समकालीन जनमत
चित्रकलासाहित्य-संस्कृति

तमाम सीमाओं को तोड़ती वरुण मौर्य की कलाकृति

राकेश कुमार दिवाकर

20 वीं सदी के उत्तरार्ध में नयी- नयी तकनीकी अनुसंधान और विकास ने कला के क्षेत्र में आमूल चूल परिवर्तन किया। 21 वीं सदी में चित्र कला, छापा कला और मूर्ति कला के भेद मिट से गए और लगभग हर पारंपरिक सीमाएं टूट गईं । कलाकारों ने साहसिक तरीके से कला को परिभाषित किया जिसे न्यू मीडिया के नाम से जाना जाता है। इस मीडिया में कई कला छात्रों का काम भी रेखांकित करने योग्य है। वरुण मौर्य (जो फिलहाल हैदराबाद विश्वविद्यालय से कला में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहे हैं ) के कई काम हमारे ध्यान आकर्षित करते हैं।

वरुण मौर्य का जन्म 24-07-1995 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के परसा नामक ग्राम में हुआ। पिताजी बंसीधर मौर्य पेशे से किसान हैं तथा माता इमरती देवी घरेलू महिला हैं। इस सदी में जब महंगाई में बेतहाशा वृद्धि हुई है, उत्तर प्रदेश के गांव से एक किसान परिवार के लड़के का कला जगत के नये माध्यम तक पहुंचने का सफर अपने आप में प्रेरणादायी है। इनकी प्रारंभिक शिक्षा रघुबरगंज से हुई तथा 09वीं से 12वीं तक की शिक्षा डॉ. एम. ए. अंसारी विद्यालय मुहम्मदाबाद से हुई। यहां इनकी मुलाकात कला गुरु राज कुमार सिंह से हुई जो कि समकालीन कला जगत में जन संस्कृति के जाने माने सिद्ध हस्त चित्रकार हैं। यहां कला के नए वितान से वरुण का साक्षात्कार हुआ।


उसके बाद इन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वहां के बाद उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से कला में स्नातक की पढ़ाई की और अब सरोजनी नायडू स्कूल हैदराबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहे हैं।
वरुण कहते हैं- “कला मेरे लिए एक ध्यान सरीखा है पर ऐसा ध्यान है जो होश में रहना सिखाता है। यह मेरे लिए कुरीतियों और रूढ़ियों को तोड़ने वाला तथा वर्तमान सच्चाई को अभिव्यक्त करने वाला है।”

मतलब साफ है वरुण यदि न्यू मीडिया को चुनते हैं तो इसलिए कि वे हर स्तर से हर संभव तरीके से, प्रभावशाली रूप में जमाने की आकांक्षाओं को अभिव्यक्त करना चाहते हैं। वे हर उस बाधा को तोड़ डालना चाहते हैं जो मानवीय प्रगति में बाधक है। चाहे वह रूढ़िवाद हो, कुरीतियां हो या फिर उत्तर आधुनिक बाजारवादी मायाजाल। ढेर सारे कलाकार नव साम्राज्यवादी मायाजाल के भूल भुलइया में खो से जाते हैं। वरुण यहां बहुत सचेत हैं, वे जोर देकर कहते हैं कि कला ध्यान जरूर है पर ऐसा ध्यान जो हमें होश में रहना सिखाता है।

उनका एक संस्थापन देखने योग्य है जिसमें उन्होंने ढेर सारे कम्प्यूटर मोनिटर को इस तरह से इंस्टॉल किया है जैसे एक विशाल गोलाकार यांत्रिक पिरामिड हो और हमारा मानवीय अस्तित्व उसी में चिन दिया जाने वाला हो । कुछ मोनिटर आन हैं कुछ आफ, चारों तरफ तार, जाल बुनते हुए लटक रहे हैं, जमीन पर कुछ की बोर्ड पड़े हुए हैं , जैसे आमंत्रित कर रहें हों इंस्ट्रक्शन देने के लिए। यहां रेखांकित किया जाने योग्य है कि की बोर्ड आपके सामने है, उसका आप प्रयोग कई तरीके से कर सकते हैं, मगर उस कम्प्यूटर के सीपीयू में भी कुछ खास प्रोग्राम फिट होते हैं और वही काम कर आप सकते हैं जिसकी इजाजत वे प्रोग्राम देते हैं, मतलब यह कि आप अप्रत्यक्ष तरीके से नियंत्रित हैं भले ही आपके सामने विस्तृत क्षेत्र खुला हो।

दूसरी कलाकृति जिसमें उन्होंने रेस के प्रतीक घोड़े के मुंह का इस्तेमाल किया है। यह कलाकृति घातक प्रतिस्पर्धा, और निगल जाने वाली रेस को जैसे अभिव्यक्त कर रही हो। एक और काम जिसमें उन्होंने कई वजन के बाट का इस्तेमाल किया है, जैसे तौलने के लिए तैयार रखा गया हो।


कुल मिलाकर वरुण मौर्य ने बहुत प्रभावशाली रूप से समकालीन आकांक्षा व तमाम तरह की आधुनिक व पारंपरिक बाड़ें बंदी के बीच के संबंध व संघर्षों को अभिव्यक्त किया है। आज के दौर में कलाकार, कला बाजार में अपनी पहुंच बनाने के लिए तरह- तरह से जोर आजमाइश कर रहे हैं। इसमें या तो वे कला बाजार के चकाचौंध में खो जाते हैं या फिर बहुत दूर नामालूम हाशिये पर फेंक दिए जाते हैं। इसमें कुछ ऐसे कलाकार हैं जो तीसरे तरह की जमीन गढ़ रहे हैं. वरुण भी एक ऐसे ही कलाकार हैं। उम्मीद है, आने वाले दिनों में वरुण मौर्य की कलाकृतियां समकालीन कला जगत में महत्वपूर्ण व सार्थक भूमिका अदा करेंगी.

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