एकजुटता जाहिर की है और इस मसले पर बिहार सरकार के अति संवेदनहीन रुख की कड़ी आलोचना की.

भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल, सीपीआई के राज्य सचिव सत्यनारायण सिंह, सीपीआईएम के राज्य सचिव अवधेश कुमार, एसयूसीआईसी के राज्य सचिव अरूण कुमार, फारवर्ड ब्लाॅक के अमेरिका महतो और आरएसपी के वीरेन्द्र ठाकुर ने संयुक्त बयान जारी करके कहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए और आशाकर्मियों की मांगों को पूरा करते हुए हड़ताल समाप्त करवाना चाहिए ताकि स्वास्थ्य सेवायें पहले की तरह बहाल हो सके.

वाम नेताओं ने कहा कि आशा कार्यकर्ताओं की हड़ताल से जनता को भारी परेशानी हो रही है. इसके लिए पूरी तरह बिहार सरकार की जिम्मेवारी बनती है. यदि उसने समय रहते आशाकर्मियों से किसी स्तर पर वार्ता की होती तो आज स्वास्थ्य सेवाओं पर इस कदर दवाब नहीं बनता.

वाम दलों ने मुख्यमंत्री से आंदोलनरत कर्मियों से वार्ता करने और उनकी मांगों पर उचित कार्रवाई करने की मांग की.

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