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दिव्य कुंभ: नेता, बाबा, अधिकारी, ठेकेदार मस्त, छोटे मझोले दुकानदार पस्त

दिव्य कुंभ बीत चुका, महन्त और मुख्यमंत्री जी आकर समापन की सफल घोषणा कर अपनी और अधिकारियों की पीठ थपथपा गए । आजतक के नए नए आंकड़े, कितने का व्यापार हुआ, किसने कितने करोड़ कमाया, कितने रिकॉर्ड टूटे, कितने कीर्तिमान बने उन सब का शोर है । लेकिन छन छन कर इन बड़े-बड़े दावों के बीच कुछ अलग आवाजें भी सुनाई पड़ने लगी हैं । 4200 करोड़ से ज्यादा बजट और राज्य केंद्र की सरकारों द्वारा गांव प्रधानों से लेकर अंतरराष्ट्रीय पैमाने पर इसकी ब्रांडिंग ने इस अर्धकुंभ को कभी भी किसी भी कुंभ तक से अलग, अध्यात्म से ज्यादा पर्यटन के रूप में स्थापित कर दिया ।
राज्य सरकार ने कई कंपनियों के साथ मिलकर टेंट सिटी से लेकर यात्री निवासों का निर्माण, घाटों की भरमार, बेतहाशा बिजली, भगवा रंग की 500 से ज्यादा शटल बस, बड़े-बड़े होर्डिंग, राजनेताओं से लेकर संतों साधुओं तक । यानी कि इसे हर तरह की चमक दमक से लकालक दिखाने की कोशिश की गई ।

टेंट सिटी

यहां पांच सितारा होटलों की सुविधा वाली कई टेंट सिटी बसी थीं। इन्द्रप्रस्थ, वैदिक ,लल्लू जी एंड संस से लेकर त्रिवेणी संकुल आदि । जहां प्रतिदिन रुपए 2500 से 35000 तक रहने का किराया था । सामान्य जन के लिए जो सरकारी यात्री निवास थे उन्हें शुल्क मुक्त प्रचारित किया गया था । लेकिन बाद में मालूम चला कि प्रति बेड 100 रुपए और स्नान पर्व के आगे पीछे दो दो दिन ₹200 प्रतिदिन देना पड़ा ।जहां बेड थे लेकिन ओढ़ने की व्यवस्था आपको खुद करनी होती थी ।इन सब पर अलग ही पूरी कथा हो सकती है लेकिन यहां जिस पर बात करनी है वह यह कि इस विज्ञापन के प्रभाव में तमाम शहर के व्यापारियों ने यह सोच कर कि भारी संख्या में लोग जुटेंगे तो व्यापार बेहतर होगा। इसलिए मेले में स्टाल, दुकानें अलॉट करवाईं।
मेले के लिहाज से अलग-अलग सेक्टर में जगहों के रेट अलग अलग हैं । एक ब्रांड है काफी कैफे डे ।इसके मेले में कई स्टॉल थे जैसे सेक्टर 12 में जहां इसका रेट लगभग 1. 45 लाख प्रति स्टाल तो सेक्टर 14 में 2.83 लाख तो वहीं लेटे हनुमान जी वाले चौराहे पर 6 लाख से ज्यादा । इसे अलग अलग लोगों ने अलॉट करवाया था। संगम नोज जाने वाली सड़क सेक्टर 4 की स्टाल आशीष गोयल की थी तो सेक्टर 12 और सेक्टर 6 में आतिफ सिद्दीकी ने ली थी जो शहर इलाहाबाद में तनिष्क शोरूम के मालिक हैं।इन लोगों से मैंने बात करके व्यापार का हाल जानना चाहा तो कई कर्मचारियों ने जो तस्वीर बताई वह काफी निराशाजनक थी ।

