समकालीन जनमत
चित्र -जीतू
ज़ेर-ए-बहस

बाढ़ नहीं, सरकार निर्मित जलजमाव की चपेट में पटना

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून

पानी गये ना ऊबरे, मोती, मानुष, चून

सैकड़ों साल पहले रहीम द्वारा रचित इस दोहे को पूंजीवादी युग की दक्षिणपंथी सरकारों ने गलत-सलत अर्थों में सही मगर बड़ी गंभीरता से लिया है. बाजारीकरण के दौर में शहरों को पूरी तरह निजी हाथों में बेचकर बाजार बनाने में लगी सरकारों ने ‘पानी राखिये’ वाले अंश को प्रमुखता से स्थान दिया है. शहरों के बाजारीकरण/निजीकरण  के दौरान शहर में नाक तक पानी रखने का इंतजाम कर दिया गया गया है.

बिहार की राजधानी पटना में सिर्फ 2 दिन की बारिश ने शहर में हर ओर पानी का साम्राज्य खड़ा कर दिया. इन दिनों पटना में सबसे प्रमुखता से पानी ही दृश्यमान है. और दीखते हैं उसमें डूबे कंक्रीट के मकान और कचड़े से सने पानी में राहत तलाशते नागरिक. लेकिन पटना में बाढ़ नहीं आई है, पटना में बड़े पैमाने पर सरकार निर्मित जल-जमाव है. ऐसा जलजमाव जिसमें शहर का बड़ा हिस्सा कई फीट तक गंदे पानी में पीने भर का पानी तलाश रहा है.

बारिश शांत है और मंगलवार को शहर के ऊपर सूरज चमक रहा है. एक बड़े क्षेत्र में पानी निकलने की रफ़्तार इतनी धीमी है कि अगले कुछ दिनों में महामारी फैलने का खतरा है.

पटना शहर को पिछले कई-कई सालों से बाजार बनाया रहा है. सरकार शहर को निजी हाथों में बेचकर बाजार के विस्तार के सारे आयाम सुनिश्चित कर रही है. कई सालों से पुरे शहर की खुदाई की जा रही है. शहर के तक़रीबन हरेक हिस्से में वर्षों से निर्माण किया जा रहा है. गंगा किनारे बसे इस शहर में गंगा के मध्य तक निर्माण हो रहा है, मिट्टी और पानी पर कंक्रीट की मोटी परतें बिछाई जा रही है. शहर में मिट्टी का दिखना बंद हो रहा है ओर पटना ‘कंक्रीट सिटी’ बनने की ओर तेजी से अग्रसर है.

पटना नगर निगम की बैठकें बिना कुर्सी टूटे संपन्न नहीं होती है. जनता के प्रतिनिधि और राज्य के मुख्यमंत्री, उप-मुख्यमंत्री तथा मंत्री इसे हथिया नक्षत्र का प्रकोप बताकर सारा दोष प्रकृति पर डालकर पल्ला झाड़ते रहे हैं.

सरकार पटना में ड्रेनेज सिस्टम का कोई मास्टर प्लान आजतक नहीं बना पाई है. दशकों से कई परियोजनाओं पर करोड़ों रूपये खर्च करने(कुछ लोगों/निजी कंपनियों के मुनाफे के लिए) के बाद भी 2 दिन की बारिश में पटना नाक तक डूब जाता है. आलम यह है कि पिछले वर्ष(या उससे पहले के वर्ष में) पटना नगर निगम के कर्मचारी खान साहब(इसी नाम से जाने जाते थे) की मृत्यु के बाद निगम के पास एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसके पास शहर के ड्रेनेज सिस्टम की जानकारी हो.

नगर निगम का ज्यादातर हिसाब-किताब ठेके पर दे दिया गया है. उसमें भी शहर के ड्रेनेज को लेकर काम करने वाले ज्यादातर ठेकेदार और मजदूर दिहाड़ी हैं. निगम के इंजिनियर सहित किसी कर्मचारी को(ज्यादातर ठेके पर या निजी कंपनियों के) शहर में पानी निकासी को लेकर कोई जानकारी या शहर के नक्शे तक की जानकारी नहीं है.

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सरकार और नगर निगम द्वारा हर वर्ष बारिश के समय में शहर की नालियों की उड़ाही की जाती है. शहर के सिवेरेज में खाना-पूर्ति के लिए आधा-अधूरा काम कर हर साल इसे छोड़ दिया जाता है. शहर से निकलने वाला सारा कचड़ा शहर के ड्रेनेज में फंसा रह जाता है. ऐसे में बारिश में जब नदियाँ भर जाती हैं तो शहर में हुई बारिश का सारा पानी शहर में ही डेरा डाल देती है.

पटना तीन नदियों के किनारे बसा शहर है जिसमें गंगा नदी प्रमुख है. पटना आते-आते गंगा बूढी होती जाती है और ज्यादा पानी तथा सिल्ट अपने साथ नहीं ले जा पाती है. साथ ही गंगा के बहाव क्षेत्र को सिकोड़कर वहां निर्माण कर कंक्रीट बिछाया जा रहा है. गंगा के बहाव क्षेत्र में दूर तक ऊँचे-ऊँचे आवासीय मकान बनाए जा रहे हैं तथा इन क्षेत्रों में बालू माफियाओं का कब्जा है. ऐसा ही हाल शहर के चारों तरफ है.

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गंगा की घाटी में छेड़छाड़ चरम पर है तथा नदी में भारी मात्रा में गाद जमा है. नदियों को पाटकर पुल और मकान बनाए जा रहे हैं. नमामि गंगे के नाम पर लूट चरम पर है . शहर के विकास में नदियों ओर तालाबों के सामंजस्य का ज़रा भी ध्यान नहीं रखा गया है.

पटना शहर तालाबों का भी शहर रहा है. मगर बाजारीकरण के दौर में शहर के सैकड़ों तालाबों को पाटकर मकान, दूकान ओर सरकारी इमारत बना दिए गए हैं. दशकों पहले पटना को बर्बाद करने का सिलसिला अबतक जारी है तथा स्मार्ट सिटी के नाम पर शहर के बचे-खुचे तालाबों को भी कंक्रीट से पाटा जा रहा है. शहर के तमाम प्राकृतिक जल श्रोतों(जिसका शहर में ग्राउंड वाटर के सामंजस्य में बड़ा महत्व था) को खत्म कर उसे बाजार के हवाले कर दिया गया है. शहर में ग्राउंड वाटर मैनेजमेंट का ज़रा भी ध्यान नहीं रखा गया है. शहर में मौजूद सारी कच्ची जगहों को सौन्दर्यीकरण के नाम पर पक्का कर दिया गया है/किया जा रहा है. इन हालात में शहर से पानी निकासी का कोई ठोस उपाय नहीं होने के कारण 48 घंटों की बारिश में ही शहर जलमग्न हो जाता है.

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सीधे शब्दों में कहें तो पटना एक भयंकर अनप्लांड तरीके से विकसित हो रहा बाजार है तथा बाजारीकरण के दौर में बाजार के विस्तार में मददगार सरकार और निगम द्वारा शहर को लगातार निजी हाथों में सौंपने के कारण शहर प्राकृतिक असंतुलन(सरकार निर्मित) को झेल पाने में पूरी तरह अक्षम है.

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