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वेदों से लेकर लेनिन तक विस्तृत था महादेवी का ज्ञान संसार

इलाहाबाद, 11 सितम्बर

स्त्रियों की सांस्कृतिक संस्था कोरस द्वारा महादेवी वर्मा की पुण्यतिथि पर हर वर्ष आयोजित की जाने वाली व्याख्यानमाला की दूसरी कड़ी में आज प्रो. अवधेश प्रधान ने ‘छायावाद का पुनर्मुल्यांकन (संदर्भ-महादेवी)’ विषय पर स्थानीय करियर कोचिंग सभागार में व्याख्यान दिया.

प्रो. प्रधान ने कहा कि माना कि उन्होंने नाम ले लेकर आलोचना नहीं की लेकिन वेद से लेकर लेनिन तक का उनका विशाल अध्ययन था. छायावाद, रहस्यवाद यहाँ तक कि सामयिक समस्याओं को लेकर जो उनका विवेचनात्मक गद्य है, वह इसी अध्ययन का परिणाम है.

महादेवी का गद्य उस वक्त भी बहुत तार्किक और प्रगतिशील था जब प्रगतिशील आलोचना की शुरुआत भी नहीं हुई थी. पन्त की कविता ‘ग्राम युवती’ का संदर्भ देते हुए उन्होंने प्रगतिशीलता को स्पष्ट किया है | पन्त का नाम लिए बगैर एक विशेष तरह के स्त्री सौन्दर्य के प्रति उनका जो आग्रह है उसे प्रश्नांकित करती हैं |

महादेवी पहली आलोचक हैं जो कविता की सीमा का विश्लेषण करती हैं, लेनिन को उद्धृत करते हुए वे कहती हैं- ‘श्रम के बिना जीना चोरी है और कला के बिना श्रम बर्बरता है’.

नर- नारी के संबंधों को लेकर भी वे ठोस भारतीय सन्दर्भ में लेनिन को उद्धृत करती हैं| महादेवी के हवाले से प्रधान जी ने कहा कि वैदिक काल में स्त्री का शरीर भले न दिखाई पड़ता हो लेकिन उसका मुख़ था, अर्थात वह आत्माभिव्यक्ति में सक्षम थी.  ‘असतो मा सद्गमय किसी ऋषि का मन्त्र नहीं है बल्कि ऋषिका का मन्त्र है. जबकि मध्यकाल में स्त्री वीरांगना के रूप में दिखाई तो पड़ती है लेकिन उसका मुख गायब है.

आगे प्रो. प्रधान ने कहा कि महादेवी ने मीरा को अपनी पुरखिन के रूप में याद किया है क्योंकि मीरा एकमात्र एक ऐसी कवयित्री हैं जिनका कृष्ण से प्रेम बराबरी का है.

बंगाल के अकाल पर लिखी गयी किताब ‘बंग दर्शन’ की भूमिका में महादेवी ने एक पत्रकार जैसे हुनर के साथ बाकायदा तथ्य और आंकड़ों के साथ सिद्ध किया है कि बंगाल का अकाल पूरी तरह से मानव निर्मित था. इसी भूमिका में वे साहित्यकारों के सामाजिक दायित्व का उद्बोधन करते हुए लिखती हैं कि “इस ज्वाला में यदि लेखकों की कलम स्वर्ण बनकर नहीं उभरती तो उसे राख हो जाना चाहिए”. अपनी बात खत्म करते हुए उन्होंने कहा कि महादेवी जी के क्रांतिकारी रूप को उभारकर ले आने की जरूरत है.

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं प्रो. अनीता गोपेश ने संस्मरणों के माध्यम से महादेवी के प्रगतिशील रूप की चर्चा की और बताया कि भले ही उन्होंने बोल के बहुत कुछ न कहा हो किन्तु उनके चिन्तन और कार्य के केंद्र में हमेशा महिलायें रही हैं.

कार्यक्रम का संचालन डॉ. बसंत त्रिपाठी ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन कोरस की सदस्य नंदिता अदावल ने किया. कार्यक्रम में जनमत के प्रधान सम्पादक रामजी राय, प्रो. अली अहमद फातमी, नीलम शंकर, के के पाण्डेय, डॉ. सूर्य नारायण, प्रो. प्रणय कृष्ण, कवि हरिश्चंद पाण्डेय, अनिल रंजन भौमिक, डॉ. मुदिता, डॉ. जनार्दन, डॉ. अमितेश, डॉ. कुमार वीरेंद्र, डॉ. लक्ष्मण प्रसाद, डॉ. आशुतोष पार्थेश्वर,आनंद मालवीय, प्रो. विवेक तिवारी तथा तमाम संस्कृतिकर्मी और छात्र-छात्राएं मौजूद थे.

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