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पृथ्वी दिवस: विश्व बंधुत्व के भाव से पृथ्वी के संरक्षण के लिए ठोस पहल की ज़रूरत है!

अभिषेक मिश्र


अस्तित्व में आने के बाद से कई भौतिक, रासायनिक, जैविक अभिक्रियाओं से गुजरते पृथ्वी जीवन के लिए अनुकूल हुई।

एक कोशिकीय से बहुकोशिकीय जीवन के विविध रूपों के निर्माण की एक लंबी शृंखला चली, जिसका वर्तमान रूप आज हमारे सामने है।

इस क्रम में कई प्रजातियाँ जन्मीं और समय के साथ विलुप्त भी हो गईं। जलचर, थलचर, नभचर, पादप आदि कई प्रजातियाँ आज पृथ्वी की गोद में आश्रय पा रही हैं। मनुष्य भी उनमें एक है। होश संभालते ही मनुष्य ने स्वयं को पृथ्वी की गोद में पाया।

अपनी विकासयात्रा के हर पड़ाव पर वह पृथ्वी पर आश्रित रहा और पृथ्वी ने एक माँ के समान उसकी तमाम आवश्यकताएँ मुक्त हृदय से पूर्ण कीं। इसने दोनों के मध्य एक अनन्य समब्न्ध विकसित किया।

बुद्धि और ज्ञान की अतिरिक्त क्षमता से सम्पन्न मनुष्य ने इसे स्वीकृति और अभिव्यक्ति भी दी।
विभिन्न महापुरुषों और समाजसुधारकों ने समय-समय पर पृथ्वी के प्रति संवेदनशील होने और अपनी जिम्मेदारियां निभाने की सलाह दी।

गांधी जी ने भी इसे और सरलता से समझाते हुये ट्रस्टिशिप का उदाहरण देते हुये मनुष्य के पास पृथ्वी को एक उत्तराधिकार के रूप में बताया जो उसे अगली पीढ़ी को सौंपना है। परंतु मनुष्य और पृथ्वी के मध्य का यह संबंध सदा सामान्य नहीं रहा।

अपनी विकासयात्रा के विभिन्न पड़ावों में मनुष्य ने पृथ्वी और इसके संसाधनों का अपने स्वार्थ के लिए अंधाधुंध दोहन आरंभ कर दिया। परिणाम कई प्रकार के पर्यावरणीय परिवर्तनों और उनके दुष्परिणामों के रूप में सामने आया।

जहाँ जागरूक समाज में पृथ्वी और पर्यावरण संरक्षण के कई सिद्धांत धार्मिक और लोक परंपराओं में शामिल होते रहे, वहीं विकास की अंधी दौड़ ने इसे नुकसान पहुँचाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी और वह समय भी आ गया जब पृथ्वी और पर्यावरण का संरक्षण सिर्फ उपदेशों के लिए नहीं बल्कि हमारे अस्तित्व के लिए अपरिहार्य हो गया।

ऐसे में इसे लेकर गंभीर चिंताएँ और प्रयास किए जाने लगे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के पश्चात ऐसी किसी पहल का पूरे विश्व में एक साथ संचालन की संभावनाएँ और भी दृढ़ हुई हैं।

पृथ्वी दिवस का प्रारंभ: 1970 का दौर जब अमेरिका सहित पूरे विश्व में पर्यावरण चिंता का एक महत्वपूर्ण विषय बनता जा रहा था।

150 वर्षों के औद्योगिक क्रांति के नकारात्मक प्रभाव, धूम्र निर्मित जानलेवा कोहरा, प्रदूषण की वजह से बच्चों के विकास संबंधी बाधाओं के चिकित्सकीय प्रमाण जैसे कई विषय सामने आ रहे थे; जिनसे पर्यावरण को लेकर एक वैश्विक जागरूकता और आपसी समझ विकसित होती जा रही थी। इसी दौर में यूनाइटेड स्टेट्स के विस्कॉन्सिन (Wisconsin) के सीनेटर जेलोर्ड नेल्सन (Gaylord Nelson) जो बाद में अर्थ डे के संस्थापक बने और जिन्होने अपनी आँखों से 1969 में सेंता बारबरा के भयानक तेल रिसाव और उसके दुष्परिणामों को भी देखा था; ने युवाओं की तब उमड़ी युद्ध विरोधी भावनाओं और ऊर्जा को पर्यावरण संरक्षण की दिशा में प्रयोग करने के उद्देश्य से 22 अप्रैल को ‘पृथ्वी दिवस’ मनाने के लिए एक बिल पारित किया।

इस तिथि के चयन को लेकर कई धारणाएँ हैं, किन्तु उनके अनुसार इसे चुनने का कारण इस दौरान स्थानीय विद्यालयों-महाविद्यालयों में परीक्षाओं का न होना तथा किसी प्रमुख धार्मिक उत्सव/अवकाश के न होने के कारण अधिकाधिक लोगों की सहभागिता की संभावना भी थी। इसी के साथ 21 मार्च 1970 को बसंत विषुव (Equinox) पर पृथ्वी दिवस मनाने का प्रस्ताव सैन फ्रांसिस्को के एक शांति कार्यकर्ता जॉन मैककोनल का भी था। UN ने इसे मानने के साथ Earth Day Foundation द्वारा 22 अप्रैल को चलाई जा रही मुहिम को भी अपना समर्थन दिया।

