समकालीन जनमत
चित्रकला

कार्यशाला में सृजित कला कृतियां प्रदर्शित की गईं, समकालीन कला के स्वरूप पर चर्चा हुई

आरा (बिहार). स्थानीय इंद्रलोक भवन आरा में , कला कम्‍यून भोजपुर द्‍वारा आयोजित , समकालीन कला कार्यशाला में सृजित कला कृतियां दो जून को प्रदर्शित की गईं ।

वरीय चित्रकार लोकनाथ सिंह के दृश्‍यचित्रण की सहजता , तथा चर्चित चित्रकार कमलेश कुंदन की बड़े आकार की आकृति मूलक कृति की लयबद्‍धता दर्शकों का ध्यान आकृष्‍ट कर रही थी।

कार्यशाला के मुख्‍य अतिथि राजकुमार सिंह की रंगों की संप्रेषणीयता और चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर की रेखाओं की गति जैसे पशुता के बरअक्‍श खडे़ मनुष्यता को सशक्त रुप में अभिव्‍यक्‍त कर रही थीं ।

चर्चित चित्रकार रौशन राय की अमूर्तन में संयोजित वर्णयोजना और गाजीपुर से आए चित्रकार राजीव गुप्‍ता का मानवीय संवेदनाओं के द्‍वंद का संयोजन अद्‍भूत था।

मूर्तिकार ओमप्रकाश सिंह की खग परिवार का संयोजन , तथा मुखाकृतियां दर्शकों को अपने ओर आकर्षित कर रही थी । अनीता पांडे के चटख रंग , और संजीव की कृति के कोमल रंग प्रभावशाली थे । चित्रकार कौशलेश के चित्रो का स्‍पेश और संतुलन अद्‍भूत था । अभिलाषा का भोलापन उसके स्‍वभाव को दर्शा रहे था । सुशील विश्‍वकर्मा की नारी आकृति जैसे दर्शकों से बहुत कुछ कह रही थी । पलक , कुशाग्र और अनवय जैसे बच्‍चों की कृतियां दर्शकों को अपनी दुनिया में ले जा रही थी ।

” समकालीन कला के स्वरूप और वर्तमान समय ” विषय पर गोष्ठी

कला प्रदर्शनी के बीच  ” समकालीन कला के स्वरूप और वर्तमान समय ” विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्‍ठी की अध्‍यक्षता करते हुए डाॅ रविन्द्र नाथ राय ने कहा कि जो कला समकालीन चुनौतियों से टकराती है, वह समकालीन होती है ।

विषय प्रवर्तन करते हुए राकेश कुमार दिवाकर ने कहा कि 1990 से आज तक की कला को समकालीन कला में शामिल करना चाहिए। आज समकालीन कला का स्‍वरुप विविधवर्णी और विविधधर्मी है । किसी भी समय की समकालीन कला उस समय के राजनीतिक और आर्थिक स्‍वरुप से गहरे रुप से जूडी़ हुई रहती है । वह उसे प्रभावित भी करती है तथा समय की जरुरत को अभिव्‍यक्‍त करती है।

मुख्‍य वक्‍ता ख्‍यात मूर्तिकार और रंग विकल्‍प के सचिव सन्‍यासी रेड ने कहा कि आज बाजारवादी मिडिया और कला दीर्घाएं , समकालीन कला के जिस स्‍वरुप को स्‍थापित करना चाहती हैं वह नकली स्‍वरुप है । वह कुछ अति आत्‍मकेंद्रित कलाकारों और व्‍यपारिक घरानों की मात्र व्‍यपारिक स्ट्रेटजी है। वास्‍तव में समकालीन कला का स्वरूप मनुष्‍यता की संवेदनाओं से जुड़ा हुआ है। इसका मूल्‍यांकन भविष्य करेगा ।

संभावना कला मंच के संस्‍थापक चित्रकार राजकुमार सिंह ने कहा कि , समकालीन कला का वह स्‍वरुप जो जन भावनाओं को अभिव्यक्त करता है , उसे अभी रेखांकित होना है । आज माध्‍यम की बहुलता है , संवाद की सुविधा है मगर जीवन की जटिलता भी बढी़ है। समकालीन कलाकार अपने तरीके और अपने शैली में उसे अभिव्यक्त कर रहें हैं । चित्रकार राजीव गुप्ता ने समकालीन कला की प्रवृतियों को रेखांकित किया।

कमलेश कुंदन ने कहा कि आज का कलाकार तकनीकी रुप से ज्‍यादा दक्ष है । रौशन राय ने कहा कि समकालीन कला का स्‍वरुप अमूर्तन में ज्‍यादा मुखर है । जनमत के सम्पादक सुधीर सुमन ने विस्‍तार से अपनी बात रखते हुए कहा कि आज कला पर हमले बढे हैं। समकालीन कला को मौलिक अभिव्यक्ति के लिए सशक्त होना पड़ेगा। कौशलेश ने संतुलन पर अपनी बात कही । मूर्तिकार पिंटू ने समकालीन मूर्ति कला के स्वरुप पर अपनी बात रखी । कवि सुमन कुमार सिंह ने कला की खूबसुरती और समय के यर्थाथ पर अपनी बात रखी.

अंजनी शर्मा ने कहा कि समकालीन कला ने अपने तरीके से सांस्कृतिक हस्‍तक्षेप किया है जिसका जीवंत रुप हम आधुनिक रंगमंच की समृद्धि के रुप में देख सकते हैं। आशुतोष पांडे ने कला की सम्‍प्रेषणीयता के प्रश्‍न को उठाया।  कवि सुनील चौधरी ने कला की जन पक्षधरता पर बल दिया । रविशंकर सिंह ने कला के लोकप्रिय स्‍वरुप को रेखांकित किया । अनीता पांडे व अभिलिषा ने भी अपनी बातें रखी। धन्यवाद ज्ञापन चित्रकार संजीव सिन्‍हा ने की ।

कार्यक्रम में अभिलाषा जैन , रुपेश , दीपक सिंह , भाष्‍कर मिश्रा , पूनम देवी , रेखा देवी , पलक गुड्‍डी कुमारी , हिमांशू , रंगकर्मी श्रीधर , रुपेश , अमीत मेहता , सुर्य प्रकाश आदि उपस्थित थे ।

Related posts

5 comments

Comments are closed.

Fearlessly expressing peoples opinion