समकालीन जनमत
कहानीशख्सियत

मैं सोसाइटी की चोली क्या उतारूँगा जो है ही नंगी

(उर्दू के चर्चित कहानीकार सआदत हसन मंटो की आज पुण्यतिथि है । प्रस्तुत है उन पाँच कहानियों के बारे में जिन पर अश्लीलता के आरोप में मुकदमे चले: सं )

मंटो की मकबूलियत सिर्फ हिंदुस्तान और पाकिस्तान में ही नहीं बल्कि जहाँ-जहाँ उर्दू-हिंदी जानने-बोलने वाले हैं बेशक वहाँ तक मंटो की मकबूलियत फैली हुई है। मंटो तांगे वालों का कहानीकार है, चना बेचने वालों का कहानीकार है यानि समाज के आखिरी पायदान पर खड़े लोगों का कहानीकार है। छोटी-छोटी कहानियों में बड़ी से बड़ी बात कह देना मंटो की खासियत है। यही खासियत उसे ओ हेनरी और मोपासां की फेहरिश्त में लाकर खड़ा कर देती है। अफ़सोस की मंटों पर फोहश लिखने के आरोप में पाँच मुकदमे चले:

पहला मुकदमा
काली सलवार मंटो की पहली कहानी थी जिसपर मुकदमा चला। यह कहानी 1942 में ‘अदब-ए-लतीफ़” पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। फोहशनिगारी के अपराध में अदालत ने दंड दिया लेकिन सेशन कोर्ट ने अभियोग से मुक्त कर दिया। मंटो ने लज़्ज़ते संग में इस संबंध में लिखा है कि मैैंने इसमें कहीं भी मर्द और औरत के यौन संबंध को लज़ीज़ अंदाज में बयान नहींं किया। मेरी सुल्ताना से, जो अपने ग्राहक गोरों को अपनी ज़बान में गालियाँ दिया करती है और उनको उल्लू के पट्ठे समझती है, किसी किस्म की लज़्ज़त या किसी के आनन्द की उम्मीद की जा सकती है? वह एक दुकानदार थी, ठेठ किस्म की दुकानदार।

दूसरा मुकदमा
दूसरी कहानी जिस पर मुकदमा चला वो थी ‘बू’ कहानी। यह कहानी भी अदब-ए-लतीफ़ पत्रिका के वार्षिक अंक 1944 में छपी थी। इसी अंक में मंटो का एक लेख भी छपा था इसपर भी केस चला। इस लेख पर डिफेन्स ऑफ़ इंडिया रूल्स की धरा 88 के अंतर्गत मुकदमा चलाया गया लेकिन इस केस में भी मंटो बरी हुए।

तीसरा मुकदमा
मंटो का एक कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ था साक़ी बुक डिपो, दिल्ली से 1941 में। इस संग्रह का नाम था ‘धुआँ’। इस संग्रह की एक कहानी भी थी धुआँ। धुआँ कहानी पर ताज़ीराते-हिन्द की धारा 292 के अंतर्गत मुकदमा चला। मंटो पर दो सौ का जुर्माना लगा। मंटो ने जुर्माना भरा लेकिन बाद में सेशन कोर्ट में अपील के बाद मंटो बरी हुए और  जुर्माना वापस करने का आदेश हुआ।

चौथा मुकदमा

पाकिस्तान जाने के बाद मंटो ने जो पहली कहानी लिखी वो थी ‘ठंडा गोश्त’। ‘जावेद’ पत्रिका के विशेषांक मार्च 1949 में यह कहानी प्रकाशित हुई थी। पत्रिका का यह अंक जब्त हो गया। प्रकाशक, मुद्रक और पत्रिका के मालिक सहित मंटो को गिरफ्तार कर लिया गया। मंटो को तीन महीने का सश्रम कारावास और तीन सौ रूपये का जुर्माना हुआ। मंटो ने सेशन कोर्ट लाहौर में अपील की तो उन्हें बरी कर दिया गया और जुर्माना भी वापस हुआ।

पाँचवाँ मुकदमा

आखिरी कहानी जिसपर केस चला वो है ‘ऊपर, नीचे और दरमियान’। यह कहानी लाहौर से प्रकाशित होने वाले अखबार ‘एहसान’ में छपी थी। मुकदमे के मजिस्ट्रेट मेहदी अली सिद्दीकी मंटो के प्रशंसक थे। इस कहानी के लिए मंटो को 25 रूपये जुर्माना किया गया। हुआ ये था कि मजिस्ट्रेट ने पूछा आज क्या तारीख है, मंटो ने जवाब दिया- पच्चीस। लिहाजा मजिस्ट्रेट ने पच्चीस रूपये जुर्माना करार कर दिया।

आज मंटो की पुण्यतिथि है। विश्व का शायद ही कोई इतना बड़ा कहानीकार हुआ होगा जिसको अपने ही देश में (आज़ादी के बाद भी) इस तरह से मुकदमे झेलने पड़े हों, इतनी तकलीफ सहनी पड़ी हो। गोर्की और मंटो की तुलना करते हुए कृष्ण चन्दर ने बहुत तकलीफ में यह वाक्य लिखा होगा कि फर्क सिर्फ इतना है कि उन लोगो ने गोर्की के लिए अजायबघर बनाये, मूर्तियां स्थापित की, नगर बसाये और हमने मंटो पर मुकदमे चलाये, उसे भूखा मारा, उसे पागलखाने पहुँचाया, उसे अस्पतालों में सड़ाया और आखिर में उसे यहाँ तक मजबूर कर दिया कि वह इंसान को नहीं, शराब की एक बोतल को अपना दोस्त समझने पर मजबूर हो गया। (‘मंटो की सदी से’ किताब से)।

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