1970 से 1990 तक यह पूरे विश्व में फैल गया। 1990 तक यह एक अंतराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाने लगा और 2009 में संयुक्त राष्ट्र ने 22 अप्रैल को ‘विश्व पृथ्वी माँ दिवस’ (International Mother Earth Day) के रूप में मनाने की घोषणा कर दी। और इस प्रकार 22 अप्रैल 1970 को आधुनिक पर्यावरणीय आंदोलन की वर्षगांठ के रूप में मान्यता प्रदान की गई। पृथ्वी के बर्थ डे से भी ‘अर्थ डे’ का साम्य माना गया है।

विश्व के कई शहरों में पृथ्वी सप्ताह भी मनाया जाता है जो आमतौर पर 16 अप्रैल से आरंभ होकर 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस पर समाप्त होता है।

प्रथम पृथ्वी दिवस के परिणामों में कांग्रेस द्वारा कई महत्वपूर्ण कानूनों का पारित होना भी शामिल है, जिनमें स्वच्छ वायु अधिनियम, संयुक्त राज्य पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी का निर्माण आदि प्रमुख हैं। आगे चलकर यह दिवस संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से पर्यावरण और जलवायु संबंधी कई पहलों का आधार बना।

वर्तमान में पृथ्वी दिवस नेटवर्क (Earth Day Network) के तत्वावधान में लगभग 193 देश इस आयोजन में सहभागिता कर रहे हैं।

पृथ्वी दिवस की उपयोगिता: पृथ्वी दिवस ने पूरे विश्व में पृथ्वी के प्रति हमारे व्यवहार और पर्यावरण को लेकर एक मंच और अवसर तो प्रदान किया है, किन्तु यह तय है कि इसके लिए मात्र एक दिन की औपचारिकता काफी नहीं है; बल्कि यह गंभीरता हमारे दैनिक व्यवहार में भी झलकनी चाहिए।

इस दिवस पर विद्यालयों, महाविद्यालयों के साथ स्वयंसेवी संस्थाएं इस विषय पर चेतना लाने का प्रयास करती हैं, जिनसे एक जनमत का निर्माण होता है। पृथ्वी दिवस पर हर वर्ष एक विषयवस्तु (Theme) भी रखी जाती है, जो उस विषय पर जनता के ध्यानाकर्षण हेतु महत्वपूर्ण सिद्ध होती है।

इस वर्ष यह थीम है- ‘Protect Earth Species’

हमने अपने विकास की अंधी दौड़ में पृथ्वी की जैव विविधता और विभिन्न प्रजातियों का कितना नुकसान किया है इसकी एक झलक इन तथ्यों से मिल सकती है-

1. 1970 के बाद से पृथ्वी पर रहने वाले जीवों की संख्या में लगभग 40% की कमी आई है
2. पृथ्वी पर मौजूद पक्षियों की संख्या में लगभग 40% की कमी आई है और लगभग 13% पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है।
3. हमारे आसपास के कीटों की संख्या में भी गम्भीर गिरावट आई है। पूरे विश्व में आज लगभग 500 कीट प्रजातियां शेष हैं।
आसानी से समझा जा सकता है कि इसके पीछे हमारी असंवेदनशीलता और विकास की हानिकारक दिशा है।
प्रकृति के सभी जीव एक श्रृंखला से जुड़े हैं। इस श्रृंखला में एक कड़ी का बिखराव पूरी श्रृंखला को प्रभावित कर सकता है।
ये कीट-पतंगें पौधों और फसलों को परागित करते हैं, कचरे को रीसाइकिल करते हैं और स्वयं दूसरों के भोजन का स्रोत होते हैं।
इन विविध जीवों के लुप्त होने की प्रमुख वजहों में जलवायु परिवर्तन, कटते वन, कंक्रीटीकरण, शहरीकरण, अवैध शिकार और खेती-बाड़ी में कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल, प्लास्टिक प्रदूषण आदि हैं।

इनके संरक्षण के लिए रसायनों की जगह जैविक प्रक्रिया को अपनाना ज्यादा कारगर होगा।
अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) द्वारा विलुप्त होने की कगार पर खड़े जानवरों की जारी सूची के अनुसार 26,500 से अधिक प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है, जिनमें से 40 प्रतिशत उभयचर, 34 प्रतिशत शंकुधारी, 33 प्रतिशत रीफ-बिल्डंग कोरल, 25 प्रतिशत स्तनधारी, 14 प्रतिशत पक्षी हैं।
ऐसे में इसे थीम बनाने से निश्चित रूप से लोगों में इसे लेकर जागरूकता बढ़ेगी और इनके संरक्षण हेतु विभिन्न विकल्पों पर लोग विचार करेंगे।

