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ग्रामीण भारत में सिनेमा यात्रा

लगभग 25 साल पहले, श्री जहूर सिद्दीकी ने बागपत जिले के रतौल में अपने पैतृक घर को पड़ोस के बच्चों के लिए एक स्कूल में बदलने का फैसला किया। इस तरह सलमा पब्लिक स्कूल की शुरुआत हुई । आज स्कूल में लगभग 500 बच्चे हैं और उच्च प्राथमिक तक की कक्षाएं हैं। 17 अगस्त 2019 को, दिल्ली से ‘प्रतिरोध का सिनेमा’ (सीओआर) टीम ने दो दिन की फिल्म कार्यशाला का संचालन करने के लिए स्कूल का दौरा किया। इस यात्रा को चिराग फाउंडेशन ने सुगम बनाया।


कार्यशाला की शुरुआत फिल्म “सुपरमैन ऑफ मालेगांव” की स्क्रीनिंग के साथ हुई। दर्शकों में पांचवीं कक्षा के छात्र और शिक्षक शामिल थे । बच्चों ने   फिल्म का बखूबी आनंद उठाया। फिल्म की स्क्रीनिंग के बाद एक बहुत ही उत्साहपूर्ण चर्चा हुई। अधिकांश दर्शक पहली बार वृत्तचित्र देख रहे थे। कई शिक्षकों ने फिल्म में नायक के प्रयासों की सराहना की, जिन्होंने पैसे और अन्य संसाधनों की कमी के बावजूद फिल्म बनाने के अपने सपने को आगे बढ़ाया। चिराग फाउंडेशन के संस्थापक श्री हर्ष सिंह लोहित ने एक अलग नजरिए से सबको वाकिफ कराया ।

उन्होंने बताया कि फिल्म हमें मालेगाँव में जल निकायों की भयानक स्थिति की एक झलक प्रदान करती है। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए उपाय करने की आवश्यकता पर बल दिया।

परिचर्चा का संचालन ‘प्रतिरोध का सिनेमा’ के राष्ट्रीय संयोजक संजय जोशी ने किया । ‘प्रतिरोध का सिनेमा’ से ही फातिमा निजारुद्दीन और यास्मीन एस. कार्यशाला के दो अन्य प्रशिक्षक थे ।


दोपहर के बाद के सत्र के दौरान, नॉर्मन मैक्लरेन  की फिल्मों “चेयरी टेल” और “नेबर” की स्क्रीनिंग  की गई. दोनों फिल्मों के दौरान शिक्षकों और छात्रों को हँसी रुक नहीं रही थी, लेकिन स्क्रीनिंग के बाद की चर्चा में उन्होंने बताया कि ये फिल्में कैसे उनके अपने जीवनानुभवों से जुड़ती हैं ।

विशेष रूप से ‘नेबर’ की कई शिक्षकों ने सराहना की . उन्हें लगा कि फिल्म में भौतिक संपत्ति पर झगड़े की व्यर्थता दिखाई गई है। इस खंड का ध्यान सिनेमा की भाषा पर था। संजय जोशी ने बताया कि कैसे कैमरे की भिन्न-भिन्न स्थितियों ने अलग-अलग भाव सृजित किये ।

उसके बाद फातिमा निजारुद्दीन ने दर्शकों को  फिल्म और सिनेमा की बुनियादी शब्दावली सिखाई ताकि वे अपने विचार और आलोचना व्यक्त कर सकें।

बर्ट हाँसत्रा की फिल्म “ज़ू” सत्र की आखिरी फिल्म थी और इसने संपादन तकनीक के बारे में एक समझ बनाने में मदद की. कार्यशाला का पहला दिन फिल्मों का आनंद लेते और एक बड़े दर्शक वर्ग के समक्ष खुद को व्यक्त करते हुए बच्चों की मुस्कराहटों के साथ समाप्त हुआ।

अगले दिन रविवार की कार्यशाला में भाग लेने के आखिरी सवाल पर cor टीम को सभी प्रतिभागियों द्वारा एक सम कोलाहल पूर्ण “हां” का उत्तर मिला ।

कार्यशाला के दूसरे दिन की शुरुआत प्रतिभागियों द्वारा लघु फिल्मों के लिए अपनी कहानी विचारों को प्रस्तुत करने के साथ हुई ।

अपने ड्राफ्ट प्रस्तुत करने के सवाल पर शिक्षकों में शुरुआती झिझक के बाद माहौल धीरे धीरे उन्मुक्त और परिचित हो गया ।

इसके बाद शिक्षकों और छात्रों- दोनों ने गर्व से अपनी पटकथाओं का प्रदर्शन किया। इसके बाद COR टीम ने उनके विचारों पर प्रतिक्रिया दी।

इसके बाद प्रसिद्ध दस्तावेजी फिल्मकार अमुधन.आर.पी.की “शिट” और जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों बिलाल अहमद और करन आनंद की “बागपत के बागी”दिखाई गई ।

‘शिट’ जो मदुरै, तमिलनाडु की एक दलित महिला, जो सड़कों से मल के ढेर को साफ करती है, मरिअम्मल के जीवन को चित्रित करती है, कई दर्शकों के लिए बहुत परेशान  करने वाली थी। शिक्षकों ने बताया कि काम के हालात इतने भयानक थे कि दर्शक के रूप में उन्हें देखना मुश्किल हो गया।

दर्शकों ने फिल्म “बागपत के बागी” की खूब सराहना की, जो उनके जिले की दो महिला निशानेबाजों के जीवन पर आधारित थी। फिल्म ने एक रूढ़िवादी समाज में महिलाओं के सामने आ रही बाधाओं पर एक अंतरंग चर्चा के लिए नेतृत्व किया. तब कई शिक्षकों ने अपने अनुभव साझा किए।


कार्यशाला का अंतिम सत्र विशेष रूप से शिक्षकों के लिए था। यह एक फीडबैक सत्र था और उन्हें कार्यशाला के बारे में राय साझा करने और संभव सुधार के सुझाव का अवसर दिया गया. उन्हें लगा कि फिल्में छात्रों के लिए कठिन विषयों को समझाने का एक उपयोगी माध्यम हो सकती हैं।

COR ने उन्हें ऐसे टूल्स प्रदान करने का प्रयास किया जिससे वे ‘फिल्में कैसे देखें?’ व अभूतपूर्व परिचर्चा को जारी रख सकें, जिसे कार्यशाला में  हासिल किया गया ।

स्कूल की प्रिंसिपल सुश्री शीबा सुल्ताना ने कहा कि यह कार्यशाला स्कूल के लिए एक नई पहल थी और यह बहुत सफल रही। सीओआर टीम ने इस तरह की और अधिक कार्यशालाएं आयोजित करने की इच्छा व्यक्त की। बच्चों की किताबें, जो इस कार्यशाला के दौरान प्रदर्शित की गईं, ने छात्रों की रुचि को समझा और स्कूल पुस्तकालय के लिए कुछ चुनिंदा किताबें खरीदी गईं ।

यह एक बेहद सफल कार्यशाला थी, और इस कार्यशाला के आयोजन में  चिराग फाउंडेशन के सुस्मिता बोस और पतितपाबन चौधरी द्वारा की गई मदद के हम आभारी हैं.

(रिपोर्ट: ‘प्रतिरोध का सिनेमा’ दिल्ली टीम के संयोजक फातिमा एन. और यास्मीन एस.)

अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद: गीतेश

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