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प्रशांत कनौजिया, इशिता सिंह और अनुज शुक्ला को तुरंत रिहा किया जाए: नेटवर्क औफ विमेन इन मीडिया (इंडिया)

नई दिल्ली. नेटवर्क औफ विमेन इन मीडिया (इंडिया) ने पत्रकार प्रशांत कनौजिया, इशिता सिंह और अनुज शुक्ला की गिरफ्तारी की कड़ी निंदा करते हुए उन्हें तुरंत रिहा करने की मांग की है.

नेटवर्क औफ विमेन इन मीडिया (इंडिया) की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि प्रशांत कनौजिया एक स्वतंत्र पत्रकार हैं, जिनके खिलाफ आरोप है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ ट्वीट किया। उन्हें गिरफ्तारी में लेनेवाली उत्तर प्रदेश पुलिस का कहना है कि ये ट्वीट – जिसमें एक महिला के योगी आदित्यनाथ को लेकर कुछ आरोप हैं – मुख्य मंत्री की छवि को नुकसान पहुँचाता है।

9 जून 2019 को उ.प्र. पुलिस सादे कपड़ों में प्रशांत के घर पहुँची और उन्हें लखनऊ ले गई। उन पर आई.टी. कानून की धाराएँ 500 और 66 लगाई गईं। गिरफ्तारी के वक्त कोई वारंट नहीं दिखाया गया। बाद में और धाराएँ जोड़ी गईं।

उ.प्र. पुलिस ने नोएडा के नेशन लाइव चैनल की प्रमुख इशिता सिंह और चैनल के एक सम्पादक अनुज शुक्ला को भी गिरफ्तार किया है। गिरफ्तारी का कारण बताया गया चैनल द्वारा एक विडियो दिखाना जिसमें एक महिला प्रदेश के मुख्य मंत्री को लेकर कुछ ऐसे दावे कर रही है जिससे कथित रूप से योगी आदित्यनाथ की मानहानि होती है।

उसी शाम पुलिस ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की जिसमें चेतावनी दी गई की सोशल मीडिया पर ऐसी बातें न लिखी जाए जिससे कानून और व्यवस्था में खलल पड़े। एक लोकतंत्र में अगर मुख्य मंत्री की आलोचना को कानून-व्यवस्था को भंग करना माना जाए तो ये अभिव्यक्ति के अधिकार का हनन है।

तीनों लोगों को सप्ताहान्त के दौरान गिरफ्तार किया गया जब न्यायालय बंद रहते हैं और जमानत की प्रक्रिया मुश्किल हो जाती है। ये तथ्य इसी ओर इशारा करते हैं कि पुलिस इन्हें और परेशान कर न्यायिक प्रक्रिया से यथासंभव दूर रखना चाहती है।

ये गिरफ्तारियाँ पत्रकारों के मौलिक अधिकारों पर ही नहीं बल्कि संविधान में दिए उनके अभिव्यक्ति के अधिकार पर भी एक हमला है। स्थिति ये भी दर्शाती है कि उत्तर प्रदेश पुलिस किसी भी प्रकार की असहमति के प्रति सहनशील नहीं और केवल एक खास किस्म के अपराधों को ही ज्यादा तवज्जो देती है।

भारतीय संविधान ने प्रेस की स्वतंत्रता को अभिव्यक्ति की आजादी का हिस्सा माना है। पर इन तीन पत्रकारों की गिरफ्तारी कानून का गलत और पक्षपाती इस्तेमाल दिखाते हैं। देश में पत्रकारों की मनमानी गिरफ्तारियाँ, गैरकानूनी नजरबन्दियाँ और उत्पीड़न में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

ये गिरफ्तारियाँ इस बात का संकेत हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति के प्रति सहनशीलता के लिए सही माहौल बनाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और मंशा की कमी है। ऐसे कदम सेल्फ-सेन्सरशिप को बढ़ावा देने की एक कोशिश हैं, जिससे पत्रकार खुद ही सच उजागर करने से पीछे हटने लगें।

इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए हम ये माँग करते हैं कि- प्रशांत कनौजिया, इशिता सिंह और अनुज शुक्ला को तुरंत रिहा किया जाए, उन पर लगे सभी आरोपों को वापस लिया जाए और पत्रकारों के खिलाफ होने वाले कानून के गलत इस्तेमाल पर एक विश्वसनीय जाँच कराई जाए.

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