कॉफ़ी डे का स्टाल

वे दुखी थे कि उनके मालिकों को जबरदस्त घाटा उठाना पड़ेगा ।सेक्टर 12 के कर्मचारी जितेन्द्र कुमार वर्मा बताते हैं की 1.45 लाख की जमीन, 35000 स्टाल की बनवाई लगी है कर्मचारियों का खर्च और लागत अलग से लेकिन दो लाख तक की भी नहीं हुई । वे अनुमान से कहते हैं कि घाटा दो लाख से ज्यादा का होगा। सेक्टर 4 के कर्मचारी अभय राज सिंह गौड़ इसे ज्यादा विस्तार से और साफ-साफ समझाते हैं ।वह बताते हैं कि ढाई लाख का स्टाल, 45,000 बनवाई, मीटर कनेक्शन का पैसा अलग । हम कर्मचारियों पर 11 जनवरी से 6 मार्च तक लगभग 2 माह का खर्च ₹50000 सैलरी,रहने की जगह और खाना मिलाकर करीब 3:30 लाख से ज्यादा का खर्च और मुख्य स्नानों पर बिक्री 30000 तक । बाकी दिन 500 से 600 । आप खुद जोड़ लीजिये, जितनी लागत है उतनी तो बिक्री नहीं है। मुनाफा कहां से आएगा ।सामान जो लगा उसका भी पैसा नहीं आया ।घाटा ही घाटा । वे कहते हैं कि मुझे नहीं लगता कि आगे भी हमारे मालिक यहां आना चाहेंगे । यह दुकान श्री आशीष गोयल की थी जो संभवत शहर के बिल्डर हैं ।

अन्नपूर्णा भोजनालय

इस काफी स्टाल के सामने ही सेक्टर 4 में अन्नपूर्णा भोजनालय हैं जिसे श्री वी. दीक्षित चलाते हैं ।मेरे बात करने पर थोड़ा हिचकते हैं।मेरे बताने पर कि मीडिया से जुड़ा हूं, मेरी पहचान का प्रमाण माँगते हैं ।उसे देखने के बाद बताते हैं कि उन्होंने 15.30 लाख में यह दुकान अलॉट करवाई है ।बिक्री की बात पूछने पर कहते हैं कि यह कुंभ मैं नहीं कह रहा कि खराब है, लेकिन व्यापार की दृष्टि से फेल है । कहते हैं कि कम से कम 70% घाटे में हूं । वे मुझे भोजनालय के बगल में बाहर ले जाकर वह गड्ढे दिखाते हैं जहां बचा हुआ खाना वह डंप करते हैं। बात बात में यह नौजवान मालिक दीक्षित कहते हैं कि लिखिएगा मत लेकिन साधु संत तो चलो ठीक लेकिन यह वर्दी धारी एक दाग हैं व्यवस्था पर ।आप से बेहतर इन्हें कौन जानेगा । यह लोग मध्यम श्रेणी के व्यापारी हैं ।
ऐसे ही सबसे चर्चित सेक्टर अरैल के 18-19-20 जहां वैदिक से इंद्रप्रस्थ सिटी और सरकारी लग्जरी त्रिवेणी संकुल आदि बने थे, उधर ही संस्कृति ग्राम, कला ग्राम इत्यादि निर्मित किया गया था,वहां के एक चर्चित मेघालय रेस्टोरेंट मालिक से बात करने 6 मार्च की रात पहुंचा, वे थोड़ा व्यस्त थे लेकिन दीक्षित जी की ही तरह सीधा जवाब ना देकर बोले -जो भाग्य में होगा मिलेगा। आशा करता हूं घाटा नहीं लगेगा । अभी तो मेला चलेगा । मुझे अगले दिन आने को कहते हैं पर मैं जा नहीं सका । हाल वहां भी अलग ना होता,यह अनुभव बता रहे थे ।

बचा हुआ खाना डंप करने का गड्ढा

छोटे व्यापारी और बुरी अवस्था में हैं । पिछले 20- 30 वर्षों से मेले में साड़ियों की दुकान लगाने वाले आगरा से आए सलीम अहमद और समीर से मैं 2 फरवरी से 1 मार्च तक कई बार मिला । यह लोग 100-150 रुपए से लेकर अधिकतम ₹300 तक साड़ियां सलवार सूट आदि बेचते हैं । इनकी हालत ज्यादा खराब थी । बताते हैं कि हम लोग उधार पर माल लाते हैं ।हर बार मेले से मुनाफा हो जाता था पर इस बार घाटा ही घाटा है । 3 फरवरी के पहले 10 साड़ी सूट बिक जाएं तो बड़ी बात । घर से ही पैसे मंगा कर अपनी और साथ के लड़कों की रोटी चल रही है। आज से कुछ ग्राहक आ रहे हैं । बात करने पर बताते हैं कि पहले पुलिस ने काफी परेशान किया फिर दैनिक जागरण के एक पत्रकार जो आगरा के थे,उनसे परिचित थे, उनको कहा, उनकी सहायता से यह परेशानी हल हुई लेकिन बिक्री का जो हाल है उससे तो कम से कम 200000 (दो लाख)घाटा होना ही है । अगली पार्टी जिससे उधार लिया है उसे कैसे चुकाएंगे यह चिंता उन्हें सता रही थी ।

