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पाकिस्तान के साम्यवादी और ट्रेड यूनियन नेता तुफ़ैल अब्बास की मृत्यु पर शोक संदेश

विजय सिंह


तुफ़ैल अब्बास (1927 – 9/9/2019)

9 सितंबर को काराची मे काॅमरेड तुफ़ैल अब्बास का निधन हो गया। वे 92 वर्ष के थे। वे पाकिस्तानी इतिहास में एक अग्रणी साम्यवादी और ट्रेड यूनियन नेता के रूप मे जाने जाते रहे हैं।

पाकिस्तान मे विभिन्न उतार-चढ़ाव, परिघटनाओं और मौकों पर उनके अपने पूरे जीवन में उनके विचारों और कार्यों मे लेनिन और स्तालिन के लिए अटूट समर्थन और आग्रह रहा है।

लेनिनवाद और स्तालिनवाद के लिए उनका ये अटूट समर्थन, प्रयास और योगदान ही था जिसकी वजह से उस समय पाकिस्तान में सोवियत यूनियन के पक्ष में जनसमर्थन का ज्वार स्थापित हुआ।

ये वो समय था जब सोवियत यूनियन का क्रांतिकारी समय अपने चरम पर था। उनका यह अटूट समर्थन, योगदान और प्रयास ही वह कारक था जिसकी वजह से सोवियत संशोधनवाद का प्रभाव पाकिस्तान में कम हुआ।

यह वो समय था जब कई स्थानीय पार्टियाँ इस उम्मीद मे थीं कि अफ़ग़ानिस्तान पर आक्रमण का असर पाकिस्तान तक फैलेगा।

उनका यही अटूट समर्थन और प्रयास एक महत्वपूर्ण कारक था जिसकी वजह से कृषक क्रांति की अवधारणा का मेहनतकश वर्ग से अलगाव नहीं हुआ।

यह उपलब्धि भारत से बिल्कुल उलट थी।
यह समझ भारत की पार्टियों की “व्यक्तिगत अरजकतावादियों को नज़रअंदाज़ करके कुछ जनसंपर्क प्राप्त करने” की नीति के बिल्कुल उलट थी।

काॅमरेड तुफ़ैल ने कम्युनिस्ट पार्टियों में और उनके जनमोर्चों में अहंभाव, व्यक्तिवाद, गुटबाज़ी और जनवादी केन्द्रवाद के उलंघन (Violation of Democratic Centralism) को कभी बर्दाश्त नहीं किया, जो मेहनतकश वर्ग और उनकी गतिविधियों की भरपूर ताकत के लिए ज़रूरी था।

भारत से प्रकाशित जनपत्रिका व जनसंगठन “रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेसी” और जनमोर्चा “स्तालिन सोसाइटी, इंडिया के लिए काॅमरेड तुफ़ैल साहब एक खास लगाव रखते थे अतएव उन्होंने अपनी राजनैतिक आत्मकथा के विमोचन के लिए एक भारतीय प्रतिनिधि-मण्डल को कराची आमंत्रित किया।

तुफ़ैल अब्बास अब नहीं हैं जबकि उनके योगदान द्वारा खड़े किए गये कम्युनिस्ट आंदोलन और ट्रेड यूनियन आंदोलन, वे सब तुफ़ैल साहब के people’s democracy के कार्यों को अग्रसर करते रहेंगे।

शोक की इस घड़ी में हमारा साथ, सांत्वना व सहानुभूति उनके परिवार और पूरी दुनिया में बसे समस्त साथियों के साथ है।

काॅमरेड तुफ़ैल को लाल सलाम।
काॅमरेड तुफ़ैल अब्बास अमर रहें।

 

(विजय सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय से सेवा निवृत्त प्राध्यापक और रेवोल्यूशनरी डेमोक्रेसी के संपादक हैं)

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