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वीरेनियत 4: जहाँ कविता के बाद का गहन सन्नाटा बजने लगा

आशुतोष कुमार


दिन वैसे अच्छा नहीं था। दिल्ली आसपास का दम काले धुंए में घुट रहा था। छुट्टियों के कारण बहुत से दोस्त शहर से बाहर थे। जो थे, उनका छठ जैसी किसी अपरिहार्यता के बिना ऐसे हाल में बाहर निकलना पागलपन कहलाता।

फिर भी आप सब आए और डटे रहे। आसपास से ही नहीं आगरे और मेरठ तक से। पंकज तो कानपुर से सिर्फ वीरेनियत सुनने चला आया।

यह सच है कि कल कविताएँ भी अधिकतर ‘डार्क’ मोड में थीं। निर्णायक रूप से सिद्ध करतीं कि आज हिंदुस्तानी कविता आठवें- नवें दशक की काव्यात्मक कोमलता, प्रतिबद्ध आशावाद और आभासी जीवन राग को बहुत पीछे छोड़ आई है।

अनुपम ने एक औरत के अंतिम अकेलेपन की वेधक कथा सुना कर शुरुआत की।

कवयित्री अनुपम सिंह

चंदन सिंह ने उस बसते हुए शहर की कथा सुनाकर उसे उरूज पर पहुंचा दिया, जो कितनी ही अदृश्य हत्याओं को दबाता हुआ बसता है और जिसके पूरी तरह बस जाने की ख़बर पहली गोली के चलने से मिलती है।

कवि चंदन सिंह के साथ आशुतोष कुमार

यह जिस नए बनते देशकाल का आतंकभरा आख्यान था, उसकी सारी की सारी सतरें कश्मीर के हवाले से निदा नवाज़ ने इस तरह खोलीं कि जब-तब बजती तालियों की गति पूरी तरह थम गई और कविता के बाद का गहन सन्नाटा बजने लगा।

कवि निदा नवाज़

इसे और गाढ़ा किया नईम सरमद ने अपनी उन नज़्मों और गज़लों से , जिनमें ख़ुद अल्ला मियां को , अगर वे हों तो, अपनी कारगुजारी पर पुनर्विचार करने की चुनौती दी गई थी।

शुभा आईं तो वे पूरी सभा को सीधा उस असमान युद्ध के बीचोबीच ले गईं, जो बच्चों के मासूम सपनों और उन्हें कुचलने पर आमादा सत्ता की बन्दूकों के बीच जारी है। इन्हीं दुर्धर्ष कविताओं में से एक पंकज ने शेयर की है। अखीर में मनमोहन इसी युद्ध के और भी कई आड़े-तिरछे अदेखे अंधेरे आयामों को उधेड़ते आए।

मंगलेश डबराल जी के साथ
वीरेनियत 4 के कवि शुभा और मनमोहन

 

एक अजब संयोग से बच्चे इस पूरी नशिस्त की धुरी बने रहे। इस ‘डार्क’ समय की क्रूरता और उससे हार माने बिना लड़ती मासूमियत की विचलित करती अनेक तस्वीरें दिखाते।

वीरेन की कविताओं का कविता पाठ करने पहुँचीं केंद्रीय विद्यालय संगठन की छात्राएँ

इस नशिस्त का आगाज़ भी केंद्रीय विद्यालय पुष्पविहार की प्रतिभाशाली छात्राओं द्वारा वीरेन दा की कविताओं की आवृति से हुआ। मनीषा, लिषिका और यशी ने अपनी पसंद की कविताएं पढ़ीं। “दुष्चक्र में स्रष्टा” की यशी द्वारा की गई आवृति ने सभा को विस्मय-विमुग्ध तो किया ही, जैसे पूरी महफ़िल का टोन सेट कर दिया!

(वीरेनियत 4 में शामिल होने पहुँचें कई रचनाकारों और श्रोताओं ने सोशल मीडिया पर अपने अनुभव साझा किए हैं जो बहुत महत्वपूर्ण हैं। हम समकालीन जनमत के पाठकों के लिए उन्हें सिलसिलेवार ढंग से यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं)

तस्वीरें: संजय जोशी और अनुपम सिंह की फेसबुक वॉल से साभार

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