समकालीन जनमत
कवितानाटकसाहित्य-संस्कृति

‘हमारे वतन की नयी ज़िन्दगी हो’

कोरस ने पटना में ‘एक शाम गोरख के नाम’ अयोजित किया

पटना , 28 जनवरी. कोरस द्वारा जनकवि गोरख पांडेय की स्मृति दिवस के पूर्व संध्या पर 28 जनवरी को ‘एक शाम गोरख के नाम’ कार्यक्रम का आयोजन गांधी मैदान में किया गया. यह कार्यक्रम वरिष्ठ कवि चंद्रकांत देवताले, कुंवर नारायण, गायिका गिरिजा देवी, साहित्यकार सुरेंद्र स्निग्ध ,दूध नाथ सिंह और प्रो. विनय कंठ को समर्पित था. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि आलोक धन्वा थे.

कार्यक्रम की शुरुआत गोरख पांडेय द्वारा लिखित ‘हमारे वतन की नयी ज़िन्दगी हो’ गीत से हुई. उसके बाद मुख्य अतिथि आलोक धन्वा ने अपनी बातें रखीं. उन्होंने कहा कि गोरख सच्चे अर्थों में जनता के कवि है और जन संघर्षों के गीतकार हैं. मजदूर और किसानों के श्रम के सौंदर्य के उनके लिखे गीत आज भी गाँव से शहर तक गाये जाते हैं.

कोरस ने खास तौर पर यह पूरा सांस्कृतिक कार्यक्रम बच्चों के साथ मिलकर तैयार किया. बच्चों की टीम द्वारा नाटक ‘खेल खेल में’ की प्रस्तुति हुई. यह नाटक सरकारी स्कूल से लेकर घर में लड़का लड़की की असमानता पर सवाल उठता है. बच्चों ने काफी सरल ढंग से अपनी बातों को नाटक के ज़रिये बताया. इसमें कुल 20 बच्चों ने भाग लिया था, और इस नाटक का निर्देशन रिया, नीतीश और रवि ने किया. गोरख की एक कविता ‘गुड्डू है शरारती लड़का’ की सांगीतिक नाट्य प्रस्तुति भी बच्चों ने की.

हर्ष,  चांदनी, नंदनी, अनोखी, कृष, रिशु, सोनाली, अवि, अविका, मुस्कान, मौसम, ऋषभ आदि बच्चों ने नाटक किया. उसके बाद गोरख के हिंदी-भोजपुरी गीतों की प्रस्तुति कोरस की टीम ने दी. ‘गुलमिया अब हम नाहीं बजैबो, मल्लाहों का गीत, पैसे की बाहें हज़ार, नेह के पाती, रफ़्ता-रफ़्ता नज़रबंदी का आदि 8 गीतों की प्रस्तुति हुई. गायन टीम में रिया, रुनझुन, अपराजिता सिन्हा, मात्सी, समता, मो.आसिफ़, राहुल और काशी कपाड़िया थे. कार्यक्रम के बीच में गोरख की कुछ कविताएं भी पढ़ी गयीं. कोरस के सदस्य विवेक ने ‘बच्चों के बारे में’, राहुल ने ‘हे भले आदमियों’ नितीश ने ‘वे डरते हैं’ और मात्सी ने ‘बंद खिड़कियों से टकराकर’ कविता का पाठ किया.
अंत में कोरस की अध्यक्ष शशि यादव ने कहा कि यहाँ जितने भी गीत, कविताओं की प्रस्तुति हुई वो आज के हालात को दर्शाता है. चाहे वो पैसों का गीत हो या गोरख की गज़ल रफ्ता-रफ़्ता  हो. गोरख के गीत सिर्फ गाये ही नहीं जाते बल्कि आन्दोलनों में भी शामिल हैं और उनके आंदोलन का हिस्सा हैं. 2012 में निर्भया बलात्कार की जो घटना घटी और पूरे देश के छात्र छात्राएं हाथों में तख्तियां लिए सड़कों पर उतरे और उन तख्तियों पर गोरख के कविताओं की पंक्तियां-‘ये आँखे है तुम्हारी तकलीफ का उमड़ता हुआ समंदर’, ‘अब तुम्हारे सड़क पे और युद्ध में होने के दिन आ गए’ आंदोलन का हिस्सा बनी.

इस पूरे कार्यक्रम को लोगोंं ने खूब पसंद किया और कार्यक्रम के अंत तक काफी संख्या में लोग सुने. कार्यक्रम का संचालन मात्सी शरण ने किया.

Related posts

1 comment

Comments are closed.

Fearlessly expressing peoples opinion