समकालीन जनमत

Author : विरूप

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जनमत

लोकतंत्र नहीं, लिंचिंग तंत्र

विरूप
‘बालवांश्च यथा धर्मं लोके पश्यति पूरुषः। स धर्मो धर्मवेलायां भवत्यभिह्तः परः।। लोक में बलवान पुरुष जिसे धर्म समझता है, धर्म-विचार के समय लोग उसी को...
जनमतव्यंग्य

सब घाल-मेल है भाई

विरूप
जेएनयू का मसला चल ही रहा था कि हुक्मरानों की मेहरबानी से न्यायालय, संविधान, न्यायमूर्ति, राष्ट्रपति, राज्यपाल जैसे जुमले हवा में तैरने लगे हैं. पूरा...
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