पृथ्वी दिवस के प्रति हमारी भूमिका: जैसा कि अंतराष्ट्रीय पृथ्वी माँ दिवस के नाम से ही स्पष्ट है, यह दिवस सारी पृथ्वी को अपनी माँ मानते हुये विश्व बंधुत्व के भाव से पृथ्वी के संरक्षण के लिए ठोस पहल हेतु प्रेरित करता है। पृथ्वी पर हर जीव-जन्तु के अस्तित्व का एक कारण है और वह अपनी भूमिका निभाता है। तो सबसे समझदार जीव मनुष्य की भूमिका क्या सिर्फ धन-सम्पदा अर्जित कर एक दिन जगत छोड़ जाने में ही है! पृथ्वी के संरक्षण के प्रति हमारी जिम्मेदारी ज्यादा बड़ी है। हम कई स्तरों पर अपनी भूमिका निभा सकते हैं। कई कार्यों के लिए हमें सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता होगी तो कई कार्य हम व्यक्तिगत स्तर पर भी कर सकते हैं। पर्यावरण संरक्षण प्रभु श्री राम जी के सागर पर सेतु निर्माण सदृश्य ही यह एक बृहत कार्य है, इसमें अपनी-अपनी क्षमता और योग्यतानुसार हमें अपना योगदान देना ही चाहिए; चाहे गिलहरी सदृश्य ही सही।

मृत हो रही नदियों का संरक्षण, सूखते तालाबों/जलाशयों का संरक्षण, सफाई, नियमित प्रबंधन, बृहद वृक्षारोपण, वन, प्रकृति आदि को नुकसान पहुँचने वाली परियोजनाओं पर नियंत्रण, समुद्र तथा पर्वतों के प्रदूषण पर नियंत्रण जैसे कई कार्य हम समाज और समूहों के सहयोग से कर सकते हैं।

इसके अलावा व्यक्तिगत स्तर पर भी कई पहलें की जा सकती हैं। विभिन्न अवसरों पर अपने आस-पास वृक्षारोपण, उपहार में वृक्ष देने की परंपरा आरंभ करना, कागजों की जगह ऑनलाइन विकल्पों का ज्यादा उपयोग, प्लास्टिक का कम उपयोग (यदि हमने प्रतिदिन एक प्लास्टिक का भी कम उपयोग किया तो यह एक वर्ष में 365 की संख्या होगा, जो अन्य नागरिकों के भी सहयोग से एक बड़े योगदान में बदल सकती है), बाहर निकलने पर पानी की बोतल और कपड़े का थैला पास रखना, शाकाहार, पेट्रोलियम पदार्थों का कम व्यय, कूड़ा-कचड़ा का प्रबंधन, क्लोरो-फ़्लोरो कार्बन जैसी ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचा सकने वाली गैसों का उत्सर्जन करने वाली सामग्रियों का सीमित उपयोग जैसे कई कार्य हैं जो हम अपने स्तर पर भी कर सकते हैं।

इन सबके साथ बच्चों को भी इस संबंध में जागरूक करना और भी आवश्यक है ताकि वो भी इस जिम्मेदारी को आगे की ओर बढ़ा सकें।

जैसी कि गांधी जी की एक प्रसिद्ध उक्ति है- “पृथ्वी के पास हमारी आवश्यकताओं के लिए ही पर्याप्त सम्पदा है, न कि हमारे लोभ के लिए।” अतः पृथ्वी से जुड़ाव महसूस करते हुये इसे संरक्षित रखे रहने के भी प्रयास करें। पृथ्वी के संरक्षण में ही हमारा भी भविष्य सुरक्षित है।

हमें ध्यान रखना होगा कि अपनी आपराधिक मूर्खताओं और कृत्यों से हम पृथ्वी पुत्र ही पृथ्वी माता के सबसे बड़े गुनाहगार न बन जाएँ, और फिर स्रष्टा भी यह न सोचने पर मजबूर हो जाए कि धरती को बचाने के लिए इंसानों को ही दुनिया छोड़ देनी चाहिए…!

पृथ्वी के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को महसूस और स्वीकार करते हुये उसके संरक्षण के प्रति हमारा गंभीर प्रयास ही पृथ्वी के प्रति हमारा उऋण होना और पृथ्वी दिवस जैसे आयोजनों के प्रति हमारी गंभीरता को दर्शाएगा।

(अभिषेक कुमार मिश्र भूवैज्ञानिक और विज्ञान लेखक हैं. साहित्य, कला-संस्कृति, फ़िल्म, विरासत आदि में भी रुचि. विरासत पर आधारित ब्लॉग ‘ धरोहर ’ और गांधी जी के विचारों पर केंद्रित ब्लॉग ‘ गांधीजी ’  का संचालन. मुख्य रूप से हिंदी विज्ञान लेख, विज्ञान कथाएं और हमारी विरासत के बारे में लेखन)

Email: abhi.dhr@gmail.com , ब्लॉग का पता -ourdharohar.blogspot.com

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