साड़ियों की दुकान

6 मार्च की शाम फिर पहुंचा तो इन दोस्तों की दुकानें बंद थी। वह मेले से भारी उधार का बोझ लिए विदा हो गए थे । मन बुरी तरह से खिन्न हो चुका । लौट जाने का मन हो रहा था, पर अभी बातें बची थी, सवाल बचे थे ।सामने बचई, जो चाय नाश्ते की दुकान लगाए थे, जाकर उनके पास बैठ गया । बचई के पास पहले 3 फरवरी की रात मुख्य स्नान के दिन और कई बार गया था ।बचई ने मुस्कुराते हुए चाय का गिलास पकड़ा दिया। हाल-चाल पूछा । मैं दुखी था, बचई समझ गए थे। उनकी मिठाई खान पान की दुकान थी शास्त्री पुल इलाहाबाद की चुंगी पर जो सड़क चौड़ीकरण की भेंट चढ़ चुकी थी ।
मेले में नाग वासुकी मंदिर से लेटे हनुमान को जो सड़क जाती है उसी सड़क पर उनकी दुकान है । 3 फरवरी को मुख्य स्नान के दिन जब उनसे पहली मुलाकात हुई तो उन्होंने बताया था कि आज कुछ बिक्री हो रही है इसके पहले खर्चा भी निकलना मुश्किल हो रहा था । मैंने उनसे पूछा ऐसा क्यों है? थोड़ी देर यहीं बैठिये, कारण भी आपको पता चल जाएगा। रात 11:30 बजे माइक से मुख्य स्नान के मुहूर्त की घोषणा हो रही थी और देखता हूं कि पुलिस का दल बल सीटी बजाता आ पहुंचा। सड़क पर सोए लोगों को ना सिर्फ सीटी बजाकर बल्कि डंडे से कोच कर जगाया जाने लगा कि जाओ जो स्नान घाट सामने है वहां नहाकर निकलो ।
अजीब दृश्य था । मोबाइल में बैटरी कम थी ।फोटो बहुत साफ नहीं आ रही थी क्योंकि रोशनी कम थी ।ऊपर से पुलिस वालों की फोटो खींचने पर टोका टोकी । फोटो नहीं मिल सकी।दुकान पर आया तो बचई बोले-भैया एक कारण तो यही है ।मेले में आए लोगों को रुकने ही नहीं दोगे तो हमारी दुकान पर खाने-पीने कौन आएगा । वीआईपी लोगों , अमीर लोगों की व्यवस्था तो सरकार ने कर दी है टेंट सिटी वाला होटल बना बना कर, बाबा लोग भी अखाड़े में भी व्यवस्था किए हुए हैं भारी भारी, वहां सब मिल रहा है । हमारे ग्राहक तो सामान्य लोग हैं । इनको रुकने ही नहीं देते मेला में ।बचई के इस जीवंत सबूत वाले जवाब के आगे नतमस्तक था ।

बचई लोगों को मिठाई चाय पकौड़ी देते हुए बोलते जाते हैं -अब जो भाग्य में लिखा होगा तो मिलेगा ही, लेकिन जब लोगों के पास पैसा होगा तब तो मेला में खरीदेंगे खाएंगे ।महंगाई इतनी है, आदमी कितना खर्च कर पाएगा । श्रद्धा है तो चले आए, जितनी शक्ति थी उससे स्नान करने । अब मेला गरीबों का नहीं रह गया । चमक दमक अमीरों के लिए, विदेशियों के लिए की गई है ।

बचई बोलते जा रहे थे और व्यापार में अर्थशास्त्र के सारे नियम मेरे सामने खोलते जा रहे थे । मुझे जवाब मिल गया था । बड़ी बड़ी कंपनियों, बड़े बड़े बाबा और राजनीतिज्ञों का मेला जिस की प्राथमिकता में गरीब श्रद्धालु या निम्न मध्यवर्ग नहीं था ।यह शहरी मध्यवर्ग, एन आर आई अमीरों के लिए की गई जिसमें दूसरे आर्थिक राजनीतिक हित साधने थे क्योंकि ठीक मेला खत्म होते ही राजनीति का महाकुंभ सामने था